हिंसा मामले में हिंदूवादी नेता को क्लीनचिट, महाराष्ट्र पुणे के भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में मुख्य आरोपी बनाए गए हिंदूवादी नेता संभाजी भिड़ें को क्लीनचिट मिल गयी है। पुलिस ने महाराष्ट्र राज्य मानवाधिकार आयोग (एमएचआरसी) को बताया है कि उसे उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला है और मामले से उनका नाम हटाया जा रहा है. भिड़े के खिलाफ इस संबंध में एफआईआर दर्ज की गई थी, लेकिन उन्हें कभी गिरफ्तार नहीं किया गया था. पीड़िताें का आरोप है कि भिंड़े के ऊंचे राजनीतिक कनेक्शन की वजह से ऐसा हुआ.
1 जनवरी, 2018 को भीमा कोरेगांव इलाके में हुई हिंसा के बाद दलित राजनीतिक कार्यकर्ता अनीता सावले ने संभाजी भिड़े और एक अन्य हिंदुत्ववादी नेता मिलिंद एकबोटे का नाम लेते हुए एक एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसमें उन पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया गया था, जिसमें एक व्यक्ति की जान चली गई और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे. पुणे जिले की पिंपरी पुलिस ने भिड़े और अन्य के खिलाफ एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम और हत्या के प्रयास सहित आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया था. महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने विधानसभा में कहा था कि भिड़े के खिलाफ मामला वापस ले लिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बीते चार मई को पुलिस ने इस संबंध में आयोग के समक्ष अपनी रिपोर्ट पेश की. आयोग ने मामले के अगली सुनवाई 4 जुलाई को निर्धारित की है. यह भी आरोप थे कि भिड़े और एकबोटे को भीमा कोरेगांव इलाके में हिंसा वाले दिन देखा गया था.
हिंसा से किया इंकार
भिड़े ने हिंसा में किसी भी भूमिका से लगातार इनकार किया है और कहा है कि वह किसी भी जांच के लिए तैयार हैं. संभाजी भिड़े अपने भाषणों और बयानों के कारण विवादों में बने रहते हैं. अपने हिंदू दक्षिणपंथी संगठन ‘श्री शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्थान’ का गठन करने से पहले से लेकर अब तकरीबन 90 वर्ष की उम्र तक वह आरएसएस के एक सक्रिय पूर्णकालिक कार्यकर्ता थे. उनके और उनके समर्थकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी. 2009 में उनके संगठन के सदस्यों को मिराज और सांगली हुए दंगों से जोड़ा गया था. 2017 में पुणे में एक जुलूस में कथित रूप से बाधा डालने के आरोप में भिड़े और कार्यकर्ताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी.