खतौली इफैक्ट: बिल्कुल भी जल्दबाजी में नहीं भाजपा, खतौती उप चुनाव में मिली करारी हार के बाद निकाय चुनाव में प्रत्याशियों के चयन को लेकर भाजपा कतई भी जल्दबाजी में नजर नहीं आती। सबसे ज्यादा सावधानी तो मेरठ नगर निगम के महापौर पद के प्रत्याशी के चयन को लेकर बरती जा रही है। वहीं दूसरी ओर खतौली परिणाम का असर अब दावेदारों पर भी साफ नजर आ रहा है। भाजपा से महापौर का टिकट मांगने वालों की कतार पहले से छोटी नजर आती है। जानकारों का कहना है कि यह सब यूं ही नहीं है। दरअसल खतौली उपचुनाव में जो कुछ भी राजनीतिक घटनाक्रम हुआ, टिकट के तमाम दावेदार भी यह अच्छी तरह से समझ चुके हैं कि वो इफैक्ट निकाय के अन्य चुनाव में भले ही न नजर आए लेकिन महापाैर के चुनावी घमासान में जरूर नजर आएगा। अब जरा इफैक्ट की बात की जाए तो सबसे पहलो इफैक्ट तो रालोद मुखिया जयंत चौधरी जिसे भाई चारा बताते हैं मसलन जाट-मुस्लिम-दलित गठजोड़ का साइड इफैक्ट। यह गठजोड़ अब सपने में आकर डराने लगा है। भाजपा भी अब यह समझ रही है कि कम से कम उत्तर प्रदेश में तो अब जितने भी चुनाव भविष्य में होने जा रहे हैं उन सभी पर इस गठजोड़ से निपटना एक चुनौती होगी। इसके अलावा दूसरे साइड इफैक्ट की यदि बात की जाए तो वो है श्रीकांत त्यागी सरीखे छोटे-छोटे चुनावी या कहें राजनीतिक साइड इफैक्ट। श्रीकांत त्यागी जब खतौली जा सकते हैं तो महापौर के चुनाव में भाजपा के खिलाफ प्रचार करने मेरठ न आए ऐसा नहीं हो सकता। इसके अलावा सबसे बड़ा इफैक्ट सपा-रालोद गठबंधन के प्रत्याशी के नाम की अटकलों को लेकर बताया जा रहा है। सपा-रालोद गठबंधन यदि विधायक अतुल प्रधान की पत्नी जिला पंचायत की पूर्व अध्यक्ष सीमा प्रधान को चुनावी समर में उतारता है तो इसको हल्के में लेना भाजपा को भारी पड़ सकता है। अतुल प्रधान यदि भाजपा के फायर ब्रांड नेता संगीत चुनाव को चुनावी पटखनी दे सकते हैं तो पत्नी को चुनाव जिताने के लिए किसी भी हद तक गुजरने में कतई भी गुरेज नहीं करेगे। ये बातें भगवा पार्टी समर्थकों को अप्रिय लग सकती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत अभी तो कुछ ऐसी ही नजर आती है। हालांकि जानकारों का यहां तक की भाजपा के कुछ नेता भी मानते हैं कि इन तमाम चीजों को ध्यान में रखते हुए यदि भाजपा की ओर से भी मुस्लिम-दलित-जाट और खासतौर से पंजाबी बिरादरी में पेठ रखने वाली प्रत्याशी उतारी जाती है तो भगवा पार्टी का प्रत्याशी चुनावी महासमर में अपने रंग जरूर पूरी तरह से जमा हुआ नजर आएगा। वर्ना मेरठ नगर निगम की कुर्सी एक बार फिर भगवा खेमे से खिसने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।