लाशों के साथ रहने को मजबूर

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लाशों के साथ रहने को मजबूर, रूस के राष्ट्रपति पुतिन की जिद्द ने यूक्रेन को तबाह और बर्बाद कर दिया है. हालात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वहां खाने को दाने तक तक नहीं. रूसी फौजी आताताई हो गए हैं. बंधक बनाए गए लोगों को ऐसी जगह रखा जा रहा है, जहां लाशें सड़ रही हैं. सभ्य दुनिया में यह सब स्वीकार्य नहीं है. लेकिन लोग ऐसा सब कुछ सहने को मजबूर हैं. इन लोगों ने अब दुनिया से मदद की उम्मीद भी छोड़ दी है. साथ ही यह भी उन्होंने इन हालात को अपना नसीब मान लिया है। यूक्रेन की राजधानी कीएव से उत्तर दिशा में 140 किलोमीटर दूर चेर्निहीएव शहर के बाहरी इलाक़े में स्थित ये यहिद्रे गांव रूस और बेलारूस की सीमा के काफ़ी क़रीब है. रूसी सैनिकों ने इस गांव पर लगभग एक महीने तक क़ब्ज़ा किया हुआ था. रूसी सैनिक जब इस गांव में घुसे तो उन्होंने यहां के स्थानीय महिलाओं, पुरुषों और बच्चों को बंदूक की नोक पर उनके घरों से निकालकर एक स्थानीय स्कूल के बेसमेंट में रहने को कहा. लगभग 700 वर्ग फ़ीट के इस बेसमेंट में 130 लोगों को चार हफ़्तों तक रखा गया. साठ वर्षीय मायकोला क्लिमचक इन लोगों में से एक थे. मायकोला हमें इस बेसमेंट में लेकर गए. कुछ सीढ़ियां उतरते ही हम बेसमेंट में पहुंच गए जहां हमारा सामना चीज़ों के सड़ने-गलने की दुर्गंध से हुआ. गंदगी से भरे इस बेसमेंट में ज़मीन पर कुछ गद्दे, कपड़े, जूते और क़िताबें बिखरी हुई थीं. यह इलाका लाशों से भरा था। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने के बाद से अब तक रूसी सैन्य टुकड़ियों ने कई शहरों और गाँवों पर कब्जा कर लिया है.और इन इलाकों में फंसे लोग मदद की गुहार लगा रहे हैं. बमबारी के साथ-साथ इन स्थानों पर रहने वाले लोग पर सर्द मौसम और खाद्य संकट का ख़तरा मंडरा रहा है.इस वजह से यूक्रेन के मारियुपोल शहर और राजधानी कीएव के पश्चिम और उत्तर में बंसे गाँवों में एक भयानक मानवीय सकंट खड़ा होता दिख रहा है.

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