मठाधीशों को नहीं छू सके ट्रांसफर आर्डर, मेरठ नगर निगम में मलाईदार समझी जाने वाली कई सीटें ऐसी हैं जिन पर करीब पांच-पांच सालों से मठाधीशों का कब्जा है। 29 जून को नगरायुक्त कार्यालय ने 45 कमर्चारियों को इधर से उधर कर दिया। इन्हें ताश के पत्तों की तरह फेट दिया गया है। निगम अफसरों का कहना है कि कार्यकुशलता सुधारने को यह तवादले किए गए हैं, लेकिन सवाल पूछ जा रहा है कि क्या तवादला आदेश नगर निगम के उन मठाधीशों को छू पाए जो एक ही सीट पर पांच से छह साल से जमे हैं। ऐसा क्या कारण है जो सीनियर निगम अफसर इन मठाधीशों पर हाथ डालने से डरते हैं। या कहें तवादल एक्सप्रेस जब चलायी जाती है तब ऐसे मठाधीश सरीखें एक ही सीट पर सालों से जमे स्टाफ को नहीं छेड़ा जाता। ऐसे मठाधीश सरीखे मलाईदार सीटों पर जमे कमर्चारियों पर खुद को धुरंधर मानने वाले निगम के पार्षद भी मुंह खोलन से कन्नी काटते हैं। अब सवाल तो बनता है कि नगर निगम के अधिकारियों व पार्षदों से ऐसे मठाधीश कर्मचारियों का ये रिश्ता क्या कहलाता है। लेकिन पार्षद अब्दुल गफ्फार ने आवाज बुलंद की और बताया कि जन्म मृत्यु प्रमाण पत्र और स्वास्थ्य विभाग में तमाम ऐसे कर्मचारी हैं जिनको मठाधीश का दर्जा हासिल है। कई नगरायुक्त आए और चले गए, लेकिन किसी ने भी इन पर हाथ डालने को जोखिम मोल नहीं लिया।
सुपरवाइजर है साथ तो डरने की क्या बात
पार्षद अब्दुल गफ्फार बताते हैं कि निगम प्रशासन डेयरियों को लेकर खूब हो हल्ला मचाता है। लेकिन हकीकत तो यह है कि कई इलाकों में स्वास्थ्य विभाग के अस्थाई सुपरवाइजर के संरक्षण में ये डेयरियां चल रही हैं। खुद डेयरी संचालक कहते हैं कि जब सुपरवाइजर है साथ तो निगम प्रशासन से डरने की है क्या बात। वर्ना ऐसी क्या वजह है कि सुप्रीमकोर्ट की फटकार के बाद भी नगर निगम प्रशासन डेयरियों को आबादी से बाहर नहीं कर सका है। जबकि डेयरियों के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर ही प्रवर्तन दल का भारी भरकम खर्चा वहन किया जा रहा है। (BK GUPTA ki report)