मलाईदार सीट: खुद के प्रमोशन वाली सीट का चार्ज जूनियर को
–छह साल से वेट कर रहे हैं एमडी पावर आदेश
-ट्रांसफर पोस्टिंग वाली मलाईदार सीट से हिलने के मूड में नहीं सहा. अभियंता
मेरठ। प्रमोशन होने के बावजूद उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन मुख्यालय में तैनात सहायक अभियंता मलाईदार सीट छोड़ने के मूड में नहीं। प्रमोशन जैसी महत्वपूर्ण सीट पर पिछले छह साल से जमे यह सहायक अभियंता प्रबंध निदेशक के आदेशों को लेकर गंभीर नहीं नजर आते। सुनने मे आया है कि ट्रांसफर आदेशों के बावजूद सहायक अभियंता ने अपने व्यक्तिगत सहायक द्वितीय को ही अपने से उच्च अधिशासी अभियंता के स्तर का अतिरिक्त चार्ज भी दे दिया है। इस मामले को लेकर अब राज्य विद्युत परिषद प्राविधिक कर्मचारी संघ उत्तर प्रदेश ने भी महकमे के आला अधिकारियों व मंत्री को पूरे मामले से अवगत कराया है। प्रबंध निदेशक के आदेशों के अनुपाल कराए जाने का आग्रह भी किया गया है।
यह है पूरा मामला
मुख्य अभियंता जल विद्युत में तैनात अरुण कुमार (सहायक अभियंता) व्यक्तिगत सहायक द्वितीय जिनका पावर कॉर्पोरेशन आदेश संख्या-2218 ज०श० प्र०सु० एवं प्रशि०-01/ पाकालि/ 2023-08-ज०श० प्र०सु०/ 2013TC-VII, दिनांक: 18 सितंबर 2023 के तहत पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड हेतु स्थानांतरण किया जा चुका है।
मलाइदार सीट के आगे आदेश बौने
जिस सीट पर सहायक अभियंता वर्तमान में बताए जा रह हैं उस सीट से होकर ही तमाम प्रमोशन व ऐसे ही महत्वपूर्ण कार्यों की फाइलें होकर गुजरती हैं। माना जा रहा है कि मलाईदार सीट पर छह साल तक नॉन स्टाप पारी खेलने के चलते ही सहायक अभियंता अभी भी जारी जारी रखना चाहते हैं। माना जा रहा है कि संभवत इसी के चलते प्रबंध निदेशक के आदेश के बावजूद उन्होंने व्यक्तिगत सहायक द्वितीय को ही अपने से उच्च अधिशासी अभियंता के स्तर का अतिरिक्त चार्ज भी दे दिया है। इसको लेकर अब आवाजें उठने लगी हैं। पूछा जा रहा है कि ऐसा क्या कारण है जो छह साल से एक सीट पर जमे सहायक अभियंता आदेश के बावजूद चार्ज लेने को तैयार नहीं है।
नियम तीन साल का है एक सीट पर काम करते रहने का
केंद्र व राज्य सरकार की सेवाओं के अलावा उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन सरीखे निगमों में एक सीट पर काम करने की यदि नियम की बात की जाए तो तीन साल तक एक सीट या जनपद में कार्यरत रहने का शासकीय नियम है, लेकिन उक्त सहायक अभियंता सरीखे कुछ अफसर इस शासकीय नियम के अपवाद भी हैं। जिनके लिए प्रबंध निदेशक की कलम से जारी आदेश भी कोई मायने नहीं रखते।
शक्ति भवन चिराग तले अंधेरा
मुख्य अभियंता जल विद्युत जहां से अधिकारी तथा कर्मचारी सभी की पदोन्नति की कार्यवाही पूर्ण होती है! इतने महत्त्वपूर्ण और संवेदनशील पद पर एक ही आधिकारी को दो स्वरूप में पावर कॉर्पोरेशन के स्थानांतरण नीति की अवहेलना कर विगत 6 वर्ष से कार्यरत रखा गया है।
हास्यास्पद तो यह है की जिस शक्ति भवन से पूरे उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन में आदेश का अनुपालन न होने पर कार्यवाही होती है उसी शक्ति भवन में जहां पावर कॉर्पोरेशन के मुखिया चेयरमैन बैठते है एवन समय समय पर ऊर्जा मंत्री भी बैठते है में आदेश का अनुपालन न कर कर जानबूझ पदोन्नति में आपदा की तरह अवसर तलाशने का अवसर प्रदान तो कही नही किया जा रहा है! अतः कह सकते है की पावर कॉर्पोरेशन में चिराग तले अंधेरा व्याप्त है और शीर्ष प्रबंधन आदेश करने के बावजूद बाहुबली सहायक अभियंता के आगे सरेंडर की मुद्रा में नजर आते हैं। या फिर यह मान लिया जाए कि प्रबंधन स्तर पर ही कुछ कॉम्पलिकेशन है।
हाईकोर्ट की वो टिप्पणी
पूर्व मे माननीय उच्च न्यायालय के द्वारा पूर्व चेयरमैन, पॉवर कार्पोरेशन पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि तत्कालीन चेयरमेन को नियमों का सही ज्ञान नहीं है। आम चर्चा है कि इसी का अनुसरण वर्तमान मे मुख्य अभियंता (हाइडिल) कार्यालय कर रहा है। टेक्निशयन से अवर अभियंता चयन द्वारा प्रोन्नति की पात्रता सूची मे मृतक, असहमत, सेवानिवृत्त आदि प्रोन्नति हेतु अपात्र नाम को शामिल कर मनमानी प्रक्रिया अपनाई जा रही है, जबकि चयन हेतु पात्रता सूची मे केवल पात्र कार्मिको को ही शामिल किये जाने का प्रावधान है, जिसका पालन विद्युत विभाग द्वारा नहीं किया जा रहा है! संभव हैं की माननीय उच्च न्यायालय के द्वारा पुनः ऐसी टिप्पणी से पॉवर कार्पोरेशन के अधिकारियों को दो चार ना होना पड़े।