लाशें ठिकाने लगाने को मेरठ बना है ठिकाना

लाशें ठिकाने लगाने को मेरठ बना है ठिकाना
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लाशें ठिकाने लगाने को मेरठ बना है ठिकाना

-लावारिस लाशों के गुनाहगारों को सजा का इंतजार,

-लावारिस लाशों का डंपिंग ग्राउंड बना है मेरठ

-हैरानी! सीसीटीवी में कैद पुलिस की पकड़ से दूर

शेखर शर्मा

मेरठ। आए दिन लावारिस लाशों के मिलने का सिलसिला थमता नजर नहीं आ रहा है। वहीं दूसरी ओर सवाल पूछा जा रहा है कि लावारिस लाशों के गुनाहगारों को कब सजा मिलेगी। ऐसे अनेक केस हैं जिनमें गुनाहगारों को सजा तो दूर अभी केस का खुलासा तक नहीं हो सका है। केस का खुलासा भी छोड़िये लावारिस लाशाें की पहचान तक नहीं हाे सकी है। कई ऐसे भी केस हैं जिनमें गुनाहगार सीसीटीवी में तो कैद हैं लेकिन पुलिस की पकड़ से दूर हैं। मेरठ की बात करें तो यह शहर लावारिस लाशों का डंपिंग ग्राउंड बनता जा रहा है।

जारी है कभी न थमने वाला सिलसिला

लावारिस लाशाें का कभी न थमने वाला सिलसिला लगातार जारी है। इस सिलसिले ने ही मेरठ को लावारिस लाशों का डंपिंग ग्राउंड बनाकर रख दिया है। दरअसल हो यह रहा है कि दूसरे शहरों में हत्या जैसी जघन्य वारदातों काे अंजाम देने के बाद जिनको मारा जाता है उनकी लाश ठिकाने लगाने के लिए मेरठ ही ठिकाना बना हुआ है। बीते अगस्त माह में एक सनसनी खेज वारदात सामने आयी थी। जिसमें एक शख्स बोरे में भरी एक युवती की लाश को कंधे पर उठाए पांच घंटे तक घूमता रहा। और जब कहीं ठिकाना नहीं मिला तो लाश को खरखौदा के जमना नगर इलाके में पटक कर चला गया।

सीसीटीवी में कैद पुलिस की पकड़ से दूर

आठ माह बाद भी पुलिस पता नहीं लगा पाई कि बोरे में बंद लाश किसकी थी और लाश को कहां से लाकर फेंका गया है। पुलिस ने इलाके के सीसीटीवी कैमरे चेक कराए। इसमें सुबह 7 बजकर 5 मिनट पर एक युवक नजर आया। वह बोरी में भरी लाश को सिर में लादे हुए था। धीरे-धीरे चल रहा था। इलाके में लगे कई सीसीटीवी में नजर आया। युवक की उम्र करीब 35 से 40 साल के बीच है। युवती की शिनाख्त नहीं हुई है। उसकी उम्र करीब 30-35 के आसपास है। शरीर पर कपड़े नहीं थे। चेहरे पर कटे के निशान थे। नाक से खून बह रहा था। बोरे के पास 500 रुपये का एक नोट भी मिला है। यह गिर गया या फेंका गया पुलिस को आशंका है कि महिला की दुष्कर्म के बाद हत्या की गई है।

लंबी है फेरिस्त

लावारिस लाशों की यदि बात की जाए तो इसकी फेरिस्त बहुत लंबी है। खरखौदा मे बोरे में मिल युवती की नग्न लाश तो वानगी भर है। ऐसे केसों की जहां तक बात है तो ज्यादातर में पुलिस दिलचस्पी दिखाने के टालमटोल करती नजर आती है। लावारिस लाशों की शिनाख्त कराना और वारदात के गुनाहगारों तक पहुंचना कोई आसान काम नहीं होता। सबसे बड़ी मुसीबत व ऊबाऊ भर तो अज्ञात शवों की शिनाख्त करना होता है। इसके लिए सालों गुजर जाते हैं। जब तक शिनाख्त होती है तब तक थाने में काफी कुछ बदल चुका होता है। फाइल पर धूल चढ़ जाती है। ऐसे मामलों की वैसे तो लंबी फेरिस्त हैं लेकिन नीचे कुछ खास चर्चित रहे मामलों का जिक्र किया जा रहा है।

-जुलाई 2009 में लावड़-मवी संपर्क मार्ग स्थित नौ गजा पीर के पास ग्रामीणों को लगभग 20 साल उम्र की एक युवती की लाश मिली थी। युवती का सिर धड़ से अलग था। सिर कटी लाश मिलने से कस्बे में सनसनी फैल गई

-जुलाई 2014 को दौराला थाने के अंतगर्त भगवती कॉलेज के पास झाड़ियों में एक युवक का शव मिलने पुलिस को मिला। युवक की गोली मारकर हत्या की गई थी और शव की शिनाख्त मिटाने के लिए चेहरे पर तेजाब डाला गया था।

– 1 जनवरी 2018 से 15 जनवरी 2018 तक सात लावारिस लाशें जिले की सीमा से लगने वाले थाना क्षेत्रों मे मिलीं। पहचान छिपाने के उद्देश्य से शव को भी क्षत-विक्षत कर दिया।  इन शवों की शिनाख्त पुलिस के लिए पहेली बनकर रह जाती है और हत्यारे पुलिस की पकड़ से दूर बने रहते हैं।

-अगस्त 2015 में पठानपुरा के जंगल में 22 वर्षीय एक युवती की लाश मिलने से सनसनी फैल गई थी। मृतक के कपड़ों से अंदाजा लगाया जा रहा था कि युवती किसी अच्छे परिवार से है।

इन जिलों की सीमाए लगती है मेरठ से

मेरठ से जिन जिलों की सीमाएं लगती हैं, उनमें मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत, हापुड, बिजनौर, गाजियाबाद आदि जैसे जिले शामिल हैं। इन जिलों में मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत, बिजनौर, गाजियाबाद के बदमाश हत्या कर लाशों को मेरठ की सीमा में फेंक देते है। भौगोलिक दृष्टि से भी मेरठ जिले की सीमाओं के गांव कुछ उपरोक्त जिलों में आते हैं। जिससे इन गांवों के जंगल में लाश फेकने का बदमाशों को लाभ मिल जाता है। परिणाम यह होता है कि पुलिस सीमा को लेकर आपस में ही उलझ जाते हैं।

वारदात कहीं, लाश कहीं, शिनाख्त कहीं और रिपोर्ट कहीं

पुलिस के पास काम का बोझ अधिक होने या फिर बिना किसी दबाव के अधिकारी या जांच अधिकारी कोई जिम्मेदारी नहीं लेता। लावारिश लाशों वाले केस में अमूमन तहकीकात करने पर पता चलता है कि वारदात को कहीं दूसरी जगह पर अंजाम दिया जाता है। लाश कहीं दूसरी जगह फेंकी जाती है। इतना ही नहीं अगर लाश की शिनाख्त हो गई, तो उसकी भी जगह बदली होती है। इतना सब कुछ होने के बाद गुमशुदगी की रिपोर्ट कहीं दूसरे थाने में दर्ज होती है। परिणाम यह होता है कि कानूनी बारिकियां और जटिलताओं के कारण केस अपने आप ही कमजोर हो जाता है। बांकी रही सही कसर पुलिस की जांच पूरी कर देती है। जिससे लावारिश लाश को पूरा न्याय नहीं मिल पाता।

पुलिस की अपनी दलील

वहीं, इस मामले में जब क्राइम ब्रांच के सीओ  से बात की गई तो उनका कहना था कि जिलों की सीमा पर चेकिंग अभियान चलाया जाता है। लावारिश लाशों की पहचान के पूरे प्रयास पुलिस की तरफ से किए जाते हैं। संबंधित जिलों और ऑफिशियली वेबसाइट पर भी फोटो अपलोड किए जाते हैं। अधिकांश की पहचान हो जाती है।


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