जीओसी के आदेशों पर कुंडली मारे बैठे हैं सीईओ व डीईओ,
तीन दशक पहले दिए गए आदेशों के पालन का आज भी जीओसी इन चीफ के आफिस को है अनुपाल का इंतजार
मेरठ छावनी स्थित सरकुलर रोड के बंगला 210 सी (कभी नैंसी के नाम से रहा था बदनाम ) में कराए गए लगभग चालिस अवैध निर्माणों को ध्वस्त करने के जीओसी इन चीफ लखनऊ ने करीब तीन दशक पहले आदेश दिए थे। लेकिन तीन दशक पहले दिए गए जीओसी के आदेशों को लेकर ना तो सीईओ और न ही डीईओ गंभीर नजर आतें। जब जीओसी इन चीफ सरीखे अफसर के आदेशों को लेकर यह हालत है तो फिर अंदाजा लग लीजिए कि सब एरिया कमांडर के आदेशों का कितनी गंभीरता से पालन किया जाता होगा। जीओसी इन चीफ के आदेशों के अनुपाल की यदि बात करें तो बंगला 210-सी/ होटल नैंसी में वो तमाम कारगुजारियां की गयी थीं जिसके बाद बगैर किसी देरी के सीधे ध्वस्तीकरण की कार्रवाई के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचता। माना जा रहा है कि इसी के चलते तत्कालीन जीओसी इन चीफ ने इस बंगले के सभी अवैध निर्माण ध्वस्त करने के आदेश किए थे। अब यदि बंगले में किए गए कृत्यों की बात करें तो पहला और गंभीर कृत्य अवैध निर्माण दूसरा चेंज ऑफ परपज और तीसरा सब डिविजन ऑफ साइट। देश के किसी भी कैंट में डीईओ के ओलड ग्रांट बंगले या भारत सरकार की ऐसी ही किसी संपत्ति में जहां ये तीनों कृत्य किए गए हों वहां बगैर किसी देरी के सीईओ व डीईओ सरीखे अफसर तत्काल ध्वस्तीकरण कराने को बाध्य हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ मामला जीओसी इन चीफ की अदालत तक जा पहुंचा। जीओसी इन चीफ ने 210-सी के सभी अवैध निर्माण ध्वस्त करने के आदेश जारी कर दिए, लेकिन जीओसी के आदेशों की फाइल पर धूल धूल झाडने की फुर्सत लगता है सीईओ व डीईओ के पास नहीं। हैरानी की बात तो यह है कि जीओसी इन चीफ के आदेशों के खिलाफ किसी कोर्ट से कोई स्टे नहीं है उसके बाद भी जीओसी इन चीफ के आदेशों का पालन नहीं किया जा रहा है।
इनके कार्यकाल में हुए अवैध निर्माण
सरकुल रोड बंगला 210-सी में जब ये अवैध निर्माण हुए थे, उस वक्त कैंट बोर्ड के सीईओ एससी त्रिपाठी हुआ करते थे। जबकि संभवत: डीईओ एके श्रीवास्तव हुआ करते थे। उसी दौरान कैंट बोर्ड के कुछ भ्रष्ट अफसरों ने ये अवैध निर्माण कराने की छूट दे दी थी। उस वक्त बंगले में कैंट बोर्ड के इंजीनियरिंग सेक्शन के हेड डीएन शर्मा इंजीनियर हुआ करते थे और सेनेट्री सेक्शन मे वीके वशिष्ठ हुआ करते थे।
भारत सरकार की संपत्ति पर अवैध निर्माण ही नहीं अवैध कब्जा भी
जीएलआर में यह बंगला अशफाक जमानी बेगम व तलत जमानी बेगम के नाम चढा है। आज भी जीएलआर में इस बंगला की मिलकियत इन दोनों महिलाओं के नाम है। बाद में 1988 में 210-सी को ताराचंद शास्त्री ने खरीदा था। जिस वक्त ताराचंद शास्त्री ने खरीदा उस वक्त इस बंगले में एक भरी पूरी बस्ती हुआ करती थी। साम-दाम-दंड-भेद कर बस्ती को खाली कर लिया गया। बताया जाता है कि ताराचंद शास्त्री यहा होटल चलाना चाहते थे, लेकिन उन्हें मुफीद लोग नहीं मिले दूसरी ओर उस वक्त वह अपने स्कूलों व राजनीति में भी काफी व्यस्त रहा करते थे। साल 1990 में इस बंगले का सौदा सुषमा गर्ग व सदन गर्ग के साथ कर दिया गया। ताराचंद शास्त्री उससे अलग हो गए। सुषमा व सदन ने होटल नैंसी चलाया। होटल का कारोबार बहुत अच्छा था इसमें कोई दो राय नहीं लेकिन माना जा रहा है कि सुषमा व सदन को नैंसी में हो रही धन वर्षा ज्यादा वक्त तक रास नहीं आयी। उनके आपसी हित टकराने लगे। नौबत फौजदारी की आ गयी। यह महत्वपूर्ण बात यह है कि ताराचंद शास्त्री, सुषमा गर्ग व सदन गर्ग के पास कैंट बोर्ड के कागजात में काेई जायज मालिकाना हक नहीं था। ये तीनों ही अवैध कब्जेदार थे। आज भी जीएलआर में अशफाक जमानी व तलत जमानी की बेगम की मिलकियत यह बंगला है।
नैंसी होटल बदमाशों का बना था ठिकाना
जिस नैंसी पर धनवर्षा हो रही थी वो भला क्रिमिनल की नजर से भला कैसे बचा रह सकता था। वहां धीरे-धीरे बदमाशों की आमद बढने लगी। वेस्ट यूपी और दिल्ली में जिन टॉफ माफियाओं का नाम पूजा जाता था उनकी भी वहां आमद होने लगी और एक दिन वही हुआ जैसा कि ऐसे माहौल में अक्सर होता है। बताया जाता है कि एक टॉप क्रिमिनल ने जो अक्सर सदन गर्ग से वसूली को आता था उसने कुछ कहासुनी होने के बाद सदन की वहीं होटल में गोली मारकर हत्या कर दी। उसके बाद 210 सी सदर थाना पुलिस ने सील कर दिया। सालों यह सील पड़ा रहा। बाद में सील खुल भी गई, इसी बीच इसमें नाटकिय ढंग से बाल रोग विशेषज्ञ एक चिकित्सक की एंट्री हो गयी। वो भी यहां होटल चलाने चाहते थे लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया। बाद में उन्होंने इस होटल को कार्रवाई से बचाने के लिए कथित फर्जी कोरोना सेंटर खोल दिया। उसके बाद सीईओ व डीईओ आफिस भी इस बंगले को लेकर जीओसी इन चीफ लखनऊ ने किए ध्वस्तीकरण के आदेशों को भूल गया। इन अफसराें की नींद टूटे तो 210-सी के अवैध निर्माण ध्वस्त हों।