रैवेन्यू स्टाफ मालामाल-खजाना तंगहाल

कैंट बोर्ड: CBI खंगालेगी फाइल
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रैवेन्यू स्टाफ मालामाल-खजाना तंगहाल,  अध्यक्ष ब्रिगेडियर राजीव कुमार के सख्त निर्देश के बाद भी कैंट बोर्ड मेरठ प्रशासन फिलहाल ट्रेड लाइसेंस को लेकर गंभीर नजर नहीं आ रहा है। जानकारों की मानें तो ट्रेड लाइसेंस की अनिवार्यता की प्राणाली कैंट बोर्ड के रेवेन्यू सेक्शन स्टाफ के लिए जेब गरम करने का जरिया बनी हुई है। ट्रेड लाइसेंस के नाम पर सख्ती तो की जा रही है, लेकिन इस सख्ती का फायदा बजाए कैंट बोर्ड के खजाने को होने के रेवेन्यू सेक्शन के स्टाफ को अधिक हो रहा है। बीते साल 12 मार्च को हुई कैंट बोर्ड की एक बैठक में ट्रेड लाइसेंस के नाम पर महज 15 स्वीकृतियों की जानकारी दिए जाने पर कैंट बोर्ड अध्यक्ष कमांडर राजीव कुमार ने हैरानी जताते हुए टिप्पणी की थी कि पूरे छावनी क्षेत्र में इतनी बड़ी संख्या में व्यापारी होते हुए भी इतनी कम स्वीकृति का होना गलत है। उन्होंने दो टूक कहा था कि देश भर की सभी छावनियों में ट्रेड लाइसेंस प्रणाली अनिवार्य कर दी गयी है। इसके जरिये रेवेन्यू भी जनरेट होता है, इसलिए सीईओ इस ओर ध्यान दें। ट्रेड लाइसेंस बनाने को लेकर कारोबारियों पर सख्ती तो की जा रही है, लेकिन इस सख्ती का असर कैंट बोर्ड के खजाने के बजाए रेवेन्यू स्टाफ की जेब पर अधिक नजर आता है। मेरठ कैंट बोर्ड में ट्रेड लाइसेंस प्रणाली की शुरूआत मार्च माह में तत्कालीन सीईओ कैंट बोर्ड मेरठ नावेन्द्र नाथ के कार्यकाल में हुई थी।  व्यापार संघ पदाधिकारियों के साथ बैठक करके ट्रेड लाइसेंस बनवाने की व्यवस्था  कुछ समयावधि देकर ट्रेड लाइसेंस बनवाना अनिवार्य कर दिया गया था।  यहां यह भी गौरतलब है कि  जिस बैठक में कैंट बोर्ड का कार्यकाल छह माह के लिए बढ़ाया गया था उसी बैठक में निर्वाचित सदस्यों से ट्रेड लाइसेंस का अधिकार छीनकर सीईओ कैंट बोर्ड मेरठ को दे दिया गया था, लेकिन इस बदलाव का कोई फायदा हुआ है, ऐसा फिलहाल नजर तो नहीं आ रहा है। उल्टे हो यह रहा है कि ट्रेड लाइसेंस के नाम पर खेल किया जा रहा है। खेल भी ऐसा किया गया था जिसकी गूंज जीओसी इन चीफ लखनऊ तक सुनाई दी थी। हाईकोर्ट के आदेश पर सील बाउंड्री रोड स्थित होटल 22बी को इंजीनियरिंग सेक्शन और सेनेट्री सेक्शन के अधिकारियों ने खेल कर ट्रेड लाइसेंस जारी कर दिया था। इसका खुलासा किसी अन्य नहीं बल्कि अवैध निर्माणों को लेकर जांच को आए डायरेक्टर मध्य कमान डीएन यादव ने किया था। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ट्रेड लाइसेंस के नाम पर सरकारी खजाना भरने के बजाए बोर्ड स्टाफ के कुछ अफसर अपनी जेबें भरने में लगे हैं।

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