शर्मनाक मैला ढोने की प्रथा व मौतें, नई दिल्ली। रोक का कानून होने के बाद भी गुजरात राज्य में मैला ढोने की प्रथा केवल जारी ही नहीं है बल्कि. मैला ढोने वालों की लगातार हो रही इन मौतों ने चिंता बढ़ा दी है, क्योंकि ऐसा तब हो रहा है जब इस प्रथा को पूरे देश में अवैध घोषित कर दिया गया है. एक अंग्रेजी दैनिक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, राजकोट में 22 मार्च को दो लोगों की मौत हुई. 3 अप्रैल को दाहेज में 3 लोग मारे गए. इसके बाद 23 अप्रैल को ढोलका में भी दो लोगों की मौत हो गई और 26 अप्रैल को उत्तरी गुजरात के थराद में एक और मौत हो गई. सभी घटनाएं तब हुईं जब कर्मचारी बिना सुरक्षा उपकरणों के सीवर साफ करने के लिए उनमें उतरे और दम घुटने या जहरीली गैस के कारण उनकी मौत हो गई. मरने वाले सभी श्रमिकों को निजी ठेकेदारों द्वारा काम पर रखा गया था. राज्य सरकार द्वारा विधानसभा में बताया गया कि पिछले दो वर्षों में सीवर लाइनों की सफाई के दौरान 11 लोगों की मौत हो गई थी, यह संख्या हाल ही में हुईं इन आठ मौतों से पहले की है. जबकि 1 फरवरी 2022 से 31 जनवरी 2023 के बीच चार सफाई कर्मचारियों की जान गई. सामाजिक कार्यकर्ता और दलित संगठनों के समुदाय के नेता राज्य सरकार के आंकड़ों पर सवाल उठाते हैं और दावा करते हैं कि वास्तविक संख्या काफी अधिक है. गुजरात कांग्रेस अनुसूचित जाति विभाग के अध्यक्ष हितेंद्र पिथाड़िया ने से कहा, ‘गुजरात में भूमिगत सीवर लाइनों या मैनहोल की सफाई करते हुए 150 से अधिक श्रमिकों की मौत हुई है और सभी दलित या आदिवासी हैं या हाल के राजकोट मामले में अल्पसंख्यक समुदाय का एक व्यक्ति है.’ मौतों में वृद्धि के बाद गुजरात कांग्रेस के नेता हिरेन बैंकर ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) को एक पत्र लिखकर गुजरात में सफाई कर्मचारियों की मौतों की जांच राष्ट्रीय अधिकार निकाय द्वारा कराए जाने की मांग की है.