शर्मनाक फिर भी पूजनीय, हिन्दू पुराणों में अनेक ऐसे देवता और ऋषि मुनि हुए हैं जिन्होंने शर्मसार करने वाले कृत्य किए और फिर भी उनको पूजा जाता है.
गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या और इंद्र देव ने सहवास किया. एक दिन ऋषि गौतम गंगा स्नान के लिए गए थे. तभी इंद्र वहां आ गए और ऋषि गौतम का रूप धारण कर सहवास किया. जब ऋषि लौटे तो उन्होंने अहिल्या का शिला व इंद्र के जिस्म पर यौनी बन जाने का श्राप दिया. अहिल्या की मुक्त राम ने वनगन पर की.
देव गुरू ब्रहस्पति के यहां चंद्रमा शिक्षा ग्रहण कर रहे थे. ब्रहस्पति की पत्नी तारा का दिल चंद्रमा पर आ गया. वह ब्रहस्पति को छोड़कर चंद्रमा के साथ चली गई. इतना ही नहीं उन्होंने चंद्रमा के पुत्र को भी जन्म दिया. इसी की वजह से देवासुर संग्राम भी हुआ. चंद्रमा से गर्भवती होने के बाद वह पुन: ब्रहस्पति के पास लौट आयीं, ब्रहमा जी कहने पर.
मंदोदरी स्वर्ग की अप्सरा हेमा की पुत्री मधुरा थी, वह शिव पर आसक्त थी, पार्वती जी ने जब उसके शरीर पर शिव का भभूत देखा तो 12 साल तक कुंए में मेढकी के रूप में रहने का श्राप दे दिया. श्राप पूर्ण होने के बाद वह देवासुर मयासुर को मिली. मायासुर के कोई संतान नहीं थी. उन्होंने मधुरा को पाला और नाम मंदोदरी रखा. रावण व मंदोदारी एक दूसरे पर आसक्त थे हालांकि मायासुर नहीं चाहता था कि रावण से मंदोदरी का विवाह हो. फिर भी मंदोदारी रावण के साथ लंका आ गई. रावण की मौत के बाद मंदोदरी ने विभिषण से विवाह किया.
महर्षि अगत्स्य को पुलस्त्य ऋषि का पुत्र माना जाता है। उनके भाई का नाम विश्रवा था जो दशानन रावण के पिता थे। पुलस्त्य ऋषि ब्रह्मा के पुत्र थे। अगस्त्य ऋषि वशिष्ठ के बड़े भाई थे. उन्होंने मंत्र शक्ति से एक सुंदर कन्या का निर्माण किया. विदर्भ नरेश को उस कन्या को दान दे दिया. विदर्भ नरेश ने कन्या का नाम लोपमुद्रा रखा. जब वह बड़ी हुई तो अगस्त्य ने विदर्भ के समक्ष लोप मुद्रा से विवाह का प्रस्ताव रखा. लोप भी ऋषि अगस्त्य से विवाह को तैयार हो गई. लेकिन उसने शर्त रखी कि एक छदम आवरण बनाकर ही उससे सहवास किया जाए. अगस्त्य ने ऐसा ही किया.
समुंद्र मंथन से देवी तारा भी निकली थीं. बानर राज सुषेन व बाली दोनों ही उन आसक्त थे, लेकिन ब्रह्मा जी ने बाली से तारा का विवाह करा दिया. बाली जब युद्ध के लिए गए तो सुग्रीव व तारा ने संभाेग किया. जब बाली लौटा तो उसने सुग्रीव को युद्ध में हराकर तारा को दोबारा हासिल कर लिया इतना ही नहीं सुग्रीव की पत्नी को भी छीन लिया. बाद में राम ने छल से सुग्रीव का वध किया, तब कहीं जाकर सुग्रीव को उसकी पत्नी मिल सकी.
पांडव कुल की गांधारी ने सूर्य देव से संभोग किया, जिससे उन्हें कर्ण पैदा हुआ, सूर्य पत्र कर्ण को जब जन्म दिया तो उनकी आयु मात्र आठ साल थी, वह अविवाहित थीं, उन्होंने कर्ण जल में बहा दिया. गंगा में बहते जा रहे कर्ण को एक सूत ने बचा लिया और पाला. बाद में कर्ण की असलियत गांधारी पर खुल गयी. पुराणों में द्रोपदी को लेकर उल्लेख है कि वह एक-एक साल प्रत्येक पांडव के साथ रहती थीं. पुराणों में इसी प्रकार की एक अन्य कथानुसार स्वयंवर में कुंती और पांडु का विवाह हुआ। पांडु को एक ऋषि द्वारा यह श्राप मिला हुआ था कि जब भी वह किसी स्त्री का स्पर्श करेगा, उसकी मृत्यु हो जाएगी। पांडु की मृत्यु के पश्चात कुंती ने धर्म देव को याद कर उनसे युद्धिष्ठिर, वायु देव से भीम और इन्द्र देव से अर्जुन को प्राप्त किया। लेकिन उनका कौमार्य भंग नहीं हुआ।