चंद सिक्कों के लिए सांसों में घोल रहे हैं जहर, मेरठ/ दिल्ली एनसीआर में घुल रहे प्रदूषण के जहर को लेकर भले ही एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिव्यूनल) व सुप्रीमकोर्ट सख्त हों, लेकिन मेरठ के आरटीओ और कार्यालय की पीटीओ सरीखे दूसरे अधिकारी पूरी तरह से लापरवाह बने हुए हैं। तमाम आरटीआई एक्टिविस्ट का आरोप है कि आरटीओ व उनके अफसर चंद सिक्कों के लिए वातावरण को जहरीला बनाने पर तुले हुए हैं। सांसों में जहर घोला जा रहा है। कुछ आरटीआई एक्टिविस्ट आरटीओ व पीटीओ को इसको लेकर सुप्रीमकोर्ट में घसीटने की बात कह रहे हैं। उन्होंने जानकारी दी कि इसका मसौदा जुटाया जा रहा है। नाम न छापे जाने की शर्त पर उन्होंने बताया कि अगले माह आरटीओ व आरटीओ (प्रवर्तन) को पक्षकार बनाकर सुप्रीमकोर्ट में आरटीआई दायर की जाएगी। इसके लिए तमाम साक्ष्य तो जुटा लिए गए हैं, केवल ड्राफ्टिंग भर की जानी बाकि है। जानकारों का कहना है कि यदि ऐसा हुआ तो आरटीओ के लिए मुसीबत बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती है। एक अन्य आरटीआई एक्टिविस्ट ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर किए जाने की बात कही है।
यह है पूरा मामला
नाम न छापे जाने की शर्त पर आरटीआई एक्टिविस्ट ने जानकारी दी कि यह पूरा मामला आरटीओ व आरटीओ (प्रवर्तन) की गुरूग्राम, दिल्ली, नोएडा व गाजियाबाद से खदेडेÞ गए डीजल वाहनों को लेकर की जा रही कारगुजारियों से जुड़ा है। दिल्ली एनसीओर की आबोहवा खराब होने के बाद एनजीटी व सुप्रीमकोर्ट ने दिल्ली एनसीओर में दस साल की उम्र पूरी कर चुकी डीजल व पंद्रह साल की उम्र पूरी कर चुकी पेट्रोल गाड़ियों की चलने पर रोक लगा दी है। रोक के बाद इन तमाम गाड़ियों को जो मियाद पूरी कर चुकी थीं, उन्हें गुरूग्राम, नोएडा, दिल्ली व गाजियाबाद से खदेड़ दिया गया। आरोप है कि वहां से जो गाड़ियां खदेड़ दी गयीं वो सभी आरटीओ के अधिकारियों की छत्रछाया में मेरठ में दौड़ रही हैं। ना कोई रोकने वाला ना कोई टोकने वाला।
प्रवर्तन दल के पीटीओ
जानकारों का कहना है कि इसको लेकर बड़ी जिम्मेदारी आरटीओ कार्यालय की पीटीओ की है, लेकिन जिस प्रकार से शहर की सड़कों पर इस प्रकार के वाहन नजर आ रहे हैं उससे तो यही लगता है कि पैसा बोलता है… वर्ना कोई वजह नहीं कि पीटीओ इन पर कार्रवाई ना करे।
टोकन है तो नो टेंशन
इसको लेकर आरटीओ के अधिकारियों को सुप्रीमकोर्ट में घसीटने की बात करने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट सनसनी खेज खुलासा करते हुए बताया कि शहर की सड़कों पर इस प्रकार के वाहन दौड़ाने से पहले वाहन स्वामी के लिए पीटीओ या उनके स्टॉफ से टोकन लेना जरूरी होता है। यह टोकन दो से पांच हजार रुपए तक या फिर और भी ज्यादा प्रति माह की रकम देने के बाद मिल जाते हैं। उम्रदराज हो चुके जिन वाहनों के चालकों के पास ये टोकन होते हैं उन्हें किसी प्रकार चैकिंग से नहीं गुजरना पड़ता और न ही उन्हें किसी प्रकार की कार्रवाई मसलन चालान या सीज होने का डर होता है। चालान या सीज केवल वहीं गाड़ियां की जा रही हैं जिनके पास सुविधा शुल्क वाला टोकन नहीं होता है। ऐसी तमाम गाड़ियां जिनमें टैÑक्टर-ट्रालियां भी शामिल हैं यदि टोकन नहीं है तो वो चार कदम भी नहीं पाती हैं और यदि सुविधा शुल्क वाला टोकन है तो फिर कोई टेंशन नहीं।
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उत्तर प्रदेश परिवहन विभाग के आदेशों पर भारी पीटीओ के टोकन
मेरठ, एनसीआर इलाके में प्रदूषण के कारण हालात काफी मुश्किल हो रहे हैं। दिल्ली सरकार के बाद अब उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदूषण को लेकर कडे निर्देश काफी पहले जारी किए हुए हैं। प्रदेश के परिवहन विभाग ने पूरे एनसीआर इलाके में 10 साल से पुरानी डीजल गाड़ियों पर रोक लगा दी है, लेकिन इस रोक के आदेश पर आरटीओ की पीटीओ का टोकन भारी पड़ रहा है। वहीं दूसरी ओर सूबे की योगी सरकार के परिवहन विभाग के रोक के आदेशों की बात की जाए तो ये आदेश नोएडा, गाजियाबाद, मेरठ, बागपत, बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, शामली और हापुड़ तक प्रभावी हैं। एनसीआर में करीब 9 लाख ऐसे वाहन हैं जो सांसों में जहर घोलने का काम कर रहे हैं। मेरठ में ऐसे वाहनों को आरटीओ और पीटीओ का खुला संरक्षण हासिल है, का आरोप आरटीआई एक्टिविस्ट लगा रहे हैं।
दम तोड़ गया कानून
नियमानुसार 10 साल पुराने डीजल व 15 साल पुराने पेट्रोल वाहन अब शहर सड़क पर नहीं उतरे जा सकते यह नियम बना दिया गया है, लेकिन शासन का यह कायदा कानून आरटीओ के अफसरों की कमाई के लालच में दम तोड़ रहा है। वाहन स्वामियों ने इन वाहनों को बेचने या दूसरे जिलों में रजिस्ट्रेशन कराने के लिए एनओसी नहीं ली तो अधिनियम की धारा 53 (1) के तहत रजिस्ट्रेशन स्वत: रद्द हो जाएगा। वायु प्रदूषण से लोगों का दम घुट रहा है। एनसीआर तक इसकी आंच पहुंच रही है। लोग बीमार हो रहे हैं, इसको देखते हुए एनजीटी ने दिल्ली समेत एनसीआर में 10 साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों को काफी पहले प्रतिबंधित कर दिया है, लेकिन सच्चाई ये है कि अकेले मेरठ में ही 80 हजार से ज्यादा प्रतिबंधित वाहन धुआं उगलते दौड़ रहे हैं। इसके लिए कोई और नहीं बल्कि आरटीओ के तमाम अफसर जिम्मेदार हैं। वाहनों को पांच जुलाई 2019 तक शहर से बाहर करने का नोटिस जारी किया गया था लेकिन उस नोटिस का क्या हश्र हुआ खुद आरटीआई एक्टिविस्ट का कहना है कि शायद आरटीओ को भी खुद ना इस बात का पता हो।
दलालों को पता है आरटीओ को नहीं
आरटीओ आफिस में आने वाले लोगों का गाड़ियों से संबंधित काम कराने वाले कुछ दलालों ने नाम न छापे जाने की शर्त पर बताया कि जो नोटिस पूर्व में तत्कालीन आरटीओ के कार्याकाल में जारी किया गया था उसमें कहा गया था कि 31 मई 2019 तक यूएससी, यूएसएल, यूएसटी, यूएसडी, यूआरजे, यूटीजी, यूएचडी, यूपी-15 ए, बी, सी, डी, एफ, टी, एटी, बीटी व सीटी सीरीज वाले वाहन जो दस साल की आयु सीमा पूरी कर चुके हैं, उन्हें 30 दिन के अंदर एनसीआर क्षेत्र व उत्तर प्रदेश के प्रतिबंधित जनपदों को छोड़कर अन्य जनपदों में एनओसी लेनी होगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस शख्स ने बतायाकि यह भी हो सकता है कि उस नोटिस की वर्तमान आरटीओ को जानकारी तक ना हो।
20 हजार से ज्यादा पुराने वाहन
जिले में करीब 20 से 22 हजार से ज्यादा वाहन ऐसे हैं जो बाहरी राज्यों में रजिस्टर्ड हैं और इनका संचालन यहां पर हो रहा है। इसमें दिल्ली व हरियाणा के नंबर के वाहन सबसे ज्यादा हैं। डीजल ट्रक तो 30 से 40 साल पुराने भी सड़कों पर दौड़ते मिल जाते हैं। डग्गामार बसें भी 10 साल से ज्यादा पुरानी हो चुकी हैं। 25 साल पहले बंद हो चुकी मेटाडोर तक कुछ रूट पर सवारियां ढोहते देखी जा सकती हैं।
50 हजार प्रतिबंधित वाहन दौड़ रहे शहर में
आरटीओ से एक सेवानिवृत्त कर्मचारी ने नाम न छापे जाने की शर्त पर बताया कि 31 अक्तूबर 2007 से पहले के 11 हजार 226 डीजल वाहन ऐसे हैं जो अभी तक एनओसी लेकर बाहर नहीं गए हैं। ये वाहन शहर और आसपास दौड़ रहे हैं। इसके अलावा 15 साल पुराने 42 हजार से ज्यादा पेट्रोल वाहन है जो शहर में दौड़ रहे हैं। दोनों श्रेणियों के करीब 55 हजार प्रतिबंधित वाहन एनजीटी के आदेशों को हवा में उड़ाते हुए शहरवासियों का दम घोट रहे हैं। उन्होंने बताया कि ऐसा नहीं कि आरटीओ इससे बेखबर हों, पता सब को लेकिन बात तो तब है कि जब ऊपरी कमाई का लालच छोड़कर जिस काम के लिए सरकार ने भेजा है अफसर वो काम करें।