लीज एक्सपायर-हो गया कब्जा,
सेवा में श्री राजनाथ सिंह जी
रक्षा मंत्री महोदय, भारत सरकार
साउथ ब्लाक नई दिल्ली
विषय: कैंट बोर्ड के कुछ अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा मेरठ के सरकुलर रोड स्थित बंगला 276, जिसकी लीज एक्सपायर हो चुकी थी, उस पर बड़े भूमाफियाओं का कब्जा कराकर अवैध होटल बनवा देने की मंत्रालय द्वारा जांच कराए जाने की प्रार्थना के संबंध में
महोदय,
मेरठ कैंट बोर्ड के लीगल एडवाइटजर ने मेरठ छावनी सरकुलर रोड स्थित जिस बंगला नंबर 276 को अवैध रूप से कब्जाया हुआ बताया तथा भ्रष्ट तरीके अपनाकर कैंट बोर्ड में नाम चढ़वाया जाना व फर्जी वसीयतनामें तैयार कराकर नक्शा पास कराने की साजिश करार दिया तथा तत्कालीन सीईओ राजीव श्रीवास्तव ने जिसके नक्शे की फाइल रिजेक्ट कर दी, उस बंगल में अवैध रूप से होटल व्हाइट हाउस बना दिया गया। कैंट बोर्ड के अधिकारियों व स्टाफ के भ्रष्टाचार की इससे बढ़कर कोई दूसरी मिसाल नहीं हो सकती। यह सब उस बंगले हुआ जिसकी लीज एक्सपायर हो चुकी थी तथा नियमानुसार जिस पर कैंट प्रशासन के उच्च पदस्थ अफसरों को कब्जा ले लेना चाहिए था।
जिस बंगले की लीज एक्सपायर हो चुकी हो उस पर कब्जा लेने के बजाए मेरठ कैंट प्रशासन के उच्च पदस्थ अधिकारी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे और बंगले पर अवैध रूप से न केवल कब्जा हो गया बल्कि वहां अवैध निर्माण कर होटल व्हाइट हाउस भी बना दिया गया। लेकिन इसके लिए जिम्मेदार कैंट प्रशासन के उच्च पदस्थ अफसरों की नींद नहीं टूटती नजर आ रही है। सरकुलर रोड स्थित बंगला 276 मेरठ कैंट प्रशासन के भ्रष्टाचार की जीती जागती तस्वीर बन सीना तानकर खड़ा है। मेरठ छावनी स्थित बंगला 276 जीएलआर में सूरजबल दीक्षित, सतीश बल दीक्षित आदि के नाम दर्ज था। यह लीज का बंगला था तथा इसकी लीज की मियाद भी पूरी हो चुकी थी। दीक्षित फैमली बेगमपुल दवा के जस्ट अपोजिट रहती थी। जिनके नाम यह बंगला जीएलआर में दर्ज था, उनकी अरसे पहले मौत हो चुकी है। उनके जो ब्लड रिलेशन के वारिसान हैं वो भी मेरठ छोड़कर जा चुके हैं। बंगला पूरी तरह से लावारिस अवस्था में था। इस बीच इसकी लीज भी खत्म हो चुकी थी। इस बंगले के स्टेटस की भनक किसी प्रकार से कामरा व उसके साथी भूमाफियाओं काे लग गयी। उन्होंने इस बंगले पर गिद्ध दृष्टि डाल दी। इसके लिए फिर तमाम लाेगों ने खेल शुरू कर दिया। इसके लिए सबसे पहला काम दीक्षित फैमली जिनके नाम यह बंगला जीएलआर में दर्ज था, उनके कुछ रिश्तेदारों को तलाश गया। उन्हें भारी भरकम लालच देकर कथित रूप से नकली कागजात तैयार कराए गए और कामरा ने इसकी पावर ऑफ अटारनी तैयार करा ली। जबकि इस बंगले की लीज खत्म हो चुकी थी, जिनके नाम यह बंगला जीएलआर में दर्ज था उनके ब्लड रिलेशन से कोई नहीं था, दूर के रिश्तेदारों की मदद से सारा खेल किया गया। यह खेल केवल यही तक सीमित नहीं रहा। इस खेल में असली किरदार कैंट बोर्ड के कुछ तत्कालीन मैंबरों ने निभाया। करीब बीस लाख रुपए बतौर रिश्वत के तौर पर कैंट बोर्ड के तत्कालीन मैंबरों व अधिकारियो में बांटे गए। जिसके चलते इस बंगले को मेरठ कैंट बोर्ड के तमाम अनुभागों ने अपनी रिपोर्ट में क्लीनचिट दे दी। नतीजा यह हुआ कि भ्रष्टाचार व रिश्वत के बूते कब्जाए गए इस बंगले में कामरा का नाम कैंट बोर्ड की फाइलों में चढ़ा दिया गया। यहां तो जो हुआ सो हुआ अब इस बंगले को लेकर कैंट बोर्ड के अफसरों व स्टाफ के भ्रष्टाचार का असली भी शुरू हुआ और वो खेल बेपर्दा भी हाे गया। कैंट बोर्ड की फाइलों में नाम चढ़ जाने के बाद कमरा ने इस बंगले तोड़कर बनाने के लिए स्वीकृति हासिल करने के कैंट बोर्ड में नक्शा दाखिल कर दिया। साथ ही बंगले की पुरानी बिल्डिंग को भीतर ही भीतर होटल व्हाइट हाउस में तब्दील करना शुरू कर दिया। जिस दाैरान यहां अवैध रूप से होटल व्हाइट हाउस का काम चल रहा था, उसी दौरान तत्कालीन सीईओ ने कैंट बोर्ड के जेई अवधेश यादव को साथ लेकर वहां छापा भी मारा था। वहां अवैध निर्माण होता पाया गया। इसको लेकर उन्होंने पूरे इंजीनियरिंग सैक् शन को जमकर फटकार भी लगायी। कुछ दिन काम बंद रहा, लेकिन कैंट बोर्ड के जिन भ्रष्ट कर्मचारियों ने कामरा से मोटी रकम ली थी, उन्होंने काम शुरू करा दिया। वहीं दूसरी ओर इस बंगले का नक्शे की फाइल कैंट बोर्ड के तमाम सेक्शन से ओके होकर तत्कालीन सीईओ राजीव श्रीवास्तव के पास पहुंची तो उन्हों कुछ शक हुआ। उन्होंने कैंट बोर्ड के हाईकोर्ट में एडवाइजर अधिवक्ता से इस बंगले को लेकर विधिक राय मांगी। एडवाइजर अधिवक्ता ने जो रिपोर्ट सीईओ राजीव श्रीवास्तव को भेजी वो किसी विस्फोट से कम नहीं थी। हाईकोर्ट के अधिवक्ता ने पूरे फाइल की जांच कर पाया कि जितने भी पेपर बंगले का मालिकाना हक साबित करने के लिए लगाए गए हैं वो सभी फर्जी हैं। बंगले में कामरा का नाम चढ़ाने की प्रक्रिया में भी जबरदस्त तरीके से जमकर भ्रष्टाचार किया गया है। तत्कालीन सीईओ को शायद कैंट बोर्ड के स्टाफ से इतने बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार की उम्मीद नहीं रही होगी। उन्होंने हाईकोर्ट के एडवाइजर की रिपोर्ट के आधार पर नक्शा रिजेक्ट कर दिया। लेकिन हैरानी तो इस बात की है कि जिस बंगले का मालिकाना हक नहीं, कैंट बोर्ड के स्टाफ के कुछ भ्रष्ट कर्मियों की मदद से उसमें चढ़वा लिया गया। इससे भी आगे बढ़ते हुए दुस्साहस का परिचय देते हुए नक्शा भी दाखिल कर दिया गया। दाखिल किया गया नक्शा सीईओ द्वारा रिेजेक्ट कर दिए जाने के बाद वहां भव्य व्हाइट हाउस होटल बना जाता है। कैंट बोर्ड में यह भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा है, जिसमें रक्षा मंत्रालय स्तर से जांच कराकर कार्रवाई किया जाना अवश्याम्भी है।
प्रार्थी
शेखर शर्मा, पुत्र केके शर्मा
निवासी- जीएफ-19, अंसल कोर्ट यार्ड
कंकरखेड़ा बाईपास मेरठ-उत्तर प्रदेश