ठेकेदार के कारिंदों के कब्जे में कैंट बोर्ड, डायरेक्टर मध्य कमान के चाबुक और गंभीर आरोपों के चलते भले ही वर्क फोर्स का ठेका खत्म कर दिया गया हो, लेकिन मेरठ कैंट बोर्ड की यदि बात की जाए तो वहां आज भी बोर्ड से बाहर किए गए ठेकेदार के कारिंदों का ही कब्जा है। जिसके चलते कैंट बोर्ड के गोपनीय दस्तावेजों के बाहर लीक होने की आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता। सबसे हैरानी की बात तो यह है कि कैंट बोर्ड के उच्च पदस्थ अफसर इससे पूरी तरह से बेखबर हैें, जो हालात बने हैं, उससे लगता है कि किसी बड़ी घटना या घपले का इंतजार है। इस आशंका के पीछे ठोस तर्क कोई अन्य नहीं बल्कि कैंट बोर्ड के विभिन्न सेक्शन के कर्मचारियों ने नाम न छापे जाने की शर्त पर दिए हैं। यह ठीक है कि वर्क फाेर्स का ठेका खत्म कर दिया गया। लेकिन ठेकेदार के उन संविद स्टाफ का क्या जो आज भी कैंट बोर्ड में गोपनीय समझे जाने वाले सेक्शन पर काविज हैं। जीएलआर व ऐसे ही दूसरे बेहद गोपनीय फाइलों के पासवर्ड व अन्य जानकारी उनके कब्जे में है। इस बात की कौन गारंटी लेगा कि ये संविदा कर्मी ठेकेदार के प्रति वफादारी नहीं निभाएंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि इन्हें कैंट बोर्ड में नौकरी ठेकेदार की वजह से मिली। इससे भी बड़ी बात यह कि इस बात की क्या गारंटी कि जीएलआर रजिस्टर व रेवेन्यू के अभिलेखों में ठेकेदार के ये कारिंदे छेड़खानी नहीं करेंगे। इस प्रकार की आशंकाओं को प्रथम दृष्टा खारिज भी नहीं किया जा सकता। जिस प्रकार की आशंकाएं जतायी जा रही हैं, यदि वैसा कुछ होता है तो इसके लिए जिम्मेदार कौन होगा कैंट बोर्ड अध्यक्ष, सीईओ कैंट या बोर्ड के निर्वाचित सदस्य। वर्क फोर्स के ठेकेदार के इन कारिंदों से कैंट बोर्ड के अफसरों की इस हमदर्दी की वजह क्या है। सवाल यही कि क्यों नहीं इसका संज्ञान लिया जा रहा है या बड़े व तमाम जिम्मेदार अफसरों को कैंट बोर्ड में किसी बड़े घपले घोटाले का इंतजार है।