जैन मंदिर से भव्य शोभा यात्रा, श्री 1008 शान्तिनाथ दिगम्बर जैन पंचायती मन्दिर असोडा हाउस मेरठ व महावीर जिनालय पश्चिमी कचहरी मार्ग से भव्य शोभयात्रा निकाली गयी। घोेड़े के प्रथम स्वर्ण रथ पर शांतिनाथ भगवान के ख्वासी बनने का सौभाग्य रमेश जैन परिवार को मिला। श्री जी को लेकर स्वर्ण रथ पर बैठने का सौभाग्य संजय जैन नव रंग वालों को प्राप्त हुआ, सारथी का सोभाग्य राकेश जैन अंकित जैन को मिला, कुबेर का सौभाग्य नीरज जैन को मिला, ईशान इन्द्र एवम् सनत इन्द्र का सौैभाग्य शान्तिनाथ युवा संघ के रचित, शोर्य, सक्षम, हर्षित, आर्जव, सम्वेग, शाशवत, सार्थक काे व प्रमुख आरती का सौभाग्य वीर नारी युविका संघ की सौम्या, मान्या, आर्जवी, अन्नया, संस्कृती, सम्पदा एवं शिल्पी आदि का रहा । शुभम जैन ने कुबेर बन, नृत्य कर कुबेर का कलशा भरा। जिसमें घोेड़े के द्वितीय स्वर्ण रथ पर पारसनाथ भगवान के ख्वासी बनने का सौभाग्य कमल जैन परिवार को मिला एवं श्री जी को लेकर रथ पर बैठने का सौभाग्य नवीन जैन को प्राप्त हुआ, सारथी का सोभाग्य संजय जैन सार्थक जैन को मिला, कुबेर का सौभाग्य नवीन जैन को मिला। कपिल जैन एवम् संजय जैन भजन किया। सम्पदा संस्कृति शिल्पी ने चंवर लेकर जो नृत्य किया। यात्रा पश्चिमी कचहरी मार्ग सेे आर0जी0 डिग्री-इन्टर कालिज-बेगमपुल-तिलक रोड-पी0एल0शर्मा रोड होते हुए महावीर जिनालय पाण्डुक शिला पहुंची जहां 108 कलशो द्वारा अभिषेक किया गया एवं पूजा अर्चना की ।असोडा हाउस मन्दिर जी पर अभिषेक कर प्रतिमा जी को विराजमान कराया। सिद्धांत शास्त्री जी ने बताया त्याग धर्म की जब चर्चा चलती है तब तब उसका सम्बन्ध दान से जोड़ लिया जाता है, जबकि दोनो मे अन्तर है। त्याग धर्म है और दान पुण्य है । दानी को राजा और त्यागी को महाराज कहा जाता हैे । धर्म की इमारत त्याग पर खड़ी होती है । धर्म आत्मा को जीवित रखने के लिए त्याग अत्यन्त आवश्यक होता है । रथ यात्रा में राकेश जैन, श्रीयांस, पूनम, विपिन, सुुभाष, रमेश, योगेश, विपुल, अतुल, आभा, शोभा, पूनम, सोनिया, शशि, मनीषा, नीना, सविता, मनोज, अनिल, शुसील ने सहयोग किया।