डूबी जब दिल की नैया सामने थे किनारे, मेरठ नगर निगम महापौर प्रत्याशी के तौर पर जाट पंजाबी समीकरण पर सोलह आने खरी उतरने वाली बीना वाधवा के नाम पर लखनऊ से लेकर दिल्ली तक सहमति बन चुकी थी नाम का एलान भर होना बाकि रह गया था, लेकिन ऐन मौक पर सितारों ने करवट बदलनी शुरू और देखते ही देखते सितारा डूब गया। मेरठ नगर निगम के महापौर पद के प्रत्याशी की दौड़ में जो जिन प्रमुख में मुकाबला था उनमें पंजाबी/जाट कोटे से कैंट बोर्ड की निवर्तमान उपाध्यक्ष बीना वाधवा, पूर्व मेयर हरिकांत अहूलवालिया, बकौल समर्थक संघ खेमे की ओर से जिनका नाम चलाया जा रहा था डा. तनुराज सिरोही और करीब लास्ट के तीन से चार दिन एकाएक चर्चा में आए पूर्व विधायक रविन्द्र भडाना के नाम की चर्चा भाजपा खेमे में की जा रही थी। जहां तक पूर्व विधायक रविन्द्र भडाना की बात है तो कुछ लोग जब उन्हें बधाई देने पहुंचे तो उन्होंने स्वयं आगे बढकर इस बात का खंडन किया कि उनकी ओर से टिकट मांगा गया है या फिर वह टिकट की दौड़ में शामिल हैं। इसके बाद रेस में कुल तीन नाम रह गए थे। इनमें बीना वाधवा, हरिकांत अहलूवालिया और डा. तनुराज सिरोही। मेरठ के बागपत रोड हरमन सिटी स्थित क्षेत्रीय कार्यालय से शुरूआती चक्र में बीना वाधवा को कंसीडर नहीं किया जा रहा था, लेकिन सपा-रालोद गठबंधन से निपटने के लिए बीना वाधवा को मुकाबले में शामिल किए जाने के अलावा कोई चारा नहीं रह गया था। दरअसल मेरठ के चुनाव के रणनीतिकार जीत के नाम पर जिस समीकरण को लेकर आगे बढ़ रहे थे उसमें दो टूक बता दिया गया था कि अकेले परंपरागत वोटों के बूते नगर निगम में कमल खिलाना आसान नहीं होगा। इसके लिए चेहरा ऐसा होना चाहिए जिसके बूते पर करीब चालिस फीसदी मतों का एक्सट्रा भी जुड़ा हो जाए। इसमें मुसलमान भी होने चाहिए। जितना मुसलमान बंटेगा उतना ही नगर निगम में महापौर की कुर्सी तक पहुंचना आसान होगा। इन समीकरणों के चलते ही बीना वाधवा का नाम मजबूत माना जा रहा था। लास्ट में जो दो नाम बचे थे उनमें बीना वाधवा का पलड़ा भारी था। उसके बाद विराेधी खेमे या कहें दूसरे खेमे की ओर से इवेंट मैनेजमेंट का इंतजाम किया गया। इवेंट मैनेजमेंट के बाद उसकी कतरने आला कमान को भेजी गयीं। बस यहीं से जो सितारे चमक रहे थे, उन्हाेंने एकाएक गोता खाना शुरू कर दिया और जिस मौके की तलाश में हरिकांत के पैरोकार बैठे थे वो उनके हाथ आ गया फिर वही हुआ जो सामने है।