एक अरब का हुआ था संहार, भरी सभा में जब दुशासन द्राेपदी का चीर हरण करेगा तो फिर महाभारत होगी। केशव और भीष्म पितामाह ने इसको टलवाने के लिए दुर्योध्न को समझाने का भी प्रयास किया, लेकिन नाश मनुष्य पर जब छाता है तो पहले विवेक मर जाता है। महाभारत तो विधि ने तय कर दी थी इसलिए होनी ही थी लेकिन करीब एक से डेढ करोड का संहार हुआ। अपनों ने अपनों का रक्त बहाया। रणभूमि में अर्जुन ने जब देखा कि अपनों से ही युद्ध है तो उसने गांडिव रख दिया। बस यही से केशव ने गीता का ज्ञान दिया और महाभारत का मार्ग प्रशस्त हुआ। इस युद्ध में खून के रिश्ते नाते थे सब तार-तार हो गए। 18 दिन में कर दिया एक अरब का संहार। योद्धाओं के रक्त से कुरूक्षेत्र में खून की नदी बहने लगी। वो युद्ध नहीं दुनिया का पहला विश्व युद्ध था जिसमें घातक शस्त्रों का प्रयोग किया गया। वैसे शस्त्र आज तक किसी भी युद्ध में इस्तेमाल नहीं किए गए हैं। युद्ध खत्म हुए करीब पांच हजार साल बीत चुके हैं लेकिन कुरूक्षेत्र की धरती आज भी रक्तवर्ण है। महाभारत जो मानव इतिहास का सबसे विध्वंसक और पूरी दुनिया को योद्धाओं से खाली कर देने वाला युद्ध माना गया है। मरने वालों में इनमें करीब 70 लाख कौरव पक्ष से तो 44 लाख लोग पांडव सेना के शामिल थे। इस विश्वयुद्ध में न केवल भारतवर्ष के राजाओं ने भाग लिया था बल्कि पूरी दुनिया के राजाओं ने हिस्सा लिया। महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास ने महाभारत की रचना करते हुए कहा था कि, यन्नेहास्ति न कुत्रचित्। अर्थात जिस विषय की चर्चा इस ग्रंथ में नहीं है,उसकी चर्चा कहीं भी उपलब्ध नहीं है। आज भी हम किसी बड़े युद्ध की तुलना महाभारत के साथ करते हैं। महाभारत के बारे में एक सवाल जो हमारे दिमाग में अकसर आता रहता है वह ये है कि इस युद्ध में कितने लोग मारे गए थे? महाभारत के स्त्री पर्व के एक प्रसंग में धृतराष्ट्र को युधिष्ठिर एक प्रश्न के उत्तर में बताया कि युद्ध में 1 अरब 66 करोड़ 20 हजार वीर मारे गए हैं। इनके अलावा 24 हजार 165 वीरों का कोई पता ही नहीं है।
महाभारत युद्ध अपने आप में बहुत ही विचित्र युद्ध था जिसमें अनेक तरहों के दिव्यआस्त्रों का प्रयोग किया गया था। वे अस्त्र इतने खतरनाक होते थे कि आज के परमाणु हथियार भी उनके सामने टिक नहीं सकते हैं। इसी कारण से इस युद्ध में इतने योद्धाओं की अपनी जान गंवानी पड़ी थी। युद्ध में मारे गए योद्धाओं के बारे में जानकर धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर को उन सभी का अंतिम संस्कार करने के लिए कहा। युधिष्ठिर ने कौरवों के पुरोहित सुधर्मा और अपने पुरोहित धौम्य को तथा संजय, विदुर, युयुत्यु आदि लोगों को युद्ध में मारे गए सभी योद्धाओं का शास्त्रोत अंतिम संस्कार करने की आज्ञा दी। इसके बाद सभी गंगा तट पर पहुंचे और मृतकों को जलांजलि दी।
महाभारत में करोड़ों की संख्या में वीरों को वीरगति प्राप्त हुई है क्योंकि आज भी कुरूक्षेत्र में महाभारत काल के कुछ अवशेष मिलते हैं, इससे हम समझ सकते हैं कि वह युद्ध कितना बड़ा हुआ होगा जिसके अवशेष आज भी इतने सालों के बाद भी मिलते हैं। कौरवों की ओर से दुर्योधन व उसके 99 भाइयों सहित भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा, मद्र नरेश शल्य, भूरिश्र्वा, अलम्बुष, कृतवर्मा कलिंगराज श्रुतायुध, शकुनि, भग दत्त, जयद्रथ, विन्द-अनुविन्द, काम्बोजराज सुदक्षिण और बृहद्वल युद्ध में शामिल थे। पांडवों की ओर से युधिष्ठिर व उनके 4 भाई भीम, नकुल, सहदेव, अर्जुन सहित सात्यकि, अभिमन्यु, घटोत्कच, विराट, द्रुपद, धृष्टद्युम्न, शिखण्डी, पांड्यराज, युयुत्सु, कुन्तिभोज, उत्तमौजा, शैब्य और अनूपराज नील युद्ध में शामिल थे।