गंगा की गोद में प्यासे, वेस्ट यूपी में गंगा के दूर तक फैले मैदान। गंगा की गोद में रहने वाले कभी प्यासे भी हो सकते हैं, इस बात का यकीन शायद कोई न करे, लेकिन गंगा की गोद यानि की वेस्ट यूपी में कई इलाके इन दिनों प्यासे हैं। अभी गर्मी पूरी तरह से आयी नहीं है। अप्रैल का महीना खत्म होते-होते गर्मी अपने पूरे शवाब पर होगी, गांव देहात हो या फिर शहर की, गर्मी में प्यास बुझाने का पानी के अलावा कोई दूसरा मुफीद तरीका हो ही नहीं सकता। लेकिन इस बार गंगा की गोद में पानी के तमाम स्रोत खुद प्यासे हैं, खासतौर से इस बैल्ट के देहात इलाकों में लगे हैंडपंपों की यदि बात की जाए। सैकडों शिकायतों के बाद जब प्रशासन ने जांच करायी तो करीब दो सौ हैंडपंप खराब पाए गए। वेस्ट यूपी में गंगा की गोद की यदि बात की जाए तो रूडकी से आगे बढकर सहारनपुर व बिजनौर, शामली, मुजफ्फरनगर, हापुड, मेरठ और बुलंदशहर सरीखे तमाम इलाके गंगा के मैदानों के माने जाते हैं, लेकिन यहां पानी का संकट है। यहां बात की जा रही है बिजनौर की। जहां जांच में दो सौ हैंडपंप खराब पाए गए हैं। जिले में 1134 पंचायत हैं, जलीलपुर ब्लॉक डार्क जोन में है। अंधाधुंध जल दोहन से भूगर्भ जल स्तर गिरा है। पंचायतों में ग्रामीणों को पीने का पानी उपलब्ध कराने के लिए इंडिया मार्का हैंडपंप लगे हैं। हैंडपंप जल निगम लगाता है, जबकि इनकी मरम्मत व देखभाल की जिम्मेदारी पंचायतों की होती है। डीपीआरओ सतीश कुमार ने बताया कि 1134 पंचायतों में 39 हजार हैंडपंप लगे हैं। सीडीओ केपी सिंह के निर्देश पर हैंडपंपों की स्थिति जानने के लिए सर्वे कराया गया था। जांच में 180 हैंडपंप खराब मिले हैं। जो पंचायतों को रिबोर कराने हैं। पंचायतों को कार्रवाई के निर्देश दे दिए हैं। पंचायतों को हैंडपंपों के रिबोर के लिए अलग से कोई फंड शासन से नहीं मिलता है। पंचायतों को खराब हैंडपंपों की मरम्मत तथा रिबोर राज्य वित्त आयोग से मिले धन से ही कराना होता है। एक हैंडपंप के रिबोर में 40 हजार से 45 हजार रुपये खर्च हो जाते हैं।
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