इंडियन मीडिया की बजी है बैंड

इंडियन मीडिया की बजी है बैंड
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इंडियन मीडिया की बजी है बैंड,  लोकतंत्र के चार महत्वपूर्ण स्तंभों में सबसे ज्यादा कारगर माना वाला मीडिया बुरे दौर से गुजर रहा है. इसके लिए जिम्मेदारी हम खुद भी कम नहीं। इस बात का उलाहना दुनिया भर की रैकिंग एजेन्सियां दे रही हैं. भारतीय मीडिया के लिए यह शर्मसार करने वाली खबर से कम नहीं। दरअसल  साल 2022 में प्रकाशित ग्लोबल प्रेस फ्रीडम रैंकिंग में भारत साल 2021 में दुनिया के 180 देशों के बीच 150वें पायदान पर था. जबकि साल 2016 में भारत की रैंकिंग 133वीं थी. साल 2020 में भारत 142वें पायदान पर था. तब इस रिपोर्ट में जिक्र किया था कि पत्रकारिता की दुनिया में भारत बैड यानी खराब कैटेगरी वाले देश में आता है. पत्रकारों के लिए भारत दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक है. साल 2022 में प्रकाशित ग्लोबल प्रेस फ्रीडम रैंकिंग से जुड़ी रिपोर्ट में कहा था कि साल 2014 में  पत्रकारों पर हिंसा के मामले बढ़ते चले गए हैं. मीडिया संस्थान राजनीतिक पक्षधरता का खुलेआम इस्तेमाल करते हैं. सरकार अपना नैरेटिव गढ़ने के लिए मीडिया संस्थानों पर हजारों करोड़ रुपये सालाना खर्च करती है. मीडिया पर एक खास वर्ग का मालिकाना हक बढ़ता चला जा रहा है. यह भारत में मीडिया संकट की स्थिति को दर्शाता है. ग्लोबल फ्रीडम इंडेक्स में जब भारत की ऐसी स्थिति है तो आप खुद ही बताइए कि इस विदेशी रिपोर्ट में भारत की बदनामी का असली कारण क्या है? भारत की बदनामी किसकी वजह से हो रही है?  मुख्यधारा के तमाम टीवी चैनलों व कुछ प्रिंट मीडिया जो पार्टी विशेष के वर्करों की तर्ज पर काम करना उनकी मजबूरी बन गयी है. नौकरी जो बचाए रखनी है।  मुख्य धारा के टीवी चैनलों की खबरिया हैडिंगों की आलोचना दुनिया के मेन स्ट्रीम में शुमार कर रहे हैं. सवाल यह है कि सवाल पूछना क्या गुनाह हो गया है. सवाल पूछने वाले अब बजाए रैफरी के एक पक्ष के साथ क्यों नजर आते हैं. ज्यदा पुरानी बात नहीं है. जर्मनी के विदेश दौरे पर पीएम के कार्यक्रम को कवर करने के लिए पहुंचे भारतीय मीडिया कर्मियों को कार्यक्रम हाल से धक्के मारकर बाहर कर दिया गया था. जिसकी शिकायत मौके पर ही तमाम मीडिया कर्मियों ने की थी. भारतीय मीडिया के साथ अंजाम दी गयी उस शर्मनाक घटना को दुनिया भर में देखा गया था. दो दशक पहले जो मीडिया की जो रेपुटेशन हुआ करती थी, वो अब नजर नहीं आती. यह मीडिया से ज्यादा लोकतंत्र के लिए घातक है.  हर जायज सवाल और आलोचना पर ‘देश पर हमला’ जैसे जुमले का इस्तेमाल करने वाले कुछ मीडिया को ही सारे फसाद की जड़ माना जा रहा है। वो इसलिए नहीं करते कि वे नासमझ हैं. जानकारों का मानन है कि  बहुत सोच-समझकर ऐसा इसलिए करते हैं. इसको भारत के हर एक नागरिक के लिए यह खतरे की घंटी है.

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