लोस चुनाव से पहले या बाद में

मोह नहीं छूट रहा बोर्ड अफसरों का
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लोस चुनाव से पहले या बाद में,

-कैंट बोर्ड के नगर निगम में शामिल किए जाने के पारूप पर चर्चा

-जिग-जैक आधार पर शामिल होगा छावनी क्षेत्र के हिस्से निगम की सीमा में

मेरठ कैंट बोर्ड के नागरिक इलाका नगर निगम में मर्ज यानि शामिल किया जाना तह होने के बाद अब यह तय किया जाना बाकि है कि ये हिस्से लोकसभा चुनाव से पहले या फिर लोकसभा चुनाव के बाद जुलाई माह में नगर निगम क्षेत्र में शामिल किए जाएंगे। इसके अलावा यह भी तय हुआ बताया जाता है कि कैंट क्षेत्र के नागरिक इलाकों के इतर जो दूसरे इलाके हैं उनको जिग-जैक सिस्टम के आधार पर नगर निगम में शामिल किया जाएगा। इसको लेकर आज मेरठ कैंट बोर्ड की बैठक में नगर निगम में शामिल किए जाने की प्रक्रिया व उसके पारूप पर विस्तार से चर्चा की गयी। इसमें कैंट बोर्ड अध्यक्ष कमांडर राजीव कुमार, सीईओ कैंट ज्योति कुमार और बोर्ड में जनता के मनोनीत सदस्य व भाजपा नेता डा सतीश शर्मा भी मौजूद रहे। हालांकि अधिकृत रूप से इसकी जानकारी अभी शेयर नहीं की गयी है, लेकिन सूत्रों ने जानकारी दी कि मेरठ कैंट के ज्यादातर हिस्से नगर निगम में मर्ज होने जा रहे हैं।

ये रहेंगे कैंट प्रशासन के आधीन

कैंट के सभी नागरिक इलाके तो नगर निगम में मर्ज हो जाने तय हैं लेकिन कुछ इलाके व संपत्तियां ऐसी हैं जो सेना की और नागरिक क्षेत्र में स्थित हैं उनके लिए जिग-जैक सिस्टम अपनाया जाएगा। मसलन माल रोड के वो बंगले जहां सिविलियन रहते हैं वो नगर निगम में शामिल कर लिए जाएंगे, लेकिन डीईओ आफिस व दूसरे सैन्य अफसरों के सरकरी बंगले, मैस व अन्य सैन्य प्रतिष्ठान कैंट का हिस्सा बने रहेंगे। वहां का रखरखाव कैंट प्रशासन के हाथों में ही रहेगा। इसी तरह से रूडकी रोड, वेस्ट एंड रोड, सरकुल रोड आदि तमाम इलाकों में जहां सिविलियन व सैन्य प्रतिष्ठान दोनों ही मौजूद हैं, वहां जिग जैक सिस्टम अपनाया जाएगा।

डीईओ स्टाफ कहलाएंगे

नगर निगम में मर्ज होने के उपरांत मेरठ कैंट बोर्ड का जितना भी स्टाफ होगा वह कैंट बोर्ड के अस्तित्व खत्म कर दिए जाने के बाद डीईओ का स्टाफ कहलाएगा। करीब 150 कर्मचारी ऐसे हैं जिनकी नौकरी शायद बच जाए बाकि जितना भी अस्थायी या कहें संविदा स्टाफ है, उसकी नौकरी पर मर्ज प्रक्रिया का बैरियर गिरेगा। हालांकि उम्मीद की जा रही है कि नगर निगम प्रशासन उन्हें अपने संविदा बेडे में शामिल कर लेगा, लेकिन इसको लेकर कैंट बोर्ड प्रशासन या नगर निगम प्रशासन के बीच कोई चर्चा अभी नहीं हुई है। अभी ताे केवल नागिरक इलाकों को नगर निगम क्षेत्र में शामिल किए जाने की प्रक्रिया पर ही चर्चा की जा रही है।

नए सिरे से तलाशा जाएगा राजनीतिक भविष्य

जो लोग अब तक कैंट की राजनीति करते आए हैं उन्हें नए सिरे से अपना भविष्य तलाशना होगा। लेकिन इसके लिए भी इंतजार करना होगा, इसकी वाजिव वजह भी है वो ये कि जब तक निगम में मर्ज इलाकों को लेकर स्थिति साफ नहीं हो जाती तब तक यहां कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। हालांकि सदर की बात की जाए तो भाजपा के कुछ बड़े नेताओं की राजनीतिक जमीन मजबूत मानी जा रही है। लोगों का मानना है दिनेश गोयल सरीखे कैंट बोर्ड के पूर्व उपाध्यक्ष जो  कि वो अरसे से कैंट से सटे निगम के नागरिक क्षेत्रो में मौजूदगी बनाए हैं, इसलिए उनका राजनीतिक भविष्य सुरक्षित माना जा रहा है।

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