शुक्र है कचरा है तो जिंदा हैं गाय माता

शुक्र है कचरा है तो जिंदा हैं गाय माता
Share

शुक्र है कचरा है तो जिंदा हैं गाय माता,

शहर में कूड़ा कचरा ना मिले तो भूखों मर जाए निराश्रित गोवंश

दावा था सड़कों पर नहीं आएंगे नजर, लेकिन हर सड़क नजर आते हैं बेसहारा निरीह गोवंश

जब भी गाय का जिक्र आता है तो उस पर सियायत तो खूब की जाती है। मौका चुनाव को या कोई और गाय को मुद्दे को कैश कराने में सियायत दां भी भी पीछे नहीं रहते, लेकिन बात जब निराश्रित गोवंश की देखभाल की आती है तब फाइलें तो दावों से भरी होती हे, लेकिन जमीनी हकीकत फाइलों में दर्ज दावों के एकदम उलट होती है। इसकाे सबूत के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं हैं। आप जहां भी रहते हो या मौजूद हों, उसके आसपास बस एक किलामीटर के दायरे में घूम लीजिए और ज्यादा तय तक जाना चाहते हैं तो मेरठ  शहर के घंटाघर, केसरगंज, कोतवाली का भगत सिंह मार्केट, देहलीगेट का शहर घंटाघर, ब्रहमपुरी का कबाडी बाजार इलाका देख  लो। कैंट क्षेत्र में रहते हैं तो फिर बीसी लाइन हेड पोस्ट आफिस के बगल में खोले गए पासपोर्ट कार्यालय के पीछे मौजूद डलाव घर का सुबह के वक्त चक्कर लगा लीजिए। यहां से दिन ना भरे तो कैंट क्षेत्र में छावनी परिषद के जितने भी डलाव घर हैं उनका एक चक्कर काट लीजिए। साफ हो जाएगा कि निराश्रित गोवंशों को लेकर कितनी सियायत है और कितनी ईमानदारी। हम तो कह रहे हैं कि गोवंश को लेकर गोवंश को लेकर सियायत भरपुर मगर गोवंश को गए हैं भूल।

भूखों जाए मर

शहर में कूड़ा कचरा ना मिले तो निराश्रित गोवशों के भूखों करने की नौबत आ जाए। दावा था कि सड़कों पर निराश्रित गोंवश नजर नहीं जाएंगे, लेकिन शहर और कैंट ही नहीं बल्कि एक भी गांव व देहात ऐसा नहीं जहां निराश्रित गोंवश ना भटक रहे हों। केवल भटक ही नहीं रहे बल्कि भूखे भटक रहे हैं। महानगर में यदि कूड़ा कचरा डालने के डलावघर ना हो तो ये निराश्रित गोवंश भूखों मार जाएं। शुक्र की महानगर में प्रतिदिन घरों से आठ सौ टन कूडा कचरा निकलता है। इसके अलावा करीब छह टन  इसका बड़ा हिस्सा चौराहाें पर फैंक दिया जाता है। यह कचरा ही निराश्रित गोंवशाें के पेट भरने का जुगाड़ा बना हुआ है।

कभी रोटी तो कभी डंडा

निराश्रित गोंवश भूख के मारे इधर उधर भटकते रहते हैं। आबादी वाले इलाकों में पहुंचकर ये गोवंश घर व दुकानों के बाहर एक रोटी की आस में जाकर खडे. हो जाते हैं, कुछ लोगों और परिवार तो ऐसे होते हैं जो इन्हें खाने को कुछ दे देते हैं, लेकिन ऐसों की भी कमी नहीं जो रोटी देने के बजाए इन निरीह पशुओं को डंडे मार-मार कर दूर तक खदेड़ देते हैं। बाजारों में तो अक्सर गोवंशों के साथ ही इसी प्रकार का निर्मम व्यवहार किया जाता है।

बीमार-घायल मौत का इंतजार

महानगर में खुले में घूम रहे गोवंशों का बुरा हाल है। इनकी कोई सुध लेने वाला नहीं है। अधिकांश गोवंश चोटिल या बीमार हैं। जिम्मेदार अफसर इस ओर ध्यान देने से कतरा रहे हैं, जबकि  प्रदेश के मुख्यमंत्री ने खुले में घूम रहे गोवंश को गोशालाओं में संरक्षित करने का आदेश दिया है। उसके बाद भी निराश्रित गोवंशों को गोशालाओं में नहीं पहुंचाया जा रहा है। मुख्य मार्गों पर घूमते समय गोवंश वाहनों की टक्कर लगने से चुटैल हो जाते हैं या शरारती तत्व इनको चोटिल कर देते हैं। कई गोवंश बीमार भी हैं। इनका इलाज नहीं हो पाता और वह यूं ही तड़पते हुए भटकते रहते हैं। ऐसे पशुओं का बस मौत का इंतजार रहता है।
 प्रभारी मंत्री फिर भी पुरसा हाल नहीं
पशुधन एवं दुग्ध विकास मंत्री धर्मपाल सिंह मेरठ जनपद के प्रभारी मंत्री हैं, इसके बाद भी निराश्रित गोंवशों का पुरसाहाल नहीं। सर्दी के इस मौसम में सैकड़ों निराश्रित गोंवश भूख प्यास से बेहाल होकर इधर उधर भटकते देखे जा सकते हैं। पशुधन एवं दुग्ध विकास मंत्री के मेरठ जनपद का प्रभारी मंत्री बनाए जाने के बाद उम्मीद थी कि संबंधित अफसर अब शायद निराश्रित गोंवश की सुध लेंगे। निराश्रित गोंवशों को लेकर सीएम योगी के सड़क पर निराश्रित गाेवंश नजर नहीं आएगे के आदेशों का पालन किया जाएगा, लेकिन ऐसा हो नहीं सका। निराश्रित गोंवश पेट भरने के लिए नगर निगम और कैंट बोर्ड के कूड़ा घरों पर पूरी तरह से आश्रित हैं। हादसों का शिकार हो जाए तो इस बात की कोई गारंटी नहीं कि मरने से पहले उन्हें इलाज मिल जाएगा।
तीस रुपए प्रतिदन मे कैसे उठाएं खर्चा

यूपी की योगी सरकार ने सड़कों पर घूमती बेसहारा गायों के संरक्षण के लिए अनूठी योजना शुरू की थी. इसमें बेसहारा गायों को पालने के लिए आगे आए परिवारों को गाय के भरण पोषण के लिए 900 रुपये प्रति माह दिया जाता है। इसके अलावा अन्ना कुप्रथा के कारण बेसहारा हुई गायों के लिए सरकार ने पूरे प्रदेश में ‘निराश्रित गोवंश आश्रय स्थल’ भी बनाए हैं।


दो हजार से ज्यादा गोंवश-कान्हा उपवन हाउस फुल

मेरठ। नगर निगम द्वारा संचालित कान्हा उपवन में वर्तमान में दो हजार से ज्यादा निराश्रित गोवंश मौजूद हैं। जबकि इसकी क्षमता इतनी नहीं है। इसके बाद भी यहां निराश्रित गोवंशों के भेजे जाने का सिलसिला लगातार जारी है। नगर निगम प्रशासन की जानकारी के अनुसार यदि कान्हा उपवन में वाकई दो हजार गोवंश हैं तो फिर बड़ा सवाल यही कि इनमें से कितने गोवंश बीमार हैं और कितने बीमारी या दुर्घटना में गंभीर रूप से जख्मी होने की वजह से गंभीर हालत में हैं। जितनी बड़ी संख्या कान्हा उपवन में गोवंशों को लेकर बतायी गयी है, इतनी बड़ी संख्या में सभी दो हजार गोंवशों को भरपेट चारा, बीमारी पर दवा व ईलाज क्या वाकई समुचित ढंग से किया जा रहा है। यह बात गले तो नहीं उतरती है, लेकिन अफसर यदि दावा कर रहे हैं तो ठीक ही होगा।

पहले खुल चुकी है कान्हा उपवन की पोल

निगम द्वारा संचालित कान्हा उपवन की यदि बात की जाए तो इसकी पोल पहले खुल चुकी है। कान्हा उपवन में मरने वाले पशुओं को लोहिया नगर के डंपिंग ग्राउंड में बड़ी संख्या में दफना दिया गया। इसका विराेध तब कांग्रेस के एक नेता रोहित उधम गुर्जर ने किया था। उन्हाेंने सोशल मीडिया पर कई वीडिया भी जारी की थीं, जिसके बाद निगम प्रशासन में हड़कंप मच गया था। जो गोवंश कान्हा उपवन में दम तोड़ रहे थे उनका सम्मान जनक तरीके से अंतिम संस्कार तक नहीं किया जा रहा था।

सभी के चारे की समुचित व्यवस्था

कान्हा उपवन में वर्तमान में दो हजार से ज्यादा निराश्रित गोंवश रखे गए हैं। यह संख्या क्षमता से ज्यादा है। लेकिन जितने भी गोवंश रखे गए हैं उन सभी के लिए चारे व इलाज की समुचित व्यवस्था की गयी है। इसके अलावा जाड़े से पशुओं बचाने का भी ठीक इंतजाम है।

डा. हरपाल सिंह पशु अधिकारी नगर निगम


अस्थायी आश्रम स्थल के नाम पर केवल तमाशा

मेरठ। निराश्रित गोंवशों के लिए अस्थायी आश्रय स्थल के नाम पर तमाशे से ज्यदा कुछ नहीं। सबसे ज्यादा मौत ही इन अस्थायी आश्रय स्थलों में हुई हैं।  गोवंश को आश्रय देने के लिए सरकार ने जिले में 24 अस्थायी गो आश्रय स्थल बनाए हैं, लेकिन आश्रय स्थल संचालन कमेटियां पशुओं की देखभाल में तमाम अनियमितता बरत के आरोप लगते रहे हैं।  कुछ आश्रय स्थल पर कर्मचारियों की संख्या घटा दिए जाने तो कुछ जगह गायों को महीनों से हरा चारा नहीं के आरोप भी लग थे।  चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में लगातार गोवंश की मौतें हुईं। उल्लेखनीय है कि इसी साल बीते  सितंबर माह में श्रीगोशाला कपसाड़ को लेकर सनसनी खेज खुलासा सामने आया था। सरधना के  श्रीगोशाला कपसाड़ में ही गो आश्रय स्थल का निर्माण किया गया। तीन अलग-अलग स्थानों पर 198 गायों को यहां रखा गया। ज्यादातर गायों की हडि्डयां चमक रही थीं। खोर में सूखा भूसा डाला गया था। सही ढंग से सानी न होने के कारण ज्यादातर गाय भूखी थीं, वो दो माह से चारा तक नहीं भेजे जाने के आरोप लगे थे। गो आश्रय स्थल में एक स्थान पर टीन शेड था और एक हॉल बना हुआ था। ज्यादातर गाय खुले में ही बांधी गई थीं। पीने को स्वच्छ पानी और और सफाई का अभाव होने के कारण हर तरफ गंदगी और गोबर पड़ा था। सालों से पानी की चर की सफाई नहीं हुई थीं।

@Back Home


Share

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *