सोसाइट! अरे रुको-ये जिंदगी ना मिलेगी दोबारा

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सोसाइट! अरे रुको-ये जिंदगी ना मिलेगी दोबारा,

-गरीबी से ज्यादा अवसाद के कारण दे रहे हैं जान

-मौत को गले लगाने वालों में बड़ी संख्या महिलाओं की

-नाबालिग छात्रों  की आत्महत्या के मामलों से विशेषज्ञ भी हैरान

मेरठ के गढ़ रोड पर एक बड़े कारोबारी के परिवार के सदस्यों ने जहर ख

नीट की तैयारी कर रहे 23 छात्रों ने आत्महत्या कर ली,

मेरठ। लालकुर्ती इलाके में युवा कारोबारी की आत्महत्या से एक भरा पूरा परिवार बिखर गया। करीबियों को यकीन नहीं हो रहा है कि उसने आत्महत्या जैसा कदम उठाया। अच्छा खासा कारोबार, धन संपत्ति भी ठीकठाक। छोटी से हैप्पी फैमली फिर ऐसा क्या हुआ जो जान दे दी। यह वानगी भर है। जो रिकार्ड किए गए वो सरकारी आंकड़े बताते हैं कि देश में हर एक लाख पर 11 लोग आत्महत्या जैसा कदम उठाते हैं। राजस्थान के कोटा में इसी साल 23 स्टूडेंट जिनमें आधे से ज्यादा नाबालिग थे आत्महत्या कर ली। कुछ साल पहले मेरठ के गढ रोड पर एक कारोबारी के पूरे परिवार ने जहर देकर जान देने का प्रयास किया, इसमें कारोबारी की मौत हो गयी। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, वर्ष 2021 में आत्महत्या करने वाली महिलाओं में गृहिणियों का अनुपात 51.5% था

दो सौ फीसदी बढ़े हैं मामले

आत्महत्या के मामले 200 प्रतिशत तक बढ़े हैं। इसके तेजी से बढ़ने के पीछे अब तक केवल आर्थिक कारणों को जिम्मेदार माना जाता है। लेकिन आत्महत्या के इसलिए इस थ्योरी को विशेषज्ञ अब परफैक्ट नहीं मानते। उनका कहना है कि जो ताजा आंकड़े आ रहे हैं उनमे जान देने के पीछे गरीबी मूल कारण नहीं पाया गया है। युवाओं के आत्महत्या करने के पीछे  रिसर्च में खुलासा हुआ कि युवाओं में इसकी बड़ी वजह स्कूल और परिवार का दबाव है। एजुकेशन हब होने के कारण यहां देशभर के छात्र-छात्राएं शिक्षा लेने आते हैं और इसी वजह से यहां ऐसे प्रकरण ज्यादा सामने आ रहे हैं।

बाकायदा प्लानिंग से लगाते हैं मौत को गले

विशेषज्ञों की राय में ऐसा नहीं कि आत्महत्या करने वाले अचानक जान दे देते हैं। कोई भी आत्महत्या करने वाला रातों रात इसका इरादा नहीं करता। युवा तो इसके लिए पहले प्लानिंग भी करते हैं। यहां तक कि वे कुछ दिन पहले से ही मैं अब शिकायत नहीं करूंगा.., अब नहीं आऊंगा.., मैं चला जाऊंगा.., जैसे संकेत भी देते हैं।

सतर्क रहने की है जरूरत

यह संकेत उनके साथ रहने वाले मित्रों या परिजनों को पता चलते हैं। कई फोन कॉल्स पर तो यह पता चलता है कि आत्महत्या का कारण इतनी छोटी बात है, जिसे मात्र शेयर करने से हल किया जा सकता है। यदि इन बातों की तरफ ध्यान दिया जाए, तो आत्महत्या का इरादा बदला जा सकता है। युवाओं का अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रहने के कारण भी वे असफल होने पर आत्महत्या का रास्ता चुन रहे हैं। माता पिता और शिक्षकों को चाहिए कि वे हर विद्यार्थी को एक ही तराजू में तौलकर न देखें। बच्चे को उसकी रुचि के विपरीत सब्जेक्ट दिलाने का निर्णय भी उसे सुसाइड की ओर ले जा सकता है।

दिगाम में कैमिकल लोचा

आत्महत्या के मानसिक, सामाजिक, साइकोलॉजिकल, बायोलॉजिकल एवं जेनेटिक कारण होते हैं। जिन परिवारों में पहले भी आत्महत्या हुई है, उनके बच्चों द्वारा यह रास्ता अपनाने की आशंका है। रिसर्च में सामने आया कि जिनमें आत्महत्या के जीन होते हैं, उनमें बायोकेमिकल परिवर्तन हो जाते हैं। इससे बच्चे या व्यक्ति का मानसिक संतुलन अव्यवस्थित हो जाता है। इसके कई कारण होते हैं जैसे तनावपूर्ण जीवन, घरेलू समस्याएं, मानसिक रोग इत्यादि। जिन बच्चों में आत्महत्या के बारे में सोचने की आदत (सुसाइडल फैंटेसी) होती है, वही आत्महत्या ज्यादा करते हैं। निजात के लिए आत्महत्या के कारण उससे ग्रसित मरीज के लक्षण एवं भविष्य में उसकी पुनरावृति न हो, इसका भी ध्यान रखा जाए।

जान देने के पीछे कुछ खास कारण

कॅरियर, जॉब, रिश्ते, खुद की इच्छाएं, व्यक्तिगत समस्याएं जैसे लव अफेयर, मैरिज, सैटलमेंट, भविष्य की पढ़ाई आदि। जब वह इस अवस्था में आता है, तो बेरोजगारी का शिकार हो जाता है और भविष्य के प्रति अनिश्चितता बढ़ जाती है। विशेषज्ञ बताते हैं कि  जिससे डिप्रेशन, एंग्जाइटी, सायकोसिस, पर्सनालिटी डिसऑर्डर की स्थिति बन जाती है। इन सब परिस्थितियों से वह जैसे तैसे निकलता है तो परिवार की जरूरत से ज्यादा अपेक्षाओं के बोझ तले दब जाता है। फिर अर्थहीन प्रतिस्पर्धा और सामाजिक व नैतिक मूल्यों में गिरावट, परिवार का टूटना, अकेलापन धीर धीरे आत्महत्या की तरफ प्रेरित करता है।

मौत को गले लगाने से पहले देते हैं संकेत

ऐसे लोग आत्महत्या के बारे में ज्यादा बात करने लगता है। कई बार आत्महत्या करने की कोशिश करता है और सिगरेट, शराब या अन्य नशा ज्यादा करता है। ऐसा व्यक्ति बहुत ज्यादा दुखी रहने लगता है और अनिद्रा का शिकार हो जाता है।स्कूल की किशोरावस्था में कॉपी केट सुसाइड के केस ज्यादा होते हैं। इस अवस्था में एक साथ ग्रुप में रहने वाले छात्र-छात्राओं में एक साथ आत्महत्या करने के मामले सामने आते हैं। ऐसे मामलों में पूरे बच्चों के पूरे ग्रुप के अवसाद का एक ही कारण होता है। ऐसे में एक के सुसाइड करने पर अन्य को भी अवसाद की स्थिति से निकलने का वही रास्ता नजर आता है। वहीं ईगोस्टिक सुसाइड में वे युवा आत्महत्या करते हैं, जो किसी ग्रुप में नहीं होते।

महिलाओं से ज्यादा पुरूष

पुरुष अपने तनाव के कारणों को किसी से शेयर नहीं करते, इसलिए उनके सफल आत्महत्या करने के मामले महिलाओं से चार गुना ज्यादा होते हैं, वहीं महिलाएं अपनी बात ज्यादा शेयर करती हैं, जिससे उनके सुसाइड की कोशिश करने पर बचा लिया जाता है। उनके कोशिश करने के मामले पुरुषों से चार गुना ज्यादा होते हैं। किशोर व युवाओं की मृत्यु का तीसरा सबसे बड़ा कारण आत्महत्या है।

अनेक कारण है रहे सावधान

शहर की वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ डा. राशि अग्रवाल का कहना है कि आत्महत्या जैसा कदम उठाने के अनेक कारण होत हैं। इसलिए बेहतर तो यही होगा कि ऐसे शख्स को लेकर अलर्ट रहा जाए। इसके सिम्टम भी नजर आते हैं। वैसे ऐसी अप्रिय स्थिति को टालने के लिए जरूरी है कि माहौल हमेशा सामाजिक रखा जाए। कभी भी युवाओं पर अनुचित प्रेशर उनके कैरियर व पढाई को लेकर न डाला जाए, यह घातक भी साबित हो सकता है।

शुरूआत घर के माहौल से

शहर के सीनियर मनोरेग चिकित्सक डा. अभिनव पंवार का कहना है कि  सुसाइड के और भी कारण होते है और जजादतर एक व्यक्ति कई सारे कारणों से प्रभावित होता है। इस को कम करने के लिया बचपन से प्रतिरोधक्षमता बढ़ाए प्रॉब्लम्स कैसे सॉल्व करनी है, बिना झगड़े के विवाद कैसे सुलझाना है। फैमिली और समुदाय में संबंध बढ़ाए। आत्महत्या के अत्यधिक घातक साधनों तक पहुंच कम करे। अगर ऐसे खयाल बार बार आय तोह डॉक्टर की सलाह लें।

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