सत्ताइस हजार साल शासन करने वाला राजा

सत्ताइस हजार साल शासन करने वाला राजा
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दोस्तों यह कहानी उस हिन्दू राजा की है जिसने पृथ्वी के एक बड़े भू-भाग पर 27 हजार साल तक शासन किया। यह राज कोई और नहीं बल्कि महाराजा भरत थे। हिन्दू धर्म पुराणों में भी इसका उल्लेख है।  इनके राज्य की सीमा हिंदूकुश से लेकर अरब सागर तक फैंली थीं। श्रीलंका, वर्मा, नेपाल, भूटान, बंगलादेश, पाकिस्तान,  भारत, अफगानिस्तान, इरान, रूस और चीन के एक बड़े भू-भाग पर इनका शासन था। इस राजा का नाम था भारत, बाद में जिसके नाम पर  दुनिया के एक बड़े हिस्से पर भारत वर्ष या कहें भारत भूखंड़ की पहचान बनी। राजा भरत दुष्यंत तथा शकुंतला के पुत्र थे।

उनकी माता शकुंतला जोकि विश्वामित्र तथा मेनका की पुत्री थी, माता-पिता द्वारा त्यागे जाने पर महर्षि कण्व ने शकुंतला का पालन पोषण किया।  शकुंतला ने राजा दुष्यंत से गंधर्व विवाह कर लिया। लेकिन दुर्वासा के श्राप वश जब राजा दुष्यंत उसे भूल गए। शकुंतला ने  ऋषि  के आश्रम में चली गई, वहां भरत का जन्म हुआ। भरत बचपन से ही निडर तथा शाहासी थे। राजा दुष्यंत एक बार जब शिकार करने गए हुए थे तो उन्होंने एक बच्चे को शेर के दांत को गिनते हुए देखा। इससे वह बहुत प्रभावित हुए और उनसे उनके पिता का नाम पूछा तो उसने उनको दुष्यंत पुत्र भरत बताया। चुंकि अंगुठी को देखने के बाद दुष्यंत को शकुंतला याद आ चुकी थी । अतः वे शकुंतला तथा अपने वीर पुत्र भरत को अपने साथ , अपने राज्य हस्तिनापुर ले आए। बाद में वही भरत भारत के चक्रवर्ती सम्राट बने । जहां तक भरत का शासन फैला, उस सारे क्षेत्र को भारत कहा जाने लगा और इस तरह हमारे देश का नाम भारत पड़ गया।

भारत वर्ष अफगानिस्तान के हिन्दुकुश पर्वतमाला से अरुणाचल की पर्वत माला और कश्मीर की हिमाल की चोटियों से कन्याकुमारी तक फैला था। दूसरी और यह हिन्दूकुश से अरब सागर तक और अरुणाचल से बर्मा तक फैला था।भरत ने सत्ताईस हजार वर्षों तक शासन किया और इसलिए, जो राज्य उन्हें विरासत में मिला और विस्तारित हुआ, वह उनके नाम पर भारत के नाम से जाना जाने लगा।

महाभारत में कहा गया है कि राजा दुष्यन्त एक बार जंगलों में शिकार कर रहे थे, तभी उन्होंने अपने तीर से एक हिरण के बच्चे को घायल कर दिया। हिरन का बच्चा ऋषि कण्व के आश्रम में भाग गया , और राजा ने उसका पीछा किया। आश्रम पहुंचने पर, राजा ने देखा कि शकुंतला अपनी सहेलियों अनसूया और प्रियंवदा के साथ पौधों को पानी दे रही थी । दुष्यन्त और शकुन्तला को एक दूसरे से प्रेम हो गया। चूंकि ऋषि कण्व आश्रम से अनुपस्थित थे, इसलिए उन्होंने गंधर्व रीति से विवाह किया और शकुंतला जल्द ही गर्भवती हो गई। राजा ने उसे अपनी अंगूठी भेंट की और अपने महल की ओर प्रस्थान किया। जब दुष्यन्त ने शकुन्तला को छोड़ दिया तो वह चिंतित हो गयी और उसे दुर्वासा के आने का आभास ही नहीं हुआ आश्रम . अपने क्रोध के लिए प्रतिष्ठित, दुर्वासा ने अपने प्रति उसकी अज्ञानता को अनादर के संकेत के रूप में लिया, और उसे उस व्यक्ति द्वारा भूल जाने का श्राप दिया जिसके बारे में वह उसी क्षण सोच रही थी। शकुंतला ने अपने ऊपर दिए जा रहे इस श्राप को नहीं सुना। जब कण्व वापस आये और उन्हें इन घटनाओं का पता चला तो उन्होंने शकुन्तला को दुष्यन्त के महल में भेजा। श्राप के कारण दुष्यन्त ने उसे नहीं पहचाना। बहुत दुखी होकर, जब शकुंतला आश्रम लौट रही थी, तो उसकी माँ, मेनका , उसे कश्यप के आश्रम में ले गई । शकुन्तला ने एक पुत्र को जन्म दिया। लड़का बहादुर और निडर हो गया, और क्षेत्र के सबसे जंगली जानवरों को भी अपने वश में करने में सक्षम हो गया। इसलिए, कश्यप ने उसका नाम सर्वदमन (सर्व-वश में) रखा। कुछ समय बाद जब दुष्यन्त इन्द्र के दर्शन करके घर लौट रहे थे, वह शकुंतला के पास आए, उसे पहचान लिया, और उसे और अपने बेटे को अपने महल में ले गए। यही बालक बड़ा होकर भरत बना। भरत ने दुनिया पर विजय प्राप्त की और तीन पत्नियाँ प्राप्त कीं, हालाँकि इन पत्नियों से पैदा हुए पुत्र इतने क्रूर थे कि उन्हें मार दिया गया। भरत ने पुत्र के लिए देवताओं को प्रसन्न किया और उन्होंने उन्हें एक पुत्र दिया, जिसका नाम उन्होंने विटथ रखा, जिसे भारद्वाज भी कहा जाता था। एक अन्य वृत्तांत के अनुसार, भारद्वाज ने भरत को भूमन्यु नामक पुत्र का आशीर्वाद दिया। [14] भरत ने सत्ताईस हजार वर्षों तक शासन किया, और इसलिए, जो राज्य उन्हें विरासत में मिला और विस्तारित हुआ, वह उनके नाम पर भारत के नाम से जाना जाने लगा। [15]

अभिज्ञानशाकुंतला 

कवि कालिदास द्वारा लिखित घटनाओं के नाटकीय संस्करण के अनुसार , राजा दुष्यन्त ने जंगलों में अपने शिकार अभियान के दौरान शकुंतला से विवाह किया था । वह शकुंतला की सुंदरता से मोहित हो गए, उन्होंने शाही अंदाज में उससे प्रेमालाप किया और उससे शादी कर ली। फिर उन्हें राजधानी में मामलों की देखभाल के लिए छोड़ना पड़ा। [16] राजा ने उसे एक अंगूठी दी थी, ताकि जब वह उसके दरबार में उपस्थित होने के लिए तैयार हो तो उसे भेंट की जा सके। शकुंतला ने अपने बच्चे को जन्म दिया जिसका नाम ऋषि कश्यप ने सर्वदमन रखा । केवल जंगली जानवरों से घिरा हुआ, सर्वदमन एक मजबूत बच्चा बन गया और उसने बाघों और शेरों के मुंह खोलने और उनके दांत गिनने का खेल खेला। [12] [17]

बच्चे 

भरत का एक पुत्र था जिसका नाम भूमन्यु था। महाभारत के आदि पर्व में भुमन्यु के जन्म के बारे में दो अलग-अलग कहानियाँ बताई गई हैं। पहली कहानी कहती है कि भरत ने काशी साम्राज्य के राजा सर्वसेन की बेटी सुनंदा से विवाह किया और उनसे भुमन्यु नामक पुत्र को जन्म दिया । [18] दूसरी कहानी के अनुसार, भरत की तीन पत्नियाँ थीं और उनसे नौ पुत्र थे। परन्तु ये पुत्र अपने पिता के समान नहीं थे और उनके उत्तराधिकारी बनने में असमर्थ थे। भरत के असंतोष को देखकर उनकी पत्नियों ने क्रोध में आकर अपने सभी पुत्रों को मार डाला। तब भरत द्वारा ऋषि भारद्वाज की सहायता से किये गये एक महान यज्ञ से भुमन्यु का जन्म हुआ । [19]

स्कंद पुराण भरत के दत्तक पुत्र का एक और विवरण देता है। जब अंगिरस का पुत्र, उतथ्य की पत्नी ममता गर्भवती थी, तो उतथ्य के छोटे भाई बृहस्पति ने इच्छा से प्रेरित होकर ममता की खोज की। लेकिन उसके गर्भ में पल रहे बच्चे ने बृहस्पति के वीर्य के जमाव में बाधा डाल दी। इसके बजाय ममता ने बच्चे को जन्म दिया। बच्चे की संरक्षकता को लेकर ममता और बृहस्पति में झगड़ा होने लगा। आख़िरकार उन्होंने नवजात लड़के को लावारिस छोड़ दिया। मरुत देवताओं ने लड़के को गोद ले लिया और उसका नाम भारद्वाज रखा । जब भरत की पत्नियों ने उनके सभी पुत्रों को मार डाला, तो मरुत ने भारद्वाज को भरत को दे दिया। भारद्वाज, जिन्हें विटथ के नाम से भी जाना जाता है, राजा बने।


दोस्तों यह कहानी उस हिन्दू राजा की है जिसने हजारों साल तक पृथ्वी के एक बड़े भू भाग पर शासन किया। इस हिन्दू राजा के राज्य की सीमाओं के विस्तार की यदि बात की जाए तो हिमाचल से चले हिन्दकुश की पहाडियां तथा आगे फिर अफगानिस्तान, इरान और रूस तक इस हिन्दू राजा का साम्राज्य विस्तार था। यह हिन्दू राजा कोई और नहीं बल्कि महार्षी विश्वामित्र व स्वर्ग की अप्सरा मेनका की पुत्री शकुंतला के पुत्र भरत थे।  इंद्र के डर से मेनका विश्वामित्र को छोड़कर देवलोक चली गयी थीं। विश्वामित्र तपस्या करने चले गए थे। उन्होंने शकुंतला को त्याग दिया था। शकुंतला का लालन पालन ऋषि कण्व के आश्रम में हुआ था। शकुंतला जब बडी हुई तो वह बहुत रूपवान थी। कण्व ऋषि को एक बार कहीं जाना पड़ा। उन्हीं दिनों हस्तिनापुर नरेश महाराजा दुष्यंत आखेट के लिए जंगल आए थे। वह एक हिरन का पीछा करते-करते कण्व ऋषि के आश्रम में पहुंच गए। वहां शकुंतला अपनी सहेलियों के साथ उस हिरन का दुलार रही थीं, जिसका पीछा महाराजा दुष्यंत कर रहे थे। उन्होंने शकुंतला से हिरन मांगा, लेकिन शकुंतला ने इंकार कर दिया। महाराजा दुष्यंत कुछ समय आश्रम में रूके। वहीं पर दुष्यंत व शकुंतला के में प्रेम के अंकुर फूटे और दोनों ने गंदर्भ विवाह कर लिया। महाराजा दुष्यंत शकुंतला को अपनी अंगूठी देकर लौट गए और ऋषि कणव के लौटने पर उन्हें हस्तिनापुर आने को कहा। कुछ समय बाद ऋषि के आश्रम में दुर्वासा पधारे। महार्गि दुर्वासा को देखकर भी शकुंतला ने उनका आदर सत्कार नहीं किया। वह दुष्यंत की याद में खोई रहीं। यह देखकर दुर्वासा ने श्राप दिया कि जिसकी याद में खोई हो, वह तुम्हें भूल जाएगा। कुछ समय बाद ऋषि कर्ण्व पधारे तो उन्हें पूरी घटना की जानकारी आश्रमवासियों से मिली। ऋषि ने शकुंतला को हस्तिनापुर नरेश दुष्यंत के पास भेजा लेकिन दुर्वासा के श्राप के कारण दुष्यंत ने उन्हें पहचाना नहीं। दरअसल हुआ यह था कि जो अंगूठी दुष्यंत ने दी थी, नदी में पानी पीते वक्त वह अंगूठी शकुंतला के हाथ से निकल गयी। उसे एक मछली ने निकल लिया। मछली को बाद में मछवारे ने पकड लिया। उसने मछली का पेट चीरा तो उसमें से दुष्यंत की अंगूठी निकली। इनाम के लालच में वह मछुआरा राजा के महल में पहुंचा, उसने जब अंगूठी पेश की तो दुष्यंत पहचान गए और उन्हें सब कुछ याद आ गया। उधर शकुंतला कर्णव ऋषि के आश्रम में लौट आयी। वहां उसने एक सुंदर बालक को जन्म दिया। यह बालक बहुत ही शक्तिशाली था। शेर व चीते जैसे हिंसक जीव को वश में कर लेता था। एक बार महाराजा दुष्यंत इंद्र से मिल कर लौट रहे थे। विश्राम करने के लिए वह वन में रूक गए। उन्होंने वहां एक बच्चे को हिंसक शेर चीतों के साथ खेलते देखा। उन्होंने उस बच्चे से उसके पिता का नाम पूछा तो बालक ने अपना नाम भरत पुत्र दुष्यंत बताया। हस्तिनापुर के महाराजा को समझते देर नहीं लगी कि यह बालक उनका पुत्र है। इस बालक के साथ वह ऋषि के आश्रम में पहुंचे।वहां शुकंतला मौजूद थे। उन्होंने शकुंतला से क्षमाा मांगी। वह भरत व शकुंतला को लेकर हस्तिनापुर लौट आए। कुछ समय बाद जब भरत बड़े हुए तो सारा राजपाठ उन्हें सौप दिया।  भरत ने इस पृथ्वी मंडल पर हजारों साल शासन किया और उन्हीं के नाम पर भारत वर्ष पड़ा। महाराज ने अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार चीन से लेकर अफगानिस्तान, इरान और रूस तक किया। पृथ्वी के बड़े भू भाग पर आधिपत्य जमा लिया था। तो यह थी कहानी उस हिन्दू राजा की जिसने भारत को गौरवान्वित किया। ऐसी ही एक और कहानी के साथ शीघ्र रूबरू होंगे तब तक न्यूज ट्रेकर 24 के लिए शेखर शर्मा को अज्ञात दीजिए। आपसे आग्रह है कि चैनल सबसक्राइव व वीडियो लाइक तथा कमेट करें।

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