धारा के लिए खबर

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राशन घोटाला…
ताकि एसटीएफ के शिकंजे से महफूज रहे कसूरवार अफसर
-सूबे के 43 जनपदों में गरीबों का निवाला डकारकर अंजाम दिया था राशन घोटाला
-मेरठ में दर्ज की गई थी 81 एफआईआर, कार्रवाई के  नाम पर प्राइवेट आपरेटर की बलि
शेखर शर्मा
मेरठ। गरीबों का निवाला डकार कर अंजाम दिए गए सूबे के राशन घोटाले के कसूरवार अफसरों को एसटीएफ की जांच से महफूज रखने को सिस्टम जांच के नाम पर खेल कर रहा है। साल 2918 में उत्तर प्रदेश के 43 जनपदों में राशन घोटाला अंजाम दिया गया था। इसके लिए ईपॉश मशीनों को बड़ हथियार बनाया गया था, यानि ईपॉश मशीनों की मदद से 43 जनपदों में अफसर व राशन डीलरों ने मिलकर गरीबों का निवाला डकार लिया था। इसकी गूंज से सरकार में भी हड़कंप मच गया था। सरकार को फजीहत से बचाने के लिए आनन-फानन में जांच का एलान कर दिया गया। प्रमुख सचिव ने यूपी एसटीएफ को जांच सौंपी।  शुरूआती जांच में तो सब कुछ ठीकठाक रहा, लेकिन एसटीएफ की जांच का शिकंजा जब तमाम जनपदों में डीएसओ, एआरओ व सप्लाई इंस्पेक्टरों पर कसता नजर आया तो लखनऊ में बैठे अफसरों की कुर्सी हिलने लगी, बस यही से राशन घोटाले की जांच के नाम पर खेल शुरू कर दिया गया।
आज तक पता नहीं किस आदेश पर एसटीएफ को आउट:-राशन घोटाले के सामने आने के बाद मेरठ के सरधना निवासी मैराजुददीन ने एक रिट हाईकोर्ट में दाखिल की थी। दरअसल उन्हें डर था कि गरीबों का निवाला डकारने वाले खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के अफसरों को बचाने के लिए खेल किया जाएगा। उसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में रिट दायर कर दी। रिट की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने छह माह के भीतर एसटीएफ के लखनऊ एसपी को जांच पूरी कर रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए थे। लेकिन उसी दौरान एकाएक एसटीएफ को इस जांच से स्थानीय स्तर के अफसरों ने बाहर कर दिया। हाईकोर्ट में रिट दायर करने वाले मैराजददी ने बताया कि मेरठ में यह काम तत्कालीन एसएसपी ने अंजाम दिया। आपूर्ति विभाग के घोटाला करने वाले असफरों को बचाया जा सके, इसके लिए एक एसआईटी का गठन कर दिया गया। यह एसआईटी किस के आदेश गठित की गयी और एसटीएफ को जांच से बाहर किस के आदेश पर किया गया, इसका आज तक खुलासा नहीं हो सका। लेकिन इतना जरूर हुआ कि एसटीएफ की जांच से डरे जो आपूर्ति विभाग को जो अफसर अंडर ग्राउंड हो गए थे या जिन पर एसटीएफ का शिकंजा कसने जा रहा था, वो जरूर भय मुक्त हो गए।
अफसरों के खिलाफ अवमाना का केस
राशन घोटाले से एसटीएफ की जांच के इतर स्थानीय स्तर पर एसआईटी का गठन कर जांच उसे सौंपने के खिलाफ मैराजुददीन ने एक और रिट हाईकोर्ट में दायर कर दी। उन्होंने केवल रिट ही दायर नहीं की बल्कि उसमें एसपी एसटीएफ, लखनऊ और मेरठ के बड़े अफसरों को भी पार्टी बनाया। एसआईटी व क्राइम ब्रांच की जांच को लेकर जब लेनदेन के आरोप लगने लगे तो बाद में यह जांच ईओडब्लूएस को सोंप दी गयी। हालांकि चर्चा तो यहां तक है कि ईओडब्लूएस को जांच सौंपे जाने के बाद एक बार फिर पुराना उगाही का दौर शुरू हो गया है। सुनने में आया है कि जांच अधिकारी डीलरों को जिनके खिलाफ मेरठ में एफआईआर दर्ज की गई थे, उनको तलब कर बीस-बीस हजार की डिमांड कर रहे हैं। हालांकि आन दा रिकार्ड कोई भी डीलर यह बात कहने को तैयार नहीं है। उनका कहना है कि कौन पंगा ले। बीस हजार में यदि गर्दन बच रही है तो सौदा महंगा नहीं है।
बड़ी मछलियों को बचाने को छोटी पर जाल
इस पूरे मामले में जांच से जुड़े अफसरों को बेपर्दा करने वाले मैराजुददीन का कहना है कि एसटीएफ को यदि अपवाद मान लिया जाए तो अब तक जांच के नाम पर आपूर्ति विभाग के अफसरों को बचाने के लिए जांच ऐजेन्सियों ने कार्रवाई के नाम पर शाहनवाज नाम के एक प्राइवेट आपरेटर को फांस दिया। मेरठ में 81 एफआईआर लिखी गई थीं, उन सभी में शाहनवाज को कसूरवार ठहरा दिया, जबकि शाहनवाज जो अस्थायी कर्मचारी था, उसने तो छह माह पहले ही नौकरी छोड़ दी थी। लेकिन इसके बाद भी उसको ही जेल भेजा गया। राशन घोटाले को लेकर अब तक जो कुछ सामने आया है उसके चलते तो यही लगता है कि घोटाले को अंजाम देने वाले अफसरों की गर्दन तक शायद ही जांच ऐजेन्सियों के हाथ पहुंचे।
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श्रद्धांजलि दी है।
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कैंट बोर्ड: बेशकीमती जमीनों पर कब्जे, कैंट बोर्ड प्रशासन खासतौर से इंजीनियरिंग सेक्शन के अफसर केवल अवैध निर्माण ही नहीं करा रहे हैं, बल्कि भारत सरकार की बेशकीमती जमीनों पर कब्जे भी करा रहे हैं। इतना ही नहीं जिन जमीनों पर कब्जे कराए जा रहे हैं, उन कब्जों को कैसे कायम रखा जाना है, कब्जा करने वालों को उसके रास्ते भी बता रहे हैं। देश भर की तमाम छावनियों तथा कैंट प्रशासन के आला अफसरो में मेरठ कैंट बोर्ड के अफसर अभी तक केवल अवैध कब्जे कराने के लिए ही बदनाम थे। अवैध कब्जों को लेकर इनकी कारगुजारियों की चर्चा पीडी मध्यम कमान से लेकर डीजी डिफैंस व रक्षा मंत्रालय तक हो चुकी है। उसका सबूत पिछले दिनों डायरेक्टर मध्य कमान डीएन यादव का मेरठ कैंट का दौरा था,  लेकिन इनकी कारगुजारी में अब सरकारी जमीनों पर कब्जे कराने का भी अध्याय जुड़ गया है। करोड़ों कीमत की जमीनों पर अब तक ये कब्जे करा चुके हैं। अवैध कब्जों की कुछ वानगी की यदि बात की जाए तो सदर रंगसाज मोहल्ला बंगला नंबर 331 में नक्शे के विपरीत निर्माण कराने वालों का सड़क पर कब्जा करा दिया। लालकुर्ती हंड़िया मोहल्ला में भाजपा के एक नगर निगम पार्षद को अवैध निर्माण कर छह दुकानों को बनाने की अनुमति ही नहीं दी बल्कि यहां जीना चढ़ाने के लिए सड़क पर कब्जा कर दिया। इसको लेकर नामित सदस्य व बोर्ड के अफसरों लेनदेन की चर्चा तो इन दिनों कैंट भाजपा से लेकर क्षेत्रीय कार्यालय तक सुनी जा रही है। इसको लेकर सवालों से भाजपा नेता भाग रहे हैं। सबसे बड़ा कब्जा तो कैंट बोर्ड से चंद कदम की दूरी पर सरकारी मैदान पर करा दिया गया है। हालात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कब्जा करने वालों की दहशत के चलते बोर्ड का स्टाफ यहां कदम भी नहीं रख सकता है। इस मैदान पर अब कपड़े सूखाए जा रहे हैं। चर्चा है कि इस मैदान पर कब्जा कराने के लिए भारी एक बड़ा सौदा हुआ है। सालों से यह जगह कब्जे में है।
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बिल्डर के आगे बेबस एमडीएम अफसर
प्राधिकरण की सील तोड़कर अवैध कांप्लैक्स पर डाल दिया लैंटर
शेखर शर्मा-धारा न्यूज
मेरठ। अफसर भले ही दावे कुछ भी करें लेकिन हकीकत तो यह है कि दबंगे बिल्डरों के आगे मेरठ विकास प्राधिकरा का पूरा सिस्टम बेबस है। बिल्डराें को लेकर एमडीए के अफसरों की दयनीीय हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस अवैध निर्माण पर प्राधिकरण प्रशासन सील लगता है, उसी सील को तोड़कर दबंगाई पर उतारू बिल्डर अवैध रूप से बनाए गए कांप्लैक्स की दूसरी मंजिल पर भी लैंडर डडलवा देता है। यह हाल तो तब है जब जिस अवैध कांप्लैक्स की यहां बात की जा रही है, वो मेरठ विकास प्राधिकरण के कार्यालय जहां उपाध्यक्ष व सचिव सरीखे तताम अफसर बैठते हैं, उससे चंद कदम की दूरी यानि सिविल लाइन के एसके रोड पर है। प्राधिकरण प्रशासन द्वरा लगाई गई सील को तोड़कर वहां लैंटर डाल दिया जाता है। ऐसा नहीं कि इसकी सूचना प्रधिकरण प्रशासन को नहीं होती। अपुष्ट सूत्र बताते हैं कि सूचना भी हाेती है और फोर्स के नाम पर प्राधिकरण का खुद का अमला भी होता है, लेकिन इसके बाद भी अधिकारी वहां जाकर झंकने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। जानकारों की मानें तो ऐसा इसलिए हैं क्योंकि सारा काम सेटिंग गेटिंग के बूते पर होता है। यहां बात की जा रही है पवित्र मित्रा की। बिल्डर पवित्र मित्रा की एमडीएम में पहुंच का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अवैध रूप से बनाए गए उसके एसके रोड स्थित  कांप्लैक्स पर तमाम जानकारियां होने के बाद भी प्राधिकरण के अफसर वहां झांकने की जहमत तक नहीं उठाते। इसकी शिकायत जब ऊपर तक की जाती है तो कार्रवाई के नाम पर केेवल सील लगा कर पल्ला झाड़ लिया जाता हैै। सील तोड़कर जब दूसरी मंजिल पर भी लैँटर डाल दिया जाता है तो बजाए सीएम योगी का बुलडोजर लेकर अवैध कांप्लैक्स को गिराने के जोन के जेई केवल थाने पर तहरीर देते हैं। इस तहरीर की क्राेनोलॉजी भी समझ लीजिए। दरअसल यह सारी कवायद गर्दन बचाने के लिए की जाती है। ऐसा इसलिए होता है ताकि यदि मामले  की कमिश्नर सरीखे अफसर फाइल तलब करें तो अपनी नौकरी और गर्दन दोनों बची रहें। यह सब अवैध कांप्लैक्स को बचाने के लिए किया जाता हे। साथ ही यह भी कि वक्त लंबा खींचकर बिल्डर को कानूनी की मदद लेकर अवैध कांप्लैक्स की दुकानों को बेचने का पूरा मौका मिल सके। वर्ना ऐसी क्या वजह है जो तहरीर देने वाले एरिया के जेई ने थाने में जाकर बिल्डर के खिलाफ एफआईआर की पैरवी तक करना जरूरी नहीं समझा। और यदि पैरवी मजबूत की गयी है ओर एफआईआर भी दर्ज की गयी है तो फिर प्राधिकरण प्रशासन बताए कि सील तो तोडकर जो अवैध लैँटर डाला गया है उस पर कब बुलडोजर लगाया जाएगा।
अब्दुल्लापुर में कब्जा कर बेेच डाली थी सरकारी जगह
जिस पवित्र मित्रा बिल्डर की यहां बात की जा रही है, वो अब्दुल्लापुर के राली चाैहान में सरकारी जमीन पर कब्जा कर उसको बेचने को लेकर पहले भी चर्चा में रह चुका है। इस बिल्डर ने राली चौहान में कृषि भूमि करीब गज या वर्ग मीटर खरीदी थी। आरोप है कि उसने एक हजारर छियालिस वर्ग गज पर कब्जा कर उसको बेच डाला। हैरानी की बात तो यह है कि जो भूमि खरीदी गयी थी वो कृषि की थी और उसे व्यवसायिक में बेचा गया। मामला जब खुल गया ओर बात अफसरों तक पहुंच गयी और बिल्डर ने सभी बैनामे भी कर दिए थे, उसके बाद मामला जब तूल कपड़ने लगा तब उसने और एक हजार वर्ग गज जमीन खरीदी ताकि मामले को मैनेज किया जा सके।
प्राधिकरण परिसर में किया था जानलेवा हमला
बिल्डर पवित्र मित्रा की दबंगई केवल एमडीए  तक ही सीमित नहीं है। उसकी शिकायत करने वालों से वह हर तरह से निपटने की कूबत रखता है। इसी के चलते विगत दिनों इस बिल्डर का एक वीडिया सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिसमें वह एक आरटीआई एक्टिवस्ट अरूण को बुरी तरह से पीटता नजर आ रहा है। दअरसल आरटीआई एक्टिविस्ट ने इस बिल्डर पर तालाब की जमीन कब्जाने का आरोप लगाते हुए सीएम के आईजीआरएस पोर्टल पर शिकायत कर दी थी। उसके बाद प्राधिकरण ने इसकी कुछ दुकानें गिरा दी थीं।
यह कहना है सचिव का
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कैंट बोर्ड: बारिश ने फेरा पानी, कैंट बोर्ड के कथित भर्ती घोटाले से जुड़े सभी अफसरों पर शिकंजा कसने की कोशिशों पर बारिश ने पानी फेर दिया। यदि उस दिन बारिश ने सब्र कर लिया होता तो कैंट बोर्ड के बड़े साहव से लेकर तमाम उन अफसरों जिनका नाम भर्ती घोटाले में लिया जा रहा है, उन पर शिकंजा कस गया होता। बोर्ड के ये तमाम अफसर संजय के साथ सलाखों के पीछे होते और उन पर आफत के बादल बरस रहे होते, लेकिन ऐसा हो ना सका। कैंट बोर्ड के जिस कथित भर्ती घोटाले को लेकर छापा मार गया था, उसका टारगेट अकेला संजय नहीं था, उसको लेकर तो बड़े टारगेट तय किए गए थे, लेकिन उस रोज झमाझम बारिश ने तमाम तैयारियों पर पानी फेरकर रख दिया। यदि बारिश न होती और सब कुछ पहले से तय स्क्रिप्ट के मुताबिक हुआ होता तो फिर संजय की तर्ज पर बाकि सब के घर पर तलाशी होती और शिकंजे में भी होते। झमाझम बारिश की वजह से जिसको रकम थमानी थी, वो देर से पहुंचा। इसका नुकसान यह हुआ कि शिकार निशाने की पहुंच से बाहर निकल गया और भर्ती से जुड़ेे तमाम अफसरों ने अपनी गर्दन बचाने और संजय को मुख्य खलनायक साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यहां तक कि बोर्ड में किसी प्रकार की भर्ती की बात को हती एक सिरे से खारिज कर दिया गया। हालांकि इस बात की उम्मीद बिलकुल नहीं है कि भर्ती को लेकर जो सफाई दी गयी है, वो सब जांच ऐजेन्सी सीबीआई के सामने कहीं भी टिकेगा।
 लटकी है तलवार-मौके का है ऐजेन्सी को इंतजार
मेरठ। जिस कथित भर्ती व प्रमोशन घोटाले को लेकर मेरठ कैंट बोर्ड की देश भर की तमाम छावनियों में जमकर फजीहत हो रही है, उसकी तलवार अभी भी लटकी है और मौक का इंतजार बेहद करीब से नजर रखकर किया जा रहा है। असल में हो यह रहा है कि इस कांड से सीधे जुड़े कैंट बोर्ड के तमाम अफसर आरोपों के दाग अपने दामन से जितना रगड़-रगड़ का छुटाने का प्रयास कर रहे हैं वो दाग उतने ही गहरे होते जा रहे हैं। कैंट बोर्ड में किसी प्रकार की भर्ती न होने का दावा करने वाले अफसरों पर इस बात का कोई उत्तर नहीं कि सेनिटेशन में जो अस्थायी स्टााफ रखा गया है यदि भर्ती थी ही नहींं तो वो कहां से आ गए। उनको किसने काम पर लगा लिया। वहीं दूसरी ओर कथित भर्ती घोटाला अफसरों के लिए सांस छछूंदर कहावत सरीखा बनता जा रहा। यह  तो उगले बनता है ना ही निगले बनता है। ऐसा इसलिए कहा जाा रहा है कि जैसे कि संकेत मिल रहे हैं कि इस दौरान जिन्हें भर्ती किया गया है, उन सभी को हटा दिया जाएगा। जानकारों का कहना है यदि यह गलती की गयी तो जो मोटी रकम देकर भर्ती हुए हैं उनमें से कई ऐसे बताए जाते हैं जो नौकरी और दी गयी रकम जाते देखकर खुद भी जांच ऐजेन्सी के सामने पेश होने से पीछे नहीं है। स्टाफ में चर्चा है कि ऐसे कई अस्थायी कर्मचारी हैं जो कह रहे हैं कि यदि नौकरी गयी तो बयान को सीीबीआई के सामने पेश होने में उन्हें कोई गुरेज नहीं होगी।
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CBM: इस किरकिरी की सुबह नहीं, वो दिन था

 


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