रातों रात किसने डाल दीं झोंपड़ीं

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रातों रात किसने डाल दीं झोंपड़ीं, मेरठ छावनी के माल रोड स्थित रक्षा संपदा अधिकारी कार्यालय से चंद कदम की दूरी स्थित चर्च रोड पर रातों दर्जन भर से ज्यादा झोंपड़ियां डाल दी गयी हैं। इतना ही नहीं झोंपड़ियां डालने वालों ने वहां दर्जनों हरे भरे पेड़ भी काट डाले हैं। मेरठ छावनी के रीगल सिनेमा के समीप चर्च रोड पर जिस जगह यह सब किया गया है, उस जगह हथियारों से लैस लोगों देखे जा सकते हैं। ये झोपड़ियां किसने डाली हैं, कौन वो लोग हैं, कहां से आए हैं, उनका क्या मकसद हो सकता है। यह एक बड़ा सवाल है। यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि सुनने में आया है या कहें कि जबरदस्त चर्चा है कि रजबन सेटमेरी के सामने स्थित एक होटल मालिक की इस जगह पर नजर है। हालांकि इस बात की कोई अधिकारिक पुष्टि हमारा मीडिया संस्थान नहीं करता है। लेकिन इस बात की चर्चा जबरदस्त है कि किसी होटल मालिक की नजर इस जगह पर पड़ गयी है और उसी के रास्ते के कांटे निकालने के लिए इस जगह जितने भी हरे भरे पेड़ थे उनको साफ करा दिया गया है।

सैन्य प्रतिष्ठानों के बीचों बीच

मेरठ छावनी के माल रोड से सटे चर्च रोड पर जहां ये स्थान मौजूद है, वहां आसपास तमाम सैन्य प्रतिष्ठान मौजूद हैं। इस स्थान के बिलकुल बगल में (मिल्ट्री इंजीनियरिंग सर्विस)  एमईएस का गेस्ट हाउस है। इस गेस्ट हाउस में अक्सर आर्मी के उच्च पदस्थ अधिकारी ठहरा करते हैं। उनकी आवाजाही रहती है। इसके अलावा इस स्थान के आसपास कई अन्य सैन्य प्रतिष्ठान हैं। सेना की कैंटीन और सबसे बड़ा सैन्य प्रतिष्ठान आरवीसी यानि रिमाउन्ट वैटनरी सेंटर है। सैन्य प्रतिष्ठानों के बीचों बीच मौजूद इस स्थान जो अरसे से कम से कम बीस दशक से सुनसान पड़ा है वहां जंगल सरीखे हालात हैं, वहां यदि एकाएक रातों रात यदि झोंपड़ियां डाल कर वहां बंदूक धारी यदि पहरेदारी करते नजर आएंगे तो सवाल तो बनता है।

झोपड़ी हैं भीतर से खाली

चर्च रोड स्थित जिस स्थान की यहां बात की जा रही है वहां जो झोपड़ियां डाली गयी हैं उनमें रहने वाला कोई नहीं है। केवल झोंपड़ी ही झोपड़ी नजर आती हैं लेकिन सामान के नाम पर भीतर एक मेज कुर्सी तक नहीं हैं। कुल मिलाकर हालात यह है कि इस सुनसान जगह को भौतिक रूप से आबाद दिखाने का प्रयास किया जा रहा है इसके पीछे मंशा क्या है क्याें ऐसा किया जा रहा है, यह स्पष्ट नहीं है।

गाडगिल सोसाइटी से कनेक्शन

उक्त जिस स्थान का यह जिक्र किया जा रहा है, उसके संबंध में एक अन्य जानकारी मिली है, जो सीसीएसयू के पूर्व वीसी रविन्द्र सिंह द्वारा इस संवाददाता को दी गयी है। बकौल रविन्द्र सिंह करीब दो दशक से ज्यादा अरसा पहले यह जगह गाडगिल सोसाइटी के नाम पर भारत सरकार द्वारा उन्हें लीज पर दी गयी है। यह गाडगिल शोध संस्थान का निर्माण कराया जाना था जिनके नाम पर यह लीज भारत सरकार द्वारा दी गई, लेकिन कुछ निजी कारणों के चलते यहां गाडगिल शोध संस्थान का निर्माण नहीं कराया जा सका। हालांकि रविन्द्र सिंह का कहना है कि वह अक्सर गाडगिल शोध संस्थान के कार्यक्रम कराते रहते हैं। उम्र का तकाजा होने की वजह से वह अब शोध संस्थान के नाम पर होने वाले कार्यक्रम को उतना समय नहीं दे पाते, लेकिन उनका पुत्र मृणाल शोध संस्थान के कार्यक्रम आयोजित कराता रहता है।

चर्चाओ को बताया निराधार

वहीं दूसरी ओर सीसीएसयू के पूर्व वीसी रविन्द्र सिंह ने इस बात को एक सिरे से खारिज किया है कि शोध संस्थान के नाम पर भारत सरकार से ली गयी यह जगह किसी होटल मालिक से सौदा की जा रही है। उन्होंने माना कि वहां कुछ झोंपड़ियां डाली गयी हैं, हालांकि इस बात का साफ उत्तर नहीं दे सके कि दर्जन भर से ज्यादा करीब बीस झोंपड़ियां क्यों डाल दी गयीं। यदि देख भाल या नौकर की रहने की बात है तो एक या दो या तीन झोपड़ी डाली जाती, एकाएक रातों रात इतनी बड़ी संख्या में झोपड़ी डाले जाने का मंतव्य स्पष्ट नहीं हो सका।

 


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