क्यों है एस.एल. भैरप्पा चर्चा में

kabir Sharma
3 Min Read
WhatsApp Channel Join Now
WhatsApp Group Join Now

नई दिल्ली। देश और दुनिया में आज एलएल भैरप्पा की चर्चा हर तरफ है। उन्हें अनेक राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुके हैं। पीएम मोदी के हाथों से उन्होंने पूर्व में पद्य पुरस्कार ग्रहण किया। तब उन्होंने कहा था कि पीएम मोदी ने उनके काम की पहचान की है। आज जिस मुकाम पर भैरप्पा खड़े हैं वहां तक पहुंचने में उन्हें कड़े पथरीले रास्तों से होकर गुजरना पड़ा। आज हर कोई भैरप्पा का नाम ले रहा है। उनको सम्मान मिल रहा है। लेकिन यह सब इतना सर नहीं था जितना दिखाई देता है। उनकी आवाज दबाने का प्रयास किया गया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। वह रूकावटों से जुझते हुए आगे बढ़ते रहे और आज वह अर्श पर हैं। संतेशिवरा लिंगन्नैया भैरप्पा (20 अगस्त 1931 – 24 सितंबर 2025) एक भारतीय उपन्यासकार, दार्शनिक और पटकथा लेखक थे, जिन्होंने कन्नड़ में लिखा था। उनका काम कर्नाटक राज्य में लोकप्रिय है और उन्हें आधुनिक भारत के लोकप्रिय उपन्यासकारों में से एक माना जाता है। उनके उपन्यास विषय, संरचना और चरित्र चित्रण की दृष्टि से अद्वितीय हैं।  वह कन्नड़ भाषा के सबसे अधिक बिकने वाले लेखकों में से एक रहे हैं और उनकी पुस्तकों का हिंदी और मराठी में अनुवाद किया गया है जो बेस्टसेलर भी रहे हैं। भैरप्पा की रचनाएँ समकालीन कन्नड़ साहित्य की किसी विशिष्ट शैली जैसे नवोदय , नव्या , बंदया या दलित में फिट नहीं बैठतीं , आंशिक रूप से उनके द्वारा लिखे गए विषयों की सीमा के कारण। उनकी प्रमुख रचनाएँ कई गरमागरम सार्वजनिक बहसों और विवादों के केंद्र में रही हैं।  उन्हें 2010 में 20वें सरस्वती सम्मान से सम्मानित किया गया।  मार्च 2015 में, भैरप्पा को साहित्य अकादमी फेलोशिप से सम्मानित किया गया । भारत सरकार ने उन्हें 2016 में पद्म श्री और 2023 में पद्म भूषण के नागरिक सम्मान से सम्मानित किया। 

कुछ ऐसा था संतेशिवरा लिंगन्नैया भैरप्पा प्रारंभिक जीवन

एसएल भैरप्पा का जन्म  हसन जिले के चन्नारायपटना तालुका के  संतेशिवरा गाँव में हुआ था, जो  बैंगलोर से लगभग 162 किलोमीटर (101 मील) दूर है  । वे एक पारंपरिक  होयसल कर्नाटक ब्राह्मण परिवार से थे। बचपन में ही  उनकी माँ और भाइयों की मृत्यु  बुबोनिक प्लेग के कारण हो गई थी और अपनी शिक्षा का खर्च उठाने के लिए उन्होंने छोटे-मोटे काम किए। बचपन में, वे गोरूर रामास्वामी अयंगर के लेखन से प्रभावित थे । स्कूल रिकॉर्ड के अनुसार उनकी जन्मतिथि 20 अगस्त 1931 है और उन्होंने अपनी आत्मकथा  भिट्टी में लिखा है कि उनकी वास्तविक जन्मतिथि अलग है।

- Advertisement -
WhatsApp Channel Join Now
Share This Article
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *