
मान्यताओं के अनुसार गोस्वामी तुलसीदास जी के शिष्य मेघा ने सबसे पहले रामलीला व दहशरा की परंपरा की शुरूआत की
दुनिया में सबसे ज्यादा मशहूर मैसर का दशहरा, लाखों की संख्या में पहुंचते हैं विदेशी, महिषासुर मर्दिनी की होती है उपासना
मैसूर/अयोध्या। देश और दुनिया में रामलीला की धूम है। दशहरा पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है, लेकिन रामलीला व दशहरा की परंपरा कब शुरू हुई यह कम ही लोग जानते हैं, आइए हम बता देते हैं कि कब से रामलीला के आयोजन का रिवाज शुरू हुआ। यह जानकारी महत्वपूर्ण है और बच्चों के लिए इसलिए खासतौर से जानना जरूरी है क्योंकि कंपटीशन में यह सवाल आ सकता है। रामलीला की परंपरा की शुरुआत कब हुई, इसको लेकर अलग-अलग मत हैं, लेकिन यह माना जाता है कि संगठित रूप से इसकी शुरुआत 16वीं शताब्दी में तुलसीदास के प्रभाव से हुई, और 1625 में तुलसीदास के शिष्य मेघा भगत ने रामचरितमानस-आधारित रामलीला की शुरुआत की। कुछ जगहों पर, जैसे कि कानपुर और आगरा में, 17वीं और 18वीं शताब्दी के अंत में राजाओं और स्थानीय व्यापारियों की पहल से इसका विकास हुआ। तभी से राम लीला व दहशरा मनाया जा रहा है। मुगलों में कई बादशाह हुए हैं जिन्होंने हिन्दुओं के इस पर्व को बहुत आगे बढ़ाने का काम किया, लेकिन हिन्दू राजाओं ने भी इसको काफी आगे बढ़ाया लेकिन मुगल कुछ मुगल बादशाहों ने काफी दिल खोलकर दशहरा व रामलीला पर खर्च किया।
मैसूर का दशहरा पर्व दुनिया में विख्यात
दशहरा का पर्व सबसे ज्यादा विख्यात मैसूर का है। मैसूर दशहरा भारत के कर्नाटक राज्य का राजकीय उत्सव है। यह दस दिनों तक चलने वाला उत्सव है, जिसकी शुरुआत नवरात्रि नामक नौ रातों से होती है और अंतिम दिन विजयादशमी होती है। यह उत्सव हिंदू कैलेंडर के अनुसार अश्विन माह के दसवें दिन मनाया जाता है, जो आमतौर पर सितंबर और अक्टूबर के ग्रेगोरियन महीनों में पड़ता है। ज्योतिषियों के अनुसार , यह उस दिन का स्मरण करता है जब देवी भगवती (दुर्गा) ने दैत्य राज महिसासुर का वध किया था । कथाओं के अनुसार महिषासुर को वह राक्षस भी माना जाता है जिसके वध के बाद शहर का नाम मैसूरू पड़ा । मैसूरु परंपरा इस त्यौहार के दौरान अच्छाई के लिए लड़ने वाले योद्धाओं और राज्य का जश्न मनाती है, राज्य की तलवार, हथियार, हाथी, घोड़ों की पूजा और प्रदर्शन करती है, साथ ही देवी के योद्धा रूप (मुख्य रूप से) के साथ-साथ विष्णु के अवतार रामजी की भी पूजा की जाती है । समारोह और एक प्रमुख जुलूस की पारंपरिक रूप से मैसूरु के राजा द्वारा अध्यक्षता की जाती है। मैसूर शहर में दशहरा उत्सव को भव्यता और धूमधाम से मनाने की एक लंबी परंपरा रही है। यह उत्सव 15वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के राजाओं द्वारा कर्नाटक राज्य में मनाया जाता था।