
बंगलादेश मुक्ति ने लिखी थी जंग की इबारत, सीमा पर था भयंकर तनाव, उस वक्त जंग पर अमादा थे
नई दिल्ली। साल था 1971 और स्थान था भारत पाकिस्तान के अग्रीम मोर्चे और पीएम थीं श्रीमती इंदिरा गांधी, जिन्होंने भूगोल बदलने का काम किया था। भारत-पाकिस्तान सीमा पर तनाव चरम पर पहुंच गया है। पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में दिसंबर 1970 में होने वाले आम चुनावों से पहले ही राजनीतिक अस्थिरता ने पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान के बीच खाई को गहरा कर दिया है। भारतीय सीमा पर लाखों शरणार्थियों का बहाव और सीमा सुरक्षा बलों (BSF) की लगातार झड़पें युद्ध की आशंका को बढ़ा रही हैं। सरकार ने पूर्वी सीमा पर सतर्कता बढ़ा दी है, जबकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय चिंतित है कि यह तनाव पूर्ण युद्ध में बदल सकता है।
बंगाली राष्ट्रबार उफान पर
पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से में बंगाली राष्ट्रवाद की लहर तेज हो रही है। 12 नवंबर 1970 को भोला चक्रवात ने पूर्वी पाकिस्तान में भयानक तबाही मचाई, जिसमें 3-5 लाख लोग मारे गए। लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान सरकार की लापरवाही और अपर्याप्त राहत प्रयासों ने बंगालियों में आक्रोश पैदा कर दिया। अवामी लीग के नेता शेख मुजीबुर रहमान ने चुनावों में स्वायत्तता की मांग को प्रमुखता दी है, जो पाकिस्तानी सेना के लिए खतरा बन रही है। भारतीय खुफिया सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तानी सेना पूर्वी क्षेत्र में दमनकारी कार्रवाई की तैयारी कर रही है, जिससे सीमा पर घुसपैठ की घटनाएं बढ़ गई हैं।
सीाम पर झड़पें और पूर्वी कमान अलर्ट
नवंबर के मध्य से पूर्वी पाकिस्तान से हजारों बंगाली शरणार्थी असम, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल की सीमाओं पर पहुंचने लगे। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, चक्रवात के बाद राहत की कमी ने स्थिति बिगाड़ दी, और राजनीतिक तनाव ने इसे और जटिल बना दिया। भारत सरकार ने सीमा पर अस्थायी शिविर स्थापित किए हैं, लेकिन संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है। पंजाब, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर की पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तानी रेंजर्स की घुसपैठ की खबरें आ रही हैं। पूर्वी मोर्चे पर मुक्ति वाहिनी के बंगाली लड़ाकों ने पाकिस्तानी चौकियों पर हमले तेज कर दिए हैं। BSF ने 25 नवंबर को त्रिपुरा सीमा पर एक पाकिस्तानी घुसपैठ को विफल कर दिया, जिसमें दो पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। भारतीय सेना ने पूर्वी कमांड को अलर्ट कर दिया है। जनरल सैम मानेकशॉ के नेतृत्व में अभ्यास तेज हो गए हैं। दूसरी ओर, पाकिस्तानी सेना पूर्वी पाकिस्तान में अतिरिक्त टुकड़ियां तैनात कर रही है, जो भारत के लिए खतरे की घंटी है।
पीएम इंदिरा गांधी बोलीं राष्ट्र प्रथम
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संसद में कहा, “हम शांति चाहते हैं, लेकिन सीमा की अखंडता पर कोई समझौता नहीं होगा। पूर्वी पाकिस्तान का संकट मानवीय है, लेकिन पाकिस्तान की नीतियां इसे युद्ध का रूप दे रही हैं।” विपक्ष ने सरकार से अपील की है कि सोवियत संघ के साथ गठबंधन को मजबूत किया जाए, क्योंकि अमेरिका पाकिस्तान का समर्थन कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने पूर्वी पाकिस्तान में तत्काल राहत की मांग की है, लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान की अनदेखी पर सवाल उठाए हैं। सोवियत संघ ने भारत का समर्थन जताया है, जबकि चीन पाकिस्तान के साथ खड़ा दिख रहा है। ब्रिटिश राजदूत ने एक गोपनीय रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि चुनाव परिणाम पूर्वी पाकिस्तान में विद्रोह को भड़का सकते हैं, जो भारत को प्रभावित करेगा।
किसान, व्यापारी और आम नागरिक चिंतित हैं। सीमा क्षेत्रों में कालाबाजारी बढ़ गई है, और राशनिंग की अफवाहें फैल रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि दिसंबर के चुनावों में अवामी लीग बहुमत हासिल करती है और पाकिस्तान सरकार उसे सत्ता नहीं सौंपती, तो पूर्वी सीमा पर युद्ध अपरिहार्य हो जाएगा। अधिक जानकारी के लिए आधिकारिक स्रोतों या हेल्पलाइन पर संपर्क करें। यह तनाव न केवल सीमा सुरक्षा का मुद्दा है, बल्कि दक्षिण एशिया की स्थिरता के लिए खतरा बन चुका है। शांति की उम्मीद के बीच सतर्कता ही एकमात्र रास्ता है।