
मुल्क के बंटवारें के असली गुनहाकार हैं ये, बापू ने कभी नहीं चाहा था टू नेशन थ्योरी को, अंग्रेजों के हाथों खेल रहे थे जिन्ना
नई दिल्ली। साल 1947 जब अभाजित भारत का बंटवारा हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के रूप में आसन्न था। गांधी इससे बेहद परेशान थे। वो कांग्रेस और जिन्ना दोनों काे समझाते थे, लेकिन हालात दिनों दिन खराब हो रहे थे। एक दिन बापू झुंझला गए और कहा कि मेरे जिस्म के दो टुकड़े कार सकते हो तो कर दो, लेकिन भारत का बंटवारा मत करो। लेकिन टू नेशन थ्योरी का बीत तो करीब सौ साल पहले दिल्ली से सटे मेरठ में बो दिया गया था जब 1876 से 1888 के दौरान पहले स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के बाद सेय्यद अहमद खान ने मेरठ में एक भाषण के दौरान कहा था कि हिन्दू और मुसलमान दो अलग कौमें हैं। इनकी रीति रिवाज, धर्म, इतिहास और सभ्यता अलग हैं। ये कभी भी एक राष्ट्र नहीं बन सकते। यही सबसे पहला स्पष्ट “टू-नेशन थ्योरी” का रूप था। इसीलिए कहा भी जाता है कि टू नेशन थ्योरी फर्स्ट टाइम मेरठ की धरती से… हालांकि सैकुलर हिन्दू मुसलमान आज भी सैय्यद अहमद खान को जाहिल मानते हैं। 75 साल बाद भी, भारत-पाकिस्तान के रिश्ते में वो ‘लाइन’ दिखती है। क्या बंटवारा अवॉइडेबल था? इतिहासकार कहते हैं – हां, अगर लीडर्स यूनाइटेड रहते। लेकिन ‘पावर’ और ‘डिवाइड’ की पॉलिसी जीत गई। क्या तुम्हें लगता है ब्रिटेन को ‘रिपेयरेशन’ देना चाहिए? या भारतीय लीडर्स को ब्लेम? कमेंट्स में डिबेट शुरू करो!
सावरकर व जिन्ना बड़े कसूरवार
टू नेशन थ्योरी यानि मुल्क के बंटवारे के लिए हिन्दू महासभा का राष्ट्रीय अध्यक्ष सावरकर भी कम गुनाहकार नहीं। उसने भी मुल्क के बंटवारे की पैरवी की थी। साल था दिसंबर 1737 में कलकत्ता में हिन्दू महासभा का राष्ट्रीय अधिवेशन था जिसमें सावरकर ने कहा था
“भारत में दो राष्ट्र रहते हैं – हिंदू और मुसलमान। ये दो अलग-अलग राष्ट्र हैं। इनके धर्म, संस्कृति, इतिहास, हीरो सब अलग हैं। ये कभी एक राष्ट्र नहीं बन सकते। अगर मुसलमान अलग राष्ट्र हैं, तो हिंदू भी अलग राष्ट्र हैं।” “अगर मुसलमानों को अलग पाकिस्तान चाहिए, तो हिंदुओं को हिंदुस्तान चाहिए। दोनों को अलग-अलग रहना ही पड़ेगा।” उसके बाद मार्च 1940 (लाहौर प्रस्ताव)टू-नेशन थ्योरी को मुस्लिम लीग का आधिकारिक सिद्धांत बनाया।
बापू बोले कर दो मेरे जिस्म के दो टूकड़े और बना लो पाकिस्तान हिन्दुस्तान
टू नेशन थ्योरी से यदि सबसे ज्यादा कोई दुखी था तो वो थे महात्मा गांधी। एक बार उन्होंने जिन्ना और नेहरू के सामने यहां तक कह दिया था कि मेरे जिस्म के दो टुकड़े कर दो और फिर इस पर बना लो हिन्दुस्तान और पाकिस्तान दो अलग मुल्क…यह बात आज कई लोग जानबूझकर दबाते हैं, लेकिन ऐतिहासिक रिकॉर्ड में साफ दर्ज है। इतिहासकारों की बहस जारी है: कोई ब्रिटेन को ब्लेम करता है, कोई जिन्ना को, तो कोई कांग्रेस को।
| जिम्मेदार प्लेयर | भूमिका | ‘डार्क ट्विस्ट’ या फैक्ट | क्यों ब्लेम? |
|---|---|---|---|
| ब्रिटिश साम्राज्य (लॉर्ड माउंटबेटन) | वायसराय, प्लान के ‘मास्टरमाइंड’ | ‘डिवाइड एंड रूल’ पॉलिसी से हिंदू-मुस्लिम तनाव बढ़ाया; रैडक्लिफ को बॉर्डर ड्रा करने का काम सौंपा, जो ‘अनफेयर’ था। | मुख्य जिम्मेदार – इंपीरियल ब्रिटेन ने सदियों की दुश्मनी बोई; जल्दबाजी में बंटवारा किया ताकि कमजोर देश छोड़कर भागें। |
| मुहम्मद अली जिन्ना (मुस्लिम लीग) | पाकिस्तान की मांग करने वाले लीडर | ‘टू-नेशन थ्योरी’ पेश की – मुसलमानों के लिए अलग देश; डायरेक्ट एक्शन डे (1946) से दंगे भड़काए। | जिद्दी मांग से बंटवारा ‘इनेविटेबल’ बनाया; लेकिन क्या वो ब्रिटिश ‘पॉन’ थे? |
| जवाहरलाल नेहरू (कांग्रेस) | भारत के पहले PM, बंटवारे को एक्सेप्ट किया | गांधी की सलाह नजरअंदाज कर ‘पावर’ के लिए राजी हुए; कांग्रेस ने मुस्लिम लीग से समझौता नहीं किया। | ‘मजबूरी’ में बंटवारा माना, लेकिन क्या पहले रोक सकते थे? राजाजी जैसे लीडर्स ने चेतावनी दी थी। |
| महात्मा गांधी | बंटवारे के खिलाफ, लेकिन असफल | ‘हिंदू-मुस्लिम यूनिटी’ की कोशिश की, लेकिन कांग्रेस को रोक नहीं सके; आखिर में एक्सेप्ट किया। | ब्लेम मिलता है क्योंकि ‘पैसिव’ रहे; लेकिन वो सबसे ज्यादा खिलाफ थे – क्या ‘ट्रू हीरो’ या ‘फेलियर’? |
| साइरिल रैडक्लिफ | बॉर्डर कमीशन चेयर | कभी भारत नहीं देखा, लेकिन 1947 में ‘रैडक्लिफ लाइन’ खींची – गांवों को आधे में काटा! | ‘अनएक्सपीरियंस्ड’ डिसीजन से हिंसा बढ़ी; ब्रिटिश ‘टूल’ थे। |
निष्कर्ष
सबसे पहले टू-नेशन थ्योरी को सैद्धांतिक रूप से लाने वाले – सैयद अहमद खान (1870-80 के दशक में) मेरठ में बड़ी सभा में भा इसे राजनीतिक मंच पर लाने वाले – अल्लामा इकबाल (1930) इसे लागू करवाने वाले – सावारकर ओर मुहम्मद अली जिन्ना (1937-1940-47) नतीजा लाखों बेगुनहों की मौत