“न्याय का ‘नाइट शिफ्ट’ चालू आहे, दावा न्याय की खातिर सुप्रीम जागरण, राम रहीम और शरजील इमाम सवाल से कब तक भागेंगे
नई दिल्ली। देर से मिला इंसाफ किसी नाइंसाफी से कम नहीं! संविधान कहता है कि कानून सबके लिए बराबर है, लेकिन मुल्क के घटनाक्रम बता रहे हैं कि इस थ्योरी का झुठलाया जा रहा है। जो सजायाफ्ता है उन्हें ताबड़तोड़ पैरोल मिलती हैं और जो अभी केवल महज आरोपी हैं सलाखों के पीछे हैं उनको बेल की फुसर्त तक नहीं। अब इसको सेलेक्टिव जस्टिस का ब्लैक होल ना कहें तो क्या कहें। सुप्रीम कोर्ट रात के 3 बजे ‘लाइट्स ऑन’ कर मौत की सजाओं पर सुनवाई करता है, लेकिन ‘राजनीतिक कैदी’ 5 साल जेल काटते रहें बिना ट्रायल के! एक तरफ राम रहीम जैसे ‘सेल्फ-स्टाइल्ड गॉडमैन’ – रेप और मर्डर के कन्विक्ट – को 14वीं बार 40-दिन की ‘पेरोल पार्टी’ मिल रही है, तो दूसरी तरफ शरजील इमाम जैसे एक्टिविस्ट, जो CAA के खिलाफ स्पीच के लिए ‘टेररिस्ट’ टैग खा चुके हैं, को UAPA के जाल में फंसा कर ‘बेल’ से दूर रखा जा रहा। 24 नवंबर SC हियरिंग – वकील कपिल सिब्बल:- “5 साल = इनह्यूमन!” अगर बेल मिली, तो ‘UAPA चैलेंज’ का बड़ा केस।
दिक्कत बस इसी ‘डबल स्टैंडर्ड’ से है
क्या ये ‘डबल स्टैंडर्ड’ का ड्रामा है – जहां ‘वोट बैंक’ वाले अपराधी घूमते हैं, लेकिन ‘वॉयस’ उठाने वाले सड़ते हैं? आज हम इस ‘जस्टिस जुगलबंदी’ को एक्सपोज करते हैं – सटीक फैक्ट्स, चुभते सवालों और ‘कटिंग एज’ ट्विस्ट के साथ। क्या SC का ‘मिडनाइट मैजिक’ सिर्फ ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’ के लिए है, या ‘पावरफुल’ के लिए ‘पेरोल पैराडाइज’? सुप्रीम कोर्ट ‘बड़े मामलों’ में रात-भर जागता है – खासकर डेथ पेनल्टी वाले। लेकिन शरजील इमाम का केस? 5 साल से ‘बेल प्लिया’ लटकी हुई, ट्रायल ‘पेंडिंग’!
सुप्रीम वानगी एक नजर भर
2015 में याकूब मेमन के फांसी से 3 घंटे पहले SC ने मिडनाइट हियरिंग की। 2020 में निर्भया कन्विक्ट पवन के लिए 3:15 AM पर दरवाजे खुले। निथारी किलिंग्स (2014) में सूरिंदर कोली की फांसी से 2 घंटे पहले रात की सुनवाई। ये ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’ केस – जहां जिंदगी-मौत का सवाल। 2015 में याकूब मेमन के फांसी से 3 घंटे पहले SC ने मिडनाइट हियरिंग की। 2020 में निर्भया कन्विक्ट पवन के लिए 3:15 AM पर दरवाजे खुले। निथारी किलिंग्स (2014) में सूरिंदर कोली की फांसी से 2 घंटे पहले रात की सुनवाई। ये ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’ केस – जहां जिंदगी-मौत का सवाल। बकौल सुप्रीम प्रवचन “प्रोटेस्ट में पार्टिसिपेट करना क्राइम नहीं!” लेकिन UAPA का ‘बेल-बैन’ – जमानत ‘नो वे’! क्या ये ‘स्पीच = सेडिशन’ का ट्रैप है?
संविधान से सुप्रीम कुछ नहीं
जो कुछ ऊपर कहा गया है हो सकता है कुछ चुभने वाला हो, लेकिन वो बात कारा ही क्यों दिया जाए जो चूभने वाली ऐसी कुछ बात कहे। और कुछ नहीं बस संविधान को याद रख लो इसी से देश का भला हो जाएगा। UAPA में बेल नहीं, लेकिन ये तो बता दो क्या UAPA बनता है। कुछ तो डरो भाई संविधान से शरजील, उमर खालिद, मीरान हैदर सरीखों को अभी भी जेल सजा याफ्ता को पैरालो के नाम पर बेल हे राम!