
बेगम समरू महल ने था बनवाया, इलली से बुलाए गए थे आर्किटेक्ट, दुनिया भर से आते हैं हजारों श्रद्धालु
नई दिल्ली/ मेरठ। विश्व प्रसिद्ध बेसिलिका ऑफ आवर लेडी ऑफ ग्रेसेस (सरधना चर्च) में क्रिस्मस के जश्न के लिए सजकर पूरी तरह से तैयार है। इस साल यहां भारी संख्या में विदेशों से ईसाई श्रद्धालुओं के आने की काफी उम्मीद है। विदेशी मेहमानों की आमद के चलते सुरक्षा के कड़े इंतजाम रहेंगे। यह 200 साल से ज्यादा पुराना चर्च बेगम समरू द्वारा बनवाया गया था और उत्तर भारत का सबसे बड़ा चर्च माना जाता है। हर साल क्रिस्मस पर यहां रंग-बिरंगी लाइटों, क्रिस्मस ट्री और विशेष सजावट से चर्च को दुल्हन की तरह सजाया जाता है।
साल 1961 में मिला था माइनर बेसिलिका का दर्जा
बेगम समरू महल के द्वारा बनवाए गए इस चर्च का कितना ज्यादा महत्व है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चर्च को पोप जॉन ने 1961 में माइनर बेसिलिका का दर्जा दिया था। यहां विदेशी सैलानी भी प्रार्थना करने आते हैं। क्रिस्मस पर यहां मेले सरीखा माहौल होता है। सरधना के लोग पूरे साल 25 दिसंबर के आने का इंतजार करते हैं। इस मौके पर क्रिस्मस ट्री, स्टार और बेल्स से पूरा चर्च रोशनी में नहाएगा। 24/25 दिसंबर को मिडनाइट मिस्सा, कैरोल गायन और प्रभु यीशु के जन्मोत्सव की विशेष प्रार्थनाएं होंगी। माता मरियम की चमत्कारी तस्वीर के सामने मोमबत्तियां जलाने की परंपरा रहेगी। चर्च के बाहर मेला लगेगा, जहां विभिन्न राज्यों से लंगर चलाए जाएंगे। राजस्थान, पंजाब आदि से श्रद्धालु लंगर चला रहे हैं।
चर्च करता है दुनिया को हैरान
यह चर्च दुनिया भर के इसाइयों के लिए श्रद्धा का केंद्र है। साल 1809-1822 (नींव 1809 में पड़ी, पूरा 1822 में हुआ) उस वक्त इसकी लागत दस लाख से ज्यादा आयी थी जो आज करोड़ों लाख बैठती है। इसको बनवाने के लिए खासतौर से इटली से आर्किटेक्ट एंटिनो आर को बुलाया गया था। उन्होंने ही इसको डिजाइन किया था। यूरोप के बारोक स्टाइल में बना भारत का एकमात्र बेसिलिका जिसकी छत पर तीन विशाल गुंबद हैं और साल 1961 में पॉप जाॅन ने इसको माइनर बेसिलिका के रूप में मान्यता भी दी थी। यह इकलौता दुनिया का ऐसा चर्च है जिसको मुस्लिम औरत ने बनवाया है।
चर्च का इतिहास
इस चर्च को जोहरा बेगम ऊर्फ बेगम समरू ने बनवाया था। कौन थी बेगम समरू यह भी बता देते हैं। जानकार बताते हैं कि 1750 के आसपास दिल्ली में एक नाच-गाने वाली लड़की थी उसका नाम जोहरा बेगम था। 15-16 साल की उम्र में जर्मन मूल के मर्सिनरी सैनिक वाल्टर रेनहार्ट (उर्फ सोमब्रे/सोमरू) की वह रखैल बनी बतायी जाती है। सोमरू की मौत के बाद जोहरा ने 1778 में उसकी पूरी फौज, खजाना और सरधना की जागीर अपने नाम कर ली। 1781 में कैथोलिक धर्म अपनाया और नाम रखा नोबल सोमब्रे।अपने मरते दम तक उसने 40 हजार सैनिकों वाली सेना और 4 करोड़ रुपये की दौलत के साथ सरधना पर राज किया। उसकी तलवार आज भी चर्च में टंगी है