लाखों कीमत की बिजली की बर्बादी, अफसरों की आंखों पर पट्टी, ना कोई सुनने वाला ना कोई रोकने वाला
मेरठ। रात में भले ही मेरठ लाइट के लिए तरसता हो, लेकिन महानगर के ज्यादातर इलाकों में दिन में जरूर लाइट जलती हुई देखी जा सकती है। और तो और वीआईपी माने जाने वाले सिविल लाइन का इलाका भी दिन में स्ट्रीट लाइट की चकाचौंध से गुलजार है।इसके इतर शहर की पुरानी आबादी वाले तमाम इलाके ऐसे हैं जहां अक्सर रात में स्ट्रीट लाइटों की बत्ती गुल हो जाती है। सबसे बुरा हाल तो वाया मेरठ दिल्ली-देहरादून हाइवे का है जिसका बड़ा हिस्सा अंधेरे में डूबा रहता है और इसकी वजह से कई बार हादसे भी हो चुके हैं। एनएच-58 हाइवे के अलावा लावड़ रोड पर भी शाम ढलने के साथ ही अंधेरा जा छाता है।
रात के अंधेरे में सड़कें डरावनी
तमाम ऐसे इलाके हैं जहां दिन भर स्ट्रीट लाइटें जलती हैं। पूर्व में ऐसा नहीं होता था। पिछले कुछ वक्त से महानगर के ज्यादातर इलाकों में भले ही शाम ढलते ही अंधेरा छा जाए लेकिन दिन में स्ट्रीट लाइटों की रौशनी से गुलजार रहते हैं। तमाम ऐसे इलाके हैं जहां रात के अंधेरे में सड़कें बेहद डरावनी नजर आती हैं। अकेले उधर से गुजरने में भी हादसे का डर सताता है।
रेवेन्यू का रोनाऔर बिजली की बर्बादी
पीवीवीएनएल के अफसर अक्सर रेवेन्यू की तंगी का रोना रोते रहते हैं। एक ओर तो रेवेन्यू की तंगी का रोना और दूसरी ओर दिन में गुलजार की जा रही स्ट्रीट लाइटों से बिजली की अंधाधुंध बर्बादी। बताया गया है कि “शहर में करीब 52,000 स्ट्रीट लाइटें हैं। इनमें से 60% से ज्यादा लाइटें अभी भी पुराने टाइमर सिस्टम पर चल रही हैं। टाइमर खराब हो गए हैं, कोई देखने वाला नहीं। दिन में बेवजह जलने से हर महीने करीब 20-22 लाख रुपये की बिजली बर्बाद हो रही है।” इसके अलावा कई जगहों पर सेंसर भी खराब हैं, जिससे बादल छाए होने पर भी लाइटें दिन में जलने लगती हैं।
अपराधिक घटनाएं
महानगर के जिन इलाकों में दिन में उजाला और रात में अंधेरा रहता है उन इलाकों में छेड़खानी व झपट्टामारी की घटनाओं का अंदेश बना रहता है। केवल अंदेशा ही नहीं अक्सर वारदातें होती भी हैं। इस मामले में लावड़ रोड सबसे ज्यादा बदनाम है जबकि हाइवे पर लाइट ना होने की वजह से अक्सर एक्सीडेंट होते हैं। बेगमपुल व्यापार संघ के अध्यक्ष पुनीत शर्मा बताते हैं कि “पहले बिजली कटौती से परेशान थे, अब लाइटें जलती ही गलत समय पर हैं। उन्होंने कहा कि पब्लिक को बिजली की बर्बादी नजर आती है लेकिन अफसरों को नहीं। अफसर बिजली बचाओं का नारा तो देते हैं लेकिन बिजली की बर्बादी पर कुछ करने को तैयार नहीं। लोगों का कहना है कि मैनुअल तरीके से ही सही — शाम को लाइटें जलवाई जाएं। वरना यह “स्मार्ट सिटी” सिर्फ दिन में ही स्मार्ट दिखेगी, रात में डरावनी बनकर रह जाएगी।