निगम ने किया शहर कुत्तों के हवाले

kabir Sharma
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शहर की सड़कों पर लगता है डर, जंग का मैदान बन गए हैं गली मोहल्ले, कुत्तों की नसबंदी के दाबे किताबी

मेरठ। नगर निगम के अफसरों ने शहर को खतरनाक कुत्तों के हवाले कर दिया है। कुत्तों की नसबंदी के दावे हवाई हैं। नगर स्वास्थ्य अधिकारी डा. हरपाल सिंह को तो निगम ने गोशाला मामले में जेल भिजवा दिया था, हालांकि 57 दिन बाद 17 सितंबर उनको जमानत मिल गई, लेकिन अभी भी वह सस्पेंड चल रहे हैं। जब डाक्टर ही नहीं है तो फिर कुत्तों की नसबंदी के दावे किस आधार पर किए जा रहे हैं। निगम में इसके लिए जब कोई अधिकारी ही नहीं है तो फिर किस आधार पर पशुओं की नसबंदी के दावे किए जा रहे हैं। निगम के पूर्व पार्षद गफ्फार का कहना है कि नगरायुक्त पहले किसी पशु चिकित्सा अधिकारी की तो तैनाती करा लें, उसके बाद ही कुत्तों की नसबंदी के दावे किए जाएं तो बेहतर होगा।

शहर की सड़कें बनी हैं जंग का मौदान

सड़कों पर निकलते हुए लोग डरने लगे हैं। तमाम गली मोहल्ले कुत्तों के जंग का मैदान बन गए हैं। हालात यह हो गयी है कि कुत्तों के काटे के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं और नगर निगम के अफसर इससे पूरी तरह से बे-खबर बने हुए हैं। आवारा कुत्ते अब आउट ऑफ कंट्रोल हो चुके हैं। सड़कों पर घूमने वाले ये आक्रामक कुत्तों के झुंड न केवल पैदल यात्रियों के लिए खतरा बन गए हैं, बल्कि महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों की जिंदगी को दांव पर ला रहे हैं। निगम के तमाम दावों के बावजूद, कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण अभियान कागजों तक सीमित साबित हो रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि पिछले तीन वर्षों में 34,000 से अधिक कुत्तों की नसबंदी का दावा किया गया, लेकिन हकीकत में काटने की घटनाएं जस की तस बनी हुई हैं।

फाइलों तक महफूज है कुत्तों की नसबंदी

नगर निगम ने परतापुर में डॉग रेस्क्यू सेंटर स्थापित कर कुत्तों को पकड़ने, नसबंदी करने और टीकाकरण के बाद वापस छोड़ने का अभियान चलाया था। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2025 में ही 3,146 कुत्तों (2,239 नर और 907 मादा) की नसबंदी और टीकाकरण किया गया। हर दिन औसतन 25 कुत्तों को पकड़ने का लक्ष्य रखा गया, जिन्हें पांच दिनों तक निगरानी में रखा जाता है। लेकिन ये आंकड़े जमीनी हकीकत से मेल नहीं खाते। शहर में करीब 1 लाख से अधिक आवारा कुत्ते घूम रहे हैं, और रोजाना 300 से ज्यादा लोग केवल एंटी-रेबीज वैक्सीन लगवाने के लिए स्वास्थ्य केंद्रों पर पहुंच रहे हैं। जिला अस्पताल के आंकड़े चिंताजनक हैं – पिछले एक महीने में ही सैकड़ों काटने की घटनाएं दर्ज की गईं।

सुप्रीमकोर्ट का आदेश कहां है फिडिंग पाइंंट

आवारा कुत्तों का मामला सुप्रीमकोर्ट तक पहुंच गया था। पशु प्रेमियों ने मोर्चा खोल दिया था। सुप्रीम अदालत को यूटर्न लेना पड़ा था, लेकिन शर्त लगा दी थी कि स्ट्रीट डॉग के लिए चुनिंदा स्थानों पर फिडिंग पाइंट बनाए जाएंगे, जगह-जगह भोजन नहीं डाला जाएगा। वहीं दूसरी ओर निगम का कहना है कि सेंटर में प्राइवेट अस्पताल जैसी सुविधाएं हैं, लेकिन आंकड़े उलट कहानी बयां करते हैं। बीते तीन साल में 34,000 नसबंदी के बावजूद घटनाएं कम नहीं हुईं। विशेषज्ञों का मानना है कि समस्या कचरा प्रबंधन, अवैध ब्रीडिंग और अपर्याप्त फंडिंग से जुड़ी है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रत्येक इलाके में कुत्तों के लिए फीडिंग पॉइंट तय करने का निर्देश दिया है, लेकिन मेरठ में ये अमल में नहीं आया।

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वहीं दूसरी ओर मुख्य चिकित्साधिकारी डा. अशोक कटारिया ने बताया कि यह सही है कि डॉग बाइट की घटनाएं बढ़ी हैं, लेकिन जिला अस्पताल में इसके लिए माकूल इंतजाम किए गए हैं। एंटी रेवीज की कोई कमी नहीं है। किसी मरीज को लौटाया नहीं जा रहा है।

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