तालाबों की चोरी पर चुप हैं अफसर

तालाबों की चोरी पर चुप हैं अफसर
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तालाबों की चोरी पर चुप हैं अफसर, मेरठ के तालाब गायब हो रहे है और अफसर चुप हैं। बजाए ठोस कदम उठाने के केवल तमाशा देखा जा रहा है। अभी कुछ भी ऐसा नजर नहीं आ रहा है जिससे लगे कि जो बचे कुचे तालाब हैं वो बचा लिए जाएंगे।

योगी सरकार तालाबों का सौंदर्यीकरण करने के दावे कर रही हैं, वहीं भूमाफिया और दबंग न सिर्फ तालाबों पर कब्जा किए हुए हैं बल्कि सरकार के दावों की भी पोल खोल रहे हैं. ऐसा ही कुछ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में देखने को मिल रहा है. जहां 80 फीसदी से ज्यादा तालाबों पर ग्रामीणों और दबंगों ने कब्जा किया हुआ है. जिले में 3062 तालाबों में से, जहां 1530 तालाबों पर अस्थाई कब्जा किया गया है. वहीं 1000 से ज्यादा तालाब धरातल से गायब हो गए हैं. इसके बाद मेरठ जिले में कुल 400 तालाब ही ऐसे बचें है, जिनमें पानी भरा हुआ है.

तालाबों पर हो रहे अवैध कब्जे

बता दें कि गांव की जीवन धारा कहे जाने वाले तालाबों का अस्तित्व खत्म होने के कगार पर पहुंच गया है. जहां प्रत्येक गांव में 4-5 तालाब हुआ करते थे, वहां आज इक्का-दुक्का तालाब ही शेष बचे हैं. तालाब किनारे बसे ग्रामीणों और दबंगों ने तालाबों की जमीन को घेरकर कब्जा करना शुरू कर दिया है. तालाबों पर कब्जा होने से पानी निकासी की समस्या तो पैदा हो ही गई है. साथ ही गंदगी से बीमारियां फैलने का खतरा भी बना हुआ है. ईटीवी भारत की टीम ने जब तालाबों की स्थिति का जायजा लिया तो ज्यादातर तालाबों पर अस्थाई कब्जे मिले. कई तालाबों पर कब्रिस्तान बनाए गए हैं, तो कई जगहों पर मकान बने हुए हैं. इतना ही नहीं कई गांवों में सरकारी अतिक्रमण भी किया गया है.

अतिक्रमण से गलियां बनीं तालाब

दबंगों द्वारा तालाबों पर कब्जा होने से गांव की गलियां ही तालाब बन गई हैं. पानी निकासी नहीं हो पाने से घरों से निकलने वाला गंदा पानी गलियों में भरा रहता है. कई गांवों के हालात यह हैं कि यहां की महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे तो दूर युवाओं के लिए निकलना भी दुश्वार हो गया है. बरसात के दिनों में नालियों में बहने वाला पानी लोगों के घरों में घुस जाता है, जिससे ग्रामीण अपने बच्चों के साथ बरसते पानी में छतों पर रात गुजारने को मजबूर हैं.

गंदे पानी से बीमारियों का खतरा

तालाबों पर कब्जा होने से न तो उनकी साफ-सफाई हो पा रही है और न तालाबों को कब्जा मुक्त कराया जा रहा है. इससे गांव की गलियों में निकासी का गंदा पानी भरने से बीमारी फैलने का खतरा बना हुआ है. मेरठ जिले के कई गांव ऐसे हैं, जहां प्रदूषित पानी पीने से ग्रामीणों में कैंसर, गलघोंटू, ब्लड कैन्सर और एलर्जी जैसी गंभीर बीमारियां फैली हुई हैं. दर्जनों लोग अकाल ही मौत के आगोश में जा चुके हैं, जबकि सेकड़ों लोग इन बीमारियों के कारण जिंदगी मौत की जंग लड़ रहे हैं.

तालाबों को लेकर हाईकोर्ट ने दिए आदेश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1951 की सरकारी अभिलेखों में दर्ज सभी तालाबों को अतिक्रमण मुक्त कराने के आदेश दिए हैं. कोर्ट ने मुख्य सचिव को राजस्व परिषद के चेयरमैन के परामर्श से मॉनिटरिंग कमेटी के गठन करने को भी कहा है. प्रदेश के हर जिले में डीएम एवं एडीएम ( वित्त एवं राजस्व ) को तालाबों की सूची तैयार कर तालाबों से अतिक्रमण हटाकर बहाली रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए हैं. कोर्ट ने आदेश आगरा से दायर हुई जनहित याचिका पर न्यायमूर्ति पीकेएस बघेल और पीयूष अग्रवाल की पीठ ने जारी किए हैं.

663 गांवों में 3062 तालाब

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले की बात करें तो यहां 663 ग्राम पंचायतों में 1951 के सरकारी दस्तावेजों में 3062 तालाब बताए जा रहे हैं. जिनमें से 1944 तालाब शेष बचे हुए हैं, जबकि 1000 तालाब भूमाफियाओं एवं कब्जाधारियों की भेंट चढ़ गए हैं. या यूं कहें कि 1000 से ज्यादा तालाब धरातल से गायब हो गए हैं. चौकाने वाली बात तो यह है कि 1944 तालाबों में से 1530 तालाबों पर भी भूमाफियाओं और दबंगों ने अस्थाई कब्जा किया है. जिसके चलते बचे 400 तालाबों में गांवों के पानी की निकासी हो पा रही है. तालाबों पर हो रहे कब्जे गांव और ग्रामीणों के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है.

लगातार गिर रहा भूजल स्तर

नीर फाउंडेशन के संस्थापक एवं जल संरक्षक रमन त्यागी ने बताया कि जिस तरह से तालाबों की संख्या घटती जा रही है, उसके विपरीत पानी निकालने के साधन जैसे- ट्यूबवेल, बोरवेल आदि की संख्या बढ़ती जा रही है. मेरठ जिले में 8000 से ज्यादा ट्यूबवेल और बोरवेल लगाए जा चुके हैं. लेकिन पानी को रिचार्ज करने वाले तालाब और पोखर खत्म होते जा रहे हैं. इससे पानी का इंबैलेंस लगातार बढ़ता जा रहा है. तालाब पानी का रिचार्ज करने का सबसे बड़ा माध्यम रहे हैं, लेकिन जब तालाब ही नहीं होंगे तो पानी रिचार्ज कैसे हो पायेगा. यही वजह है कि अब बारिश का पानी भी कम मिल रहा है. इससे वॉटर लेवल हर साल एक मीटर के हिसाब से नीचे जा रहा है. मेरठ जिले में नलकूप लगाने के लिए जहां 50-60 फीट बोरिंग किया जाता था. अब यहां 300-400 फीट की गहराई नापनी पड़ रही है.

तालाबों को पुनर्जीवित करना जरूरी

रमन त्यागी ने बताया कि जिस तरह से तालाबों पर कब्जा किया जा रहा है और तालाब खत्म होते जा रहे हैं, उससे पानी रिचार्ज करने के स्रोत भी समाप्त हो रहे हैं. तालाबों का खत्म होना जनमानस के लिए ही नहीं बल्कि पर्यावरण के लिए भी बड़ा खतरा है. अगर पूरे देश के जल संकट को समाप्त करना है तो तालाबों को पुनर्जीवित करना बहुत जरूरी है. ऐसा करने से 50-60 फीसदी जल संकट से मुक्ति मिल सकती है. शासन प्रशासन के लिए तालाब कब्जा मुक्त करना करना कठिन है, लेकिन कोशिश की जाए तो ऐसा हो सकता है. तालाबों के पुनर्जीवित किये जाने से ग्रामीण आंचल में रौनक भी बढ़ेगी और जल निकासी भी हो पाएगी.

हाईकोर्ट के आदेश पर हो अमल

नीर संस्था के संस्थापक रमन त्यागी ने हाईकोर्ट के आदेश का स्वागत करते हुए बताया कि न्यायालय का एक आदेश पहले भी आया था. उसमें कहा गया था कि जो भी तालाबों पर कब्जे किये गए हैं, उन्हें अतिक्रमण मुक्त कराया जाए. लेकिन उस दौरान प्रशासन की शिथिलता देखने को मिली थी. हालांकि इक्का-दुक्का जगह उस आदेश पर काम हुआ था. ऐसे में इस आदेश पर शासन-प्रशासन को अमल करना चाहिए और जितने भी तालाबों पर अतिक्रमण हुआ है सबको अतिक्रमण मुक्त कराना चाहिए. अगर प्रशासन ने कोर्ट के आदेश को गंभीरता से नहीं लिया तो तालाबों पर इसी तरह कब्जे बढ़ते जाएंगे.

सर्वे कराने में जुटा प्रशासन

इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद ईटीवी भारत ने प्रशासनिक अधिकारियों से बात की. उन्होंने बताया कि राजस्व परिषद के निर्देश पर जिले में जितने भी तालाब हैं, उन सबका सर्वे कराया जा रहा है. सर्वे के दौरान जिन तालाबों पर अवैध कब्जा पाया जाएगा. उन्हें कब्जा मुक्त कराने के साथ कब्जाधारियों के खिलाफ विधिक कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों में कब्जाधारियों के खिलाफ एसडीएम और तहसीलदार के यहां मुकदमा चलाया जाता है. मुकदमे के बाद कब्जाधारियों को तालाब से बेदखल कर दिया जाता है.

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