आखिर मिल ही गए महाभारत के अश्वथामा

आखिर मिल ही गए महाभारत के अश्वथामा
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आखिर मिल ही गए महाभारत के अश्वथामा, 18 दिन तक चले महाभारत में जो 18 महा योद्वा जीवित बच गए थे उनमें गुरू द्रोणाचार्य को भगवान शिव का वरदान स्वरूप प्राप्त हुए उनके पुत्र  अश्वनामा भी शामिल हैं। पौराणिक कथाओं की मानें तो अश्वथामा को अमरत्व का वरदार प्राप्त है। अक्सर उनको  मध्य प्रदेश के जंगलों में  देखे जाने की बात सामने आती रहती है, लेकिन आज हम बताने जा रहे हैं महाभारत के उस महायोद्वा का सही पता और ठिकाना, लेकिन उससे पहले अश्वथामा के अवतरण की कथा जरूरी है। गुरू द्रोणाचार्य को कोई संतान नहीं थी। संतानोप्त्ति के लिए वह पत्नी कृपि सहित तप के लिए हिमालय की ओर चल दिए। ऋषिकेश के तपाेवन इलाके में उन्हें भगवान शिव का एक स्वभू शिवलिंग व गुफा मिली। वह वहीं पर तप करने लगे। उनके तप से प्रसन्न होकर महादेव ने उन्हें शूरवीर पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। अश्वथामा के रूप में द्रोणाचार्य व कृपि को पुत्र की प्राप्ति हुई। अश्‍वत्‍थामा बड़े पराक्रमी ऋषिकुमार माने जाते थे. उन्‍हें अनेक दिव्‍यास्‍त्रों का ज्ञान था. अश्वत्थामा के मस्तक पर जन्म से एक मणि थी. कहते हैं कि उस मणि के कारण अश्‍वत्‍थामा देव, दानव, दैत्य, अस्‍त्र-शस्त्र, व्याधि, नाग आदि से निर्भय रहते थे. उन्‍होंने महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से युद्ध में भाग लिया था. युद्ध के अंत में कौरव पक्ष से अश्वत्थामा समेत केवल 3 महारथी बचे थे.  अश्वत्थामा को संपूर्ण महाभारत के युद्ध में कोई हरा नहीं सका था। वे आज भी अपराजित और अमर हैं।  महाभारत के युद्ध में भीष्म के शरशैया पर लेटने के बाद युद्ध में कर्ण के कहने पर द्रोण सेनापति बनाए जाते हैं। अश्‍वत्थामा और द्रोण मिलकर युद्ध में कोहराम मचा देते हैं,  पांडवों की हार को देखकर श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से छल का सहारा लेने को कहा।  युद्ध में यह बात फैला दी गई कि ‘अश्वत्थामा मारा गया’, लेकिन युधिष्‍ठिर झूठ बोलने को तैयार नहीं थे। तब अवंतिराज के अश्‍वत्थामा नामक हाथी का भीम द्वारा वध कर दिया गया। इसके बाद युद्ध में यह बात फैला दी गई कि ‘अश्वत्थामा मारा गया’। गुरु द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर से अश्वत्थामा के मारे जाने की सत्यता जानना चाही तो उन्होंने जवाब दिया- ‘अश्वत्थामा मारा गया, परंतु हाथी।’ श्रीकृष्ण ने उसी समय शंखनाद किया जिसके शोर के चलते गुरु द्रोणाचार्य आखिरी शब्द ‘परंतु हाथी’ नहीं सुन पाए और उन्होंने समझा कि मेरा पुत्र मारा गया। यह सुनकर उन्होंने शस्त्र त्याग दिए और युद्ध भूमि में आंखें बंद कर वे शोक में डूब गए। द्रोणाचार्य को निहत्था जानकर द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने तलवार से उनका सिर काट डाला। धोखे से पिता की हत्या पर अश्वथामा क्रोध से भर गए।  उन्होंने  छल से पांडवों के पुत्रों का वध किया था। वह रात्रि में सोते हुए द्रौपदी के सभी पुत्रों की हत्या कर देते हैं। वह ब्रह्मास्त्र को अभिमन्यू की पत्नी उत्तरा के गर्भ में उतार देता है जिसके चलते उसके गर्भ में पल रहा पुत्र मर जाता है।  उसी पाप की सजा वह आज तक भुगत रहे हैं। दर-दर भटक रहे हैं। मध्‍यप्रदेश के एक किले में अश्‍वत्‍थामा को देखने की बात कही जाती है।उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु की हत्या पर   क्रोधित हुए  भगवान कृष्‍ण ने अश्‍वत्‍थामा को यह शाप दिया था। अश्वत्थामा के सिर पर लगा चिंतामणि रत्न छीन लिया और शाप दिया कि तुमने जन्म तो देखा है लेकिन मृत्यु को नहीं देख पाओगे। जब तक सृष्टि रहेगी तब तक तुम जीवित रहोगे और कष्‍ट भोगोगे।अंत में श्रीकृष्ण बोलते हैं, ‘हे अर्जुन! धर्मात्मा, सोए हुए, असावधान, मतवाले, पागल, अज्ञानी, रथहीन, स्त्री तथा बालक को मारना धर्म के अनुसार वर्जित है। इसने (अश्‍वत्थामा ने) धर्म के विरुद्ध आचरण किया है, सोए हुए निरपराध बालकों की हत्या की है।  इसका वध करके और इसका कटा हुआ सिर द्रौपदी के सामने रखकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो।’ श्रीकृष्ण के इन वचनों को सुनने के बाद भी अर्जुन को अपने गुरुपुत्र पर दया आ गई और उन्होंने अश्वत्थामा को जीवित ही शिविर में ले जाकर द्रौपदी के समक्ष खड़ा कर दिया। पशु की तरह बंधे हुए गुरुपुत्र को देखकर द्रौपदी ने कहा, ‘हे आर्यपुत्र! ये गुरुपुत्र तथा ब्राह्मण हैं। ब्राह्मण सदा पूजनीय होता है और उसकी हत्या करना पाप है। आपने इनके पिता से इन अपूर्व शस्त्रास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया है। पुत्र के रूप में आचार्य द्रोण ही आपके सम्मुख बंदी रूप में खड़े हैं। इनका वध करने से इनकी माता कृपी मेरी तरह ही कातर होकर पुत्रशोक में विलाप करेंगी। पुत्र से विशेष मोह होने के कारण ही वे द्रोणाचार्य के साथ सती नहीं हुईं। आप इन्हें मुक्त कर दीजिए।’आधुनिक शोध के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म 3112 ईसा पूर्व हुआ था, लेकिन आर्यभट्ट के बताए समय पर भी ध्यान देने की जरूरत है। वे कहते हैं कि 3137 ईपू में महाभारत का युद्ध हुआ था। दूसरी ओर ब्रिटेन में कार्यरत न्यूक्लियर मेडिसिन के फिजिशियन डॉ. मनीष पंडित ने महाभारत में वर्णित 150 खगोलीय घटनाओं के संदर्भ में कहा कि महाभारत का युद्ध 22 नवंबर 3067 ईसा पूर्व को हुआ था। उस वक्त भगवान कृष्ण 55-56 वर्ष के थे। उन्होंने अपनी खोज के लिए टेनेसी के मेम्फिन यूनिवर्सिटी में फिजिक्स के प्रोफेसर डॉ. नरहरि आचार्य द्वारा 2004-05 में किए गए शोध का हवाला भी दिया था। माथुर चतुर्वेदी ब्राह्मणों का इतिहास’ के लेखक बालमुकुंद चतुर्वेदी इस बारे में सभी से भिन्न मत रखते हैं। वे परंपरा से प्राप्त इतिहास एवं पीढ़ियों की उम्र की गणना करने के बाद बताते हैं कि श्रीकृष्ण का जन्म 3114 विक्रम संवत पूर्व हुआ था। इस मान से अश्‍वत्थामा 2,000 वर्ष पूर्व ही शाप से मुक्त हो चुके हैं और अब उनके जिंदा होने की संभावना नहीं के बराबर है। ऐसे में उनके जिंदा होने के कयास लगाते रहना उचित नहीं है।यह अलग बात है कि शाप से मुक्त होने के बाद भी अश्वत्थामा अपनी इच्छा से जिंदा हो, क्योंकि इतने हजार वर्षों तक जिंदा रहने वाला सामान्य मनुष्य भी खुद की शक्ति से ही जिंदा रहना सीख जाता होगा और वे तो अश्वत्थामा थे।


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