गांधारी के श्राप से ग्रसित हैं अफगान

गांधारी के श्राप से ग्रसित हैं अफगान
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गांधारी के श्राप से ग्रसित हैं अफगान, महाभारत कालीन गांधार जो अब कंधार कहलाता है   उसके साथ पूरे अफगानिस्तान की बर्बादी का कारण  हस्तिनापुर नरेश की पत्नी व कंधार की राजकुमारी गांधारी का श्राप है। दशकों से वहां के लोग आज तक जो भोग रहे हैं उसका कारण गांधारी का श्राप माना जाता है गांधार शब्‍द का उल्‍लेख ऋग्‍वेद के अलावा उत्‍तर रामायण और महाभारत में मिलता है। गांधार शब्‍द का अर्थ है  सुगंधित जमीन। दरअसल तब यहां केसर की खेती की जाती है। पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार, भगवान शिव का एक नाम गांधार है। शिव सहस्‍त्रनाम में इस बात का उल्‍लेख किया गया है। वर्तमान अफगानिस्तान कभी शिव भक्तों का ठिकाना हुआ करता था।  प्राचीन काल में उत्तर-पश्चिमी पंजाब का कुछ हिस्‍सा भी गांधार में मिला हुआ था।कांधार का नाम पहले गांधार था। कालांतर में यह गांधार से कैसे कांधार बन गया। इस बारे में काफी कुछ वेद व्‍यासजी के महाकाव्‍य महाभारत में बताया गया है। करीब 5500 साल पहले राजा सुबल गांधार पर राज करते थे। उनकी पुत्री का नाम था गांधारी। गांधारी का विवाह हस्तिनापुर के राजकुमार धृतराष्‍ट्र के साथ हुआ था। गांधारी के एक शकुनि नामक एक भाई था। गांधारी का भाई शकुनि इस विवाह से प्रसन्न नहीं था, क्योंकि नेत्रहीन धृतराष्ट्र के साथ गांधारी के विवाह का प्रस्ताव लेकर जब गंगापुत्र भीष्म राता सुबल के पास पहुँचे, तब शकुनि ने इसे अपने पिता तथा स्वयं का बहुत बड़ा अपमान माना। शकुनि इस बात से बड़ा क्रोधित था कि उसकी बहन के लिए भीष्म एक नेत्रहीन व्यक्ति का प्रस्ताव लेकर आये हैं। गंगा पुत्र भीष्म महाबल शाली थी। उनकी बात टालने का अर्थ मौत का निमंत्रण था। कहा तो यह भी जाता है कि भीष्म अपहरण कर गांधारी को हस्तिनापुर ले आए थे। कुंडली दोष के चलते गांधारी का विवाह पहले एक बकरे से किया गया, जिसकी बलि दी गयी और बाद में धृतराष्ट्र से विवाह कराया गया। शकुनि ने उसी दिन यह प्रण कर लिया कि वह हस्तिनापुर में कभी सुख-शांति नहीं रहने देगा। महाभारत युद्ध के लिए गांधारी का भाई शकुनि भी एक बड़ा कारण था।   पिता की मृत्‍यु के बाद गांधार का सारा राजपाट शकुनि के हाथ में आ गया। गांधारी के लिए भीष्‍म ने पहले ही  राजा सुबल के पूरे परिवार हो खत्म दिया था तो उसका बदला लेने के लिए शकुनि ने कौरव और पांडवों को आपस में लड़वाकर पूरे हस्तिनापुर का नाश करने की साजिश रची थी। अपने 100 पुत्रों को खोने के बाद गांधारी ने क्रोध की अग्नि में जलते हुए शकुनि को यह शाप दिया था, ‘मेरे 100 पुत्रों को मरवाने वाले गांधार नरेश तुम्‍हारे राज्‍य में कभी शांति नहीं रहेगी।’ अब जब तालिबान ने फिर से अफगानिस्‍तान को अपने कब्‍जे में ले लिया है तो गांधारी के उस शाप को लेकर एक बार फिर चर्चा आरंभ हो गई है। इससे पहले कभी रूस तो कभी अमेरिका का अफगानिस्तान पर कब्जा रहा है। दशकों तक अफगानिस्तान बारूद की आग में  दहकता रहा। ऐसा माना जा रहा है कि गांधारी के शाप के दंश से गांधार आज तक उबर नहीं पाया है। यह  भी कहा जाता है कि महाभारत युद्ध में पांडवों के हार के बाद बड़ी संख्या में कौरव पक्ष के महारथी व दूसरे वीर और अन्य लोग आज के अफगानिस्तान और  तब के  गांधार में जा बसे थे। वर्तमान अफगानिस्तान जो पहले गांधार हुआ करता था तब वहां सनातन धर्म काे मानने वाले अधिक थे। लेकिन बाद में जब मध्य एशिया में बौद्ध धर्म तेजी से फैलने लगा तो गांधार भी अछूता नहीं रहा। बामियान में जो बौद्ध प्रतिमा मिलती हैं जिन्हें तालिबानों ने तोप से गोले बरसा कर उड़ा दिया गांधार में बौद्ध धर्म की मौजूदगी का पुख्ता साबूत है। बौद्ध धर्म के इन सबूतों को नष्ट करने का काम आतातायी तालिबानियों ने किया, यह पूरी दुनिया जानती है।

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