भीम-मीम बिन सब सून, नगर निगम के चुनाव को लेकर खासतौर से महापौर की कुर्सी पर काविज होने के लिए तमाम दलों ने लंगोट कस ली है। आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी रालोद गठबंधन ने प्रत्याशी का एलान कर अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं। अब इंतजार है भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशी के नाम के एलान का। चुनाव परिणाम को लेकर किसी नतीजे पर पहुंचना अभी जल्दबाजी होगी, लेकिन इतना तय है कि जिसको भी भीम और मीम का साथ मिल गया मेरठ नगर निगम के महापौर की कुर्सी तक पहुंचाने का उसका रास्ता जरूर आसान हो जाएगा। लेकिन यह भी कटु सत्य है कि भीम और मीम का एक मुश्त साथ इतना आसान भी नहीं है। भीम और मीम के सहारे महापौर बनने का सपना देखने वाले के लिए सबसे जरूरी भीम और मीम को एक जुट रखना है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भीम मसलन डा. अंबेडकर के अनुयाइय केवल दलित हैं, यह सोचना भी भूल होगी। वर्तमान में डा. अंबेडकर के अनुयाइयों का दायर काफी बढ़ा है। इसलिए केवल भीम का पर्यावाची केवल दलित हैं यह थ्योरी अब कुछ पुरानी हो गयी है। अब बात कर ली जाए वोट के आंकड़ों की। मेरठ नगर निगम क्षेत्र में तीन विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें शहर, दक्षिण और कैंट शामिल हैं। इन तीनों को मिलकर करीब 12 लाख से ज्यादा मतदाताओं का अनुमान है। सबसे ज्यादा मुसलमान है या फिर ओबीसी इसको लेकर राय अलग-अलग हो सकती है, लेकिन निर्वाचन आयोग के आंकड़ों की मानें तो करीब पौने चार लाख लाख मुसलमान मतदाता हैं। इनमें करीब डेढ. लाख से ज्यादा दक्षिण विधानसभा सीट पर व लगभग डेढ लाख शहर सीट पर तथा करीब चालिस हजार कैंट विधानसभा सीट पर और इससे कुछ कम ओबीसी मतदाता हैं। इस गणित में तीसरा नंबर आता है वैश्य मतदाताओं का जिनकी अनुमानित संख्या करीब पौने दो से दो लाख बतायी जा रही है। जाट मतदाताओं की संख्या करीब साठ हजार और गुर्जर मुश्किल से बीस हजार मतदाता हैं। पंजाबी व सिख महज लगभग 40 हजार, ब्राह्मण करीब सवा से डेढ़ लाख अनुमानित माने जा रहे हैं। गुर्जर मात्र 15 से 20 हजार होने के बावजूद सपा-रालोद गठबंधन ने मेरठ के महापौर के चुनाव में गुर्जर प्रत्याशी सीमा प्रधान सरधना विधायक अतुल प्रधान की पत्नी पर दांव खेला है। हैरानी इस बात कि इस सीट के लिए शहर विधायक रफीक अंसारी के अपनी पत्नी के लिए टिकट की दावेदारी की चर्चा थीं, लेकिन आलाकमान ने सीमा प्रधान पर भरोसा करना ज्यादा मुफीस समझा। इसके पीछे सपा नेताओं थ्योरी मुसलमान व ओबीसी तथा गुर्जर तथा कुछ अन्य मसलन व्यक्तिगत संबंधों वालों के बूते। माना जा रहा है कि सीमा प्रधान के इतर कोई दूसरा प्रत्यशी गैर मुस्लिमों तक उतनी पहुंच नहीं बना पता। फिर जहां तक दलित व ओबीसी चेहरो की बात है तो सपा के ड्राइंग रूप में ऐसे बहुत से शोपीस हैं जिनका दलित व दूसरे ओबीसी पर अच्छा प्रभाव माना जाता है। लेकिन जहां तक तस्वीर साफ होने के बात है तो यह तभी संभव है जब भाजपा व कांग्रेस का प्रत्याशी के नाम का एलान हो जाता है। लेकिन अभी तक जो हालात नजर आ रहे हैं उसमें सपा-रालोद गठबंधन की स्थिति मतदाताओं के अंकगणित से कुछ बेहतर मानी जा रही है। लेकिन यह तभी संभव है जब भीम व मीम को संभाल कर रखा जाए।