


देवी सावित्री से हारे यमराज बेचारे
चंड़ीगढ। इस दिन महिलाएं व्रत रखकर वट वृक्ष की पूजा करती हैं। वट सावित्री की पूजा से सदा सुहागन रहने का आशीर्वाद मिलता है। सबसे पहले वट सावित्री का व्रत राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री ने अपने पति सत्यवान के लिए किया था। तभी से वट सावित्री व्रत महिलाएं अपने पति के मंगल कामना के लिए रखती हैं। देश ही नहीं पूरी दुनिया में हिन्दू मान्यताओं को मानने वाली महिलाएं बट सावित्री का व्रत रख पति की लंबी आयु का वरदान मांगती है। मृत्यु लोग यानि पृत्वी पर सत्युग से पूर्व वट सावित्री का ब्रत राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री ने रखा ताकि पति को लंबी आयु मिल सके। इस व्रत के प्रताप से सावित्री ने मृत्यु के पाश से पति की जीवन छीन लिया था। पहले यह व्रत केवल भारत में ही रखा जाता रहा है, लेकिन जब से हिन्दू कन्या विवाह कर विदेशों में गई और उन्होंने यह व्रत रखा। विदेशों में महिलाओं ने जब इन भारतीय महिलाओं से इस व्रत का महत्व जाना तो अंग्रेज व अन्य महिलाएं यहां तक की मुस्लिम महिलाएं भी वट सावित्री का व्रत रखने लगीं। यह बिलकुल सही है।
सावित्री को सौ पुत्रों की वारदान देने वाले मृत्यु के देवता को वापस करने पड़े थे सावित्री के पति सत्यवान के प्राण
ऐसी की जाती है पूजा अर्चना
ट सावित्री व्रत हिन्दू धर्म में महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती हैं। यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को किया जाता है। इस दिन महिलाएं वट (बरगद) के पेड़ की पूजा करती हैं। इस वर्ष वट सावित्री व्रत 26 मई 2025 को रखा जा रहा है। इस व्रत से जुड़ी मुख्य कथा सावित्री और सत्यवान की है, जो प्रेम, निष्ठा और दृढ़ संकल्प का प्रतीक हैबहुत समय पहले की बात है। भद्रदेश नामक राज्य में अश्वपत नाम के राजा और उनकी रानी मालवती रहते थे। उनके घर एक सुंदर और तेजस्वी कन्या का जन्म हुआ, जिसका नाम उन्होंने सावित्री रखा। वह बहुत बुद्धिमान, धर्मपरायण और सुंदर थी। जब सावित्री विवाह योग्य हुई, तो उसके पिता ने उसे स्वयं वर चुनने की अनुमति दी। सावित्री ने सत्यवान नामक एक राजकुमार को अपना वर चुना। सत्यवान एक वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र थे, जो किसी कारणवश अपना राज्य खो चुके थे और वन में रहते थे। लेकिन एक बात जिसने सबको चिंतित कर दिया वह यह थी कि एक भविष्यवाणी के अनुसार सत्यवान की मृत्यु एक साल के भीतर हो जाएगी। लेकिन सावित्री अपने निर्णय पर अडिग रही और सत्यवान से विवाह कर लिया।
विवाह के बाद सावित्री अपने पति और सास-ससुर के साथ वन में रहने लगी। वह बहुत सेवा भाव से सबका ध्यान रखती थी। जिस दिन सत्यवान की मृत्यु होनी थी, उस दिन सावित्री ने व्रत रखा और वट वृक्ष के नीचे बैठकर पूजा की। जब सत्यवान लकड़ियां काटने जंगल गया, तो सावित्री भी उसके साथ गई। थोड़ी देर बाद सत्यवान के सिर में दर्द हुआ और वह सावित्री की गोद में लेट गया। तभी यमराज, मृत्यु के देवता, उसकी आत्मा लेने आए।सावित्री ने यमराज का पीछा किया और उनसे सत्यवान की आत्मा वापस देने की प्रार्थना की। यमराज ने कहा कि यह नियम के विरुद्ध है, लेकिन सावित्री की बुद्धिमानी, प्रेम और दृढ़ संकल्प देखकर वे प्रसन्न हो गए। उन्होंने सावित्री को तीन वर मांगने का अवसर दिया। सावित्री ने पहले अपने ससुर का राज्य वापस मांगा, फिर अपने सास-ससुर की आंखों की रोशनी, और अंत में अपने लिए सौ पुत्र मांगे। यमराज ने बिना सोचे समझे वर दे दिए, लेकिन जब सावित्री ने सौ पुत्रों की बात कही तो यमराज को समझ आया कि बिना सत्यवान के यह संभव नहीं है। उन्होंने सावित्री की दृढ़ता को सराहा और सत्यवान को जीवनदान दे दिया। इस तरह सावित्री के प्रेम और तप से सत्यवान की मृत्यु टल गई। तभी से महिलाएं सावित्री की तरह अपने पति की लंबी उम्र के लिए वट सावित्री व्रत करती हैं और वट वृक्ष की पूजा करती हैं, जो दीर्घायु और अटल प्रेम का प्रतीक माना जाता है।
बेहद खास है सुहागन महिलाओं के लिए
वट सावित्री व्रत एक खास व्रत है जो सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी जीवन के लिए रखती हैं। यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को किया जाता है। इस दिन महिलाएं वट (बड़) वृक्ष की पूजा करती हैं और सावित्री की तरह अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। सावित्री ने अपने तप, प्रेम और दृढ़ संकल्प से अपने पति को यमराज से वापस पाया था। इसी श्रद्धा और आस्था से महिलाएं यह व्रत करती हैं। यह व्रत पति-पत्नी के प्रेम और निष्ठा का प्रतीक माना जाता है।
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