सफाई व्यवस्था बेपटरी, तमाम इलाको में सड़कों पर लगे हैं कूड़े कचरे के ढ़ेर, तमाम कोशिशों के बाद भी बेपटरी सफाई व्यवस्था
मेरठ। नगर निगम और महानगर को एक फुलटाइमर नगर स्वास्थ्य अधिकारी की दरकार है। एनएसए (नगर स्वास्थ्य अधिकारी) डा. हरपाल सिंह के सस्पेंशन के बाद मवाना का कार्यभार देख रहे अमर सिंह अवाना का कार्यवाहक बनाकर दायित्व सौंपा गया था, लेकिन फुलटाइमर नगर स्वास्थ्य अधिकारी ना होने की वजह से शहर की सफाई व्यवस्था पूरी तरह से बेपटरी हो गई हैं। जगह-जगह लगे कूडे़े कचरे के ढे़र बता रहे हैं कि महानगर की सफाई व्यवस्था पुरसाहाल नहीं। जो हालात नजर आ रहे हैं उसके चलते तो यही लगता है कि सफाई व्यवस्था का उसके हाल पर छोड़ दिया गया है।
शहरी की घनी आबादी का बुरा हाल
सफाई व्यवस्था की यदि बात करें तो शहर की घनी आबादी वाले इलाकों को सबसे बुरा हाल है। हापुड़ रोड, लिसाड़ी रोड, नौचंदी, कोतवाली, देहलीगेट, ब्रह्मपुरी सरीखे तमाम ऐसे इलाके हैं जहां सफाई व्यवस्था की पोल सड़कों लगे कूडे कचरे के ढेर खोल रहे हैं। हापुड़ रोड और उससे सटे इलाकों को देखकर लगता है कि अरसे से यहां सफाई ही नहीं हुई है। आवारा पशु कूडे कचरे को पूरी रोड पर फैला देते हैं। कुछ इलाके तो ऐसे हैं जहां नए ठलावघर बना दिए गए हैं। आसपास की आबादी वहां अपने घरों का कूडा कचरा डंप कर रही है।
बड़े फेरबदल की जरूरत
दरअसल महानगर की लचर सफाई व्यवस्था के लिए नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग में बड़े फेरबदल की दरकार है और यह तभी संभव है जब कोई फुल टाइमर नगर स्वास्थ्य अधिकारी को जिम्मेदारी दी जाए। कार्यवाहक के भरोसे से यह काम इतना आसान नहीं लगता। दरअसल हो यह रहा है कि सेटिंग गेटिंग के चलते कुछ सफाई कर्मचारियों ने सुपरवाइजर का ओहदा पा लिया है। ऐसे सुपरवाइजरों की एक लंबी फेहरिस्जोत है जो सेटिंग से सुपरवाइजर बने हैं वो भी शहर के सफाई व्यवस्था को दुरूस्त करने के बजाए स्टाफ से सेटिंग गेटिंग में लगे हैं।
शासन से भर्ती का चेहरा तक नहीं देखा
सूत्रों की मानें तो एक वार्ड में जितने सफाई कर्मचारी लगे हुए हैं वो सभी काम पर नहीं आते। यूं कहने को लगभग 32 सौ सफाई कर्मचारियों के कंधों पर महानगर की सफाई व्यवस्था का जिम्मा हैं, ये संविदा से भर्ती हैं जहां तक नियमित सफाई कर्मचारियों की बात है तो उनके दर्शन तो शायद ही कभी होते हों। तमाम ऐसे पार्षद हैं जो बताते हैं कि उन्होंने आज तक नियमित यानि शासन से नियुक्त सफाई कर्मचारी काआज तक चेहरा तक नहीं देखा है। जो चेहरा तक दिखाने नहीं आते उनसे फिर सफाई कार्य की उम्मीद भला कैसे की जा सकती है। जहां तक सफाई सुपरवाइजर की बात है तो जो भी कर्मचारी मुंह लगा होता है उसको सुपरवाइजर बना कर रौब गालिब करने की छूट दे दी जाती है, लेकिन इसमें शहर की सफाई व्यवस्था बुरी तरह पिछड़ रही है।