दिल्ली वालो को संजय वन में लगता है डर

kabir Sharma
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नई दिल्ली। दिल्ली से महज चालिस किलोमीटर की दूरी पर मसूरी-हरिद्वार-देहरादून मार्ग स्थित मेरठ के दिल्ली रोड स्थित जिस संजय वन की चर्चा मेरठ ही नहीं गुडगांव से देहरादून तक हुआ करती थी। लॉग ड्राइव पर निकलने वालों के लिए जो संजय वन कभी डेस्टिनेशन हुआ कर करता था। उस संजय वन से अब इवनिंग व मार्निंग वॉक के लिए आने वालों ने भी दूरी बना ली है।

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संजय वन पूरी तरह से बर्बाद है और इसके लिए कोई और नहीं बल्कि वन विभाग के अफसर जिम्मेदार हैं। संजय वन की हालात देखकर लगता है कि वन विभाग के किसी अफसर ने अरसे से यहां आकर झांका तक नहीं है। संजय वन की दुर्दशा व उसकी हालत देखकर तरस और गुस्सा दोनों आते हैं तरस इसलिए क्योंकि मेरठ के इकलौता एक ऐसा स्थान था जहां जाकर दौड़ भाग भरी जिंदगी से निजात पाने के लिए बड़ी संख्या में जाने वाले तमाम लोग खुद को प्रकृति के करीब महसूस करते थे। गुस्सा उन पर जिनकी जिम्मेदारी है कि इसका ठीक से रखरखाव किया जाए। दिल्ली और उत्तखंड के बीच यह इकलौता ऐसा डेस्टिेनेशन था जहां रूकने में आनंद आता था। सकून मिलता था, लेकिन अफसरों की लापरवाही और उचित देखभाग ना किया जाए की वजह से शहर की एक अच्छी जगह पूरी तरह से बर्बाद कर दी गयी है।


संजय वन के भीतर के मंजर की यदि बात करें तो वो बेहद डरावना है। आदम कद झाड़ियां उगी हुई हैं। इन झाड़ियों में जहरीले जीवों नजर आते हैं। जब यह संवाददाता वहां पहुंचा तो करीब पांच फुट का एक जहरीला किंग कोबरा प्रजाति का सांप सामने से सर से गुूजर गया। भरी दोपहरी में झाड़ियों के बीच सर्रर्रर्र.. से जहरीले सांप का महज एक फुट से भी दूरी पर आगे से गुजर जाना मानों सांसें ही थम गई हों। यहां से थोड़ा आगे जाने की हिम्मत की तो जहरीली बिच्छुओं का झुंड नजर आया। सेही जैसा जहरीरा जीव भी इन झाड़ियों में इधर से उधर दौड़ता देखा गया। जितने भी झूले हुआ करते थे वो सभी टूटे पडेÞ थे। जिस वक्त छायाकार व संवाददाता संजय वन में पहुंचे तो वहां कुछ छोटे बच्चे पेड़ों की टहनियों पर झूल रहे थे। जब उनसे पूछा कि जब झूले यहां नहीं हैं तो क्यों आते हो तो उन्होंने कहा कि पेड़ों की टहनियों पर झूल लेते हैं। बच्चों ने ही बताया कि अब यहां कोई नहीं आता। पहले काफी लोग आया करते थे। संजय वन को किस प्रकार बर्बाद किया है इसका अंदाजा भीतर जो बडेÞ-बडेÞ पिंजरे रखे हुए थे उनकी हालत को देखकर लगाया जा सकता है। इन पिंजरों में कभी कीमती परिंदें हुआ करते थे। हंसों के जोड़े थे। इनके परिंदे कहां चले गए किसी को नहीं पता। इतना जरूर बताया गया कि यहां जो कभी हिरन हुआ करते थे वो दिल्ली के चिड़ियाघर काफी पहले भेज दिए गए थे। संजय वन के भीतर की जगह को रैपिड प्रोजेक्ट पर काम करने वाले ठेकेदार पत्थरों की घिसाई में यूज कर रहे हैं। संजय वन जहां पूरी तरह से बर्बाद है वहीं दूसरी ओर वन विभाग का जो आफिस संजय वन के भीतर बना हुआ है वो करीने की तरह चमक रहा था। उसको देखकर लगता था कि यहां नियमित साफ सफाई होती है, इसके इतर संजय वन भले ही पूरी तरह से बर्बाद कर दिया गया है।

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