हंगामा है क्या बरपा सच यदि सामने आए तो

हंगामा है क्या बरपा सच यदि सामने आए तो
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हंगामा है क्या बरपा सच यदि सामने आए तो, मुंबई: देश दुनिया में खासी सुर्खियां बटोरने वाले इशरत जहां एनकाउंटर को लेकर लिखी गई कोई पुस्तक से यदि सच सामने आता है तो इसमें किसी को क्या दिक् कत हो सकी है। वैसे भी प्रकृति का नियम है कि सच को ज्यादा देर तक छिपाया नहीं जा सकता। फिर इस किताब को यदि सामने लाया जाता है तो उस पर इतना हंगामा क्यों बरपा किया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर कौन वाहिद शेख जिनकी आज हर महफिल में खासी चर्चा है। दरअसल   वाहिद शेख को 2006 में 11 जुलाई, 2006 के मुंबई सीरियल ट्रेन विस्फोट मामले के एक आरोपी के रूप में गिरफ्तार किया गया था. उन्हें लगभग नौ साल तक लंबी कैद का सामना करना पड़ा, जिसके बाद विशेष मकोका अदालत ने उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया. जेल में रहते हुए शेख ने अपना संस्मरण लिखना शुरू किया, जो उर्दू में प्रकाशित हुआ और बाद में कई भाषाओं में उसका अनुवाद किया गया. शेख ने मामले में फंसे और दोषी ठहराए गए अन्य लोगों की पैरवी करना जारी रखा है. शेख का कहना है कि उनकी तरह मामले में दोषी ठहराए गए अन्य सभी निर्दोष हैं और मुंबई पुलिस ने उन्हें बलि का बकरा बनाया है.  सार्वजनिक डोमेन में मौजूद जानकारी के अनुसार, इशरत जहां एनकाउंटर पर शेख की किताब इस केस की सीबीआई जांच और इशरत की मां और परिवार के अन्य सदस्यों के साक्षात्कार पर आधारित है.  मुंब्रा की रहने वाली इशरत को जून 2004 में गुजरात पुलिस ने तीन लोगों के साथ एक ‘मुठभेड़’ में मार गिराया था. इस बारे में हुई मजिस्ट्रियल जांच, एसआईटी जांच और सीबीआई जांच, सभी ने निष्कर्ष दिया था कि यह एक फर्जी एनकाउंटर था और पुलिस का दावा कि ‘आत्मरक्षा’ में इशरत पर गोली चलाई गई थी, झूठा था.  2013 में फर्जी मुठभेड़ के लगभग एक दशक बाद, हत्याओं, अपहरण, आपराधिक साजिश आदि के लिए गुजरात पुलिस के सात अधिकारियों (फरवरी 2014 में एक पूरक आरोप पत्र में भी) और चार इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई थी   इस साल जनवरी से मानवाधिकार कार्यकर्ता और पूर्व कैदी वाहिद शेख अपनी हाल ही में प्रकाशित पुस्तक इशरत जहां एनकाउंटर को के बारे में चर्चा की कोशिश कर रहे हैं. उनका कहना है कि यह किताब 19 वर्षीय कॉलेज छात्रा की कथित फर्जी मुठभेड़ हत्या के पीछे के सच को सामने लाती है. पुलिस ने  यह कहते हुए विमोचन रोका है कि पुस्तक ‘सरकार विरोधी है, इसलिए वे किताब को लेकर किसी सार्वजनिक कार्यक्रम या चर्चा की अनुमति नहीं दे सकते.  26 अगस्त को मुंबई के बाहरी इलाके भिवंडी में आयोजित एक कार्यक्रम में  पुलिस ने अंतिम समय में अनुमति रद्द कर दी. आयोजक  नविद अहमद मोमिन ने कहना था कि उन्होंने जरूरी अनुमति के लिए पहली बार 12 अगस्त को पुलिस से संपर्क किया था. मोमिन ने दावा किया, ‘मैंने एक पत्र, वक्ताओं के नाम और किताब की एक प्रति सौंपी थी. लेकिन पूरे एक हफ्ते तक पुलिस मुझसे थाने आते रहने के लिए कहती रही. उन्होंने चिट्ठी स्वीकार करने से भी इनकार कर दिया.’ उल्लेखनीय है कि इसको लेकर पूर्व में भी कोशिश की गयी थीं.

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