इनके मन की बात कौन सुनेगा, इन दिनों मन की बात का खासा चलन है. मन की बात सुनने और सुनाने की रिवायत चल रही है, लेकिन उनका क्या जो सालों से बगैर उफ किए सबके मन की बात सुनते रहे और जो कहा उसको करते. मेरठ नगर निगम के चुनाव में उतरे भगवा खेमे में भले ही ऊपर से दिखाने भर के लिए आल इज वैल! दिखाने की कोशिक की जा रही हो, लेकिन जमीनी हकीकत तो यह है कि कुछ भी आल इज वैल नहीं है. सबके मन की बात सुनने वाले कार्यकर्ता पूछ रहे हैं कि उनके मन की बात कौन सुनेगा. टिकट बांटने के नाम पर जो कुछ हुआ, उसके बाद यही कहा जा रहा है हमसे क्या भूल हुई. यह टीस किसी एक कार्यकर्ता की नहीं बल्कि नगर निगम के चुनाव में लगे कार्यकर्ताओं के एक बड़े हिस्से में ऐसी टीस नजर आती है. हालात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ना कुछ कहते बनता है औ ना सहते बनता है. कंकरखेड़ा के वार्ड 21 में संघ के पुरानी कार्यकर्ता व भाजपा छावनी मंडल का एक बड़ा नाम रमा मित्तल को टिकट का मजबूत दावेदार माना जा रहा था, लेकिन उन्हें ड्राप कर दिया गया. इसको महिला कार्यकर्ताओं में नाराजगी के तौर पर देखा जा रहा है. इसी तर्ज पर नगर निगम के वार्ड 9 में जो कार्यकर्ता मजबूत दावेदार थी, उसको न देकर किसी अन्य को मौका थमा दिया गया, भाजपा की वह महिला कार्यकर्ता अब हाथ में झाड़ु उठाए वार्ड में भगवा खेमे की सफाई पर उतारू हैआप के टिकट पर ताल ठोक रही है. इसी तर्ज पर व्यापार संघ नटराज के मंत्री भी टिकट की आस लगाए बैठे थे. विगत दिनों मेरठ आए सीएम योगी के कार्यक्रम में भी शक्ति प्रदर्शन किया था, लेकिन इसके बाद भी अमित बंसल को कंसीडर नहीं किया गया. ऐसे तमाम कार्यकर्ता हैं जो दशकों से संगठन को सींखते रहे हैं और वर्तमान में भी साथ खड़े हैं, लेकिन एक सवाल पूछ रहे हैं क्या कभी उनके मन की बात भी सुनी जाएगी. या केवल उनके हिस्से में केवल मन की बात सुनना का काम आएगा. महापौर के चुनाव की जब बात आयी तो ऐसे दावेदारों की एक लंबी फेरिस्त है जो डिजर्व करते हैं और अरसे से मेहनत भी क रहे थे.