
भगवान विष्णु के चार माह की योगनिद्रा से उठते हैं, ब्रत पूजा से अगले दिन शालिग्राम से तुलसी विवाह कराएं, विवाह शादियों का मुहूर्त
नई दिल्ली/ वृंदावन। देवउठान एकादशी (जिसे प्रबोधिनी या देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है) हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। यह दिन भगवान विष्णु के चार माह की योगनिद्रा (चातुर्मास) से जागने का प्रतीक है। इस दिन से शुभ कार्यों जैसे विवाह, गृह प्रवेश आदि का आरंभ होता है। देव उठान एकादशी को लेकर newstracker24.in ने वृंदावन के पंड़ितों व ज्योतिषियों से चर्चा की। उन्होने इसका महत्व बताया। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देव उठनी एकादशी का व्रत किया जाता है, जिसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं। इस बार यह शुभ तिथि 1 नवंबर दिन शनिवार को है। यह वह पवित्र तिथि है जब चार महीने के शयन (चातुर्मास) के बाद भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं।
बेहद मंगलकारी
वृंदावन और मथुरा के ज्योतिषियों के अनुसार अब बेहद मंगलकारी समय आ चुका है। इसमें सभी का कलयाण होता है। जो लोग कष्ट से होकर गुजर रहे थे श्रीहरि विष्णु श्रीबांके बिहारी व श्रीराधा जी उन सभी का कल्याण करेंगी। सभी शुभ कार्य इस मुहूर्त में यदि करेंगे तो शुभ फल मिलता तय है। लेकिन तामसी प्रवृतियों से बचकर रहना चाहिए।
महत्व
- धार्मिक मान्यता: आषाढ़ शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं। देवउठान एकादशी पर वे जागृत होकर सृष्टि का संचालन पुनः प्रारंभ करते हैं। इस व्रत से पापों का नाश होता है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
- तुलसी विवाह: अगले दिन (द्वादशी) तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है, जो भगवान विष्णु और माता तुलसी के विवाह का प्रतीक है।
- शुभ फल: व्रत और पूजा से मनोकामनाएं पूरी होती हैं, तथा चातुर्मास के बाद मांगलिक कार्यों का द्वार खुल जाता है।
तिथि एवं मुहूर्त (2025)
हिंदू पंचांग के अनुसार, एकादशी तिथि 1 नवंबर 2025 को सुबह 9:11 बजे प्रारंभ होकर 2 नवंबर को सुबह 7:31 बजे समाप्त होगी। इस वर्ष स्मार्त परंपरा के अनुसार व्रत 1 नवंबर (शनिवार) को रखा जाएगा, जबकि वैष्णव और इस्कॉन अनुयायी 2 नवंबर (रविवार) को मनाएंगे।
| विवरण | समय (IST) | 
|---|---|
| एकादशी तिथि प्रारंभ | 1 नवंबर, सुबह 9:11 बजे | 
| एकादशी तिथि समाप्ति | 2 नवंबर, सुबह 7:31 बजे | 
| पूजा मुहूर्त (अभिजीत) | 1 नवंबर, दोपहर 11:42 से 12:27 बजे | 
| पारण समय (1 नवंबर व्रत) | 2 नवंबर, दोपहर 1:11 से 3:23 बजे | 
| पारण समय (2 नवंबर व्रत) | 3 नवंबर, सुबह 6:34 से 8:46 बजे | 
पूजा विधि
भूलें न करें: इस दिन क्रोध, मदिरा या मांसाहार से बचें, वरना दरिद्रता आ सकती है।
स्नान-शुद्धि: प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
दीप-आरती: भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित कर दीप जलाएं। “उठो देव, बैठो देव” मंत्र का जाप करें।
व्रत भोजन: फलाहार लें, तामसिक भोजन से परहेज करें। तुलसी पत्र न तोड़ें।
उपाय:
108 बार विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
दान: तिल, चावल, फल दान करें।
तुलसी पूजन: अगले दिन शालिग्राम से तुलसी विवाह कराएं।
 
  
  
  
  
  
 
 
  
  
 