निजता के अधिकार का उल्लंधन नहीं तो क्या, स्मार्टफोन के जरिये क्या थी मंशा, क्यों था ऐप डालने का सरकार का प्रेशर
नई दिल्ली। चहूं ओर फजीहत और देश व्यापी प्रबल विरोध तथा एप्पल जैसी इंटरनेशनल कंपनियों द्वारा साफ मना कर दिए जाने के बाद मोदी सरकार को आखिरकार यूटर्न लेना ही पड़ा। मामला देश के लोगों के प्राइवेसी से जुड़ा था। अच्छी व सभी के लिए राहत भरी बात यह है कि साइबर सिक्योरिटी के नाम पर सभी नए स्मार्टफोन्स में ‘संचार साथी’ (Sanchar Saathi) ऐप को अनिवार्य रूप से प्री-इंस्टॉल करने का विवादास्पद आदेश वापस ले लिया। यह फैसला विपक्षी दलों, डिजिटल राइट्स एक्टिविस्ट्स, एप्पल जैसी ग्लोबल टेक जायंट्स और लाखों सोशल मीडिया यूजर्स की जोरदार आलोचना के बाद आया, जिन्होंने इसे ‘बिग ब्रदर सर्विलांस’ का हथियार करार दिया।
बात सुरक्षा या फिर जासूसी
28 नवंबर को दूरसंचार विभाग ने एक आदेश जारी किया, जिसमें एप्पल, सैमसंग, शाओमी, ओप्पो जैसी कंपनियों को 90 दिनों के अंदर सभी नए फोन्स में यह ऐप डालने का हुकुम दिया गया। पुराने फोन्स में सॉफ्टवेयर अपडेट के जरिए भी इसे ठूंसने का प्लान था। ऐप को ‘डिसेबल’ या ‘रेस्ट्रिक्ट’ करने की मनाही थी। इसकी जानकारी जैसी ही बाहर आयी। देश भर में हंगामा मच गया। प्पल ने साफ मना कर दिया, कहते हुए कि यह उनके iOS इकोसिस्टम के खिलाफ है। विपक्ष ने राज्यसभा में हंगामा मचाया, कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने चिल्लाया, “बिग ब्रदर हमें देख नहीं सकता!”
बुरी फजीहत के बाद सफाई की नौबत
मोबाइल फोन के जरिये जासूसी सरीखे इस आदेश को लेकर देश व्यापी फजीहत के बाद मोदी सरकार ने यूटर्न में देरी नहीं की। राज्यसभा में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सफाई दी, “यह ऐप स्वैच्छिक है, यूजर्स इसे डिलीट कर सकते हैं। हमने आदेश वापस ले लिया क्योंकि 24 घंटों में 6 लाख डाउनलोड हो गए!” देश की पब्लिक ने दो टूक कह दिया नो-नो.. अब सरकार कह रही है कि यह एच्छिक था लेकिन लोग कह रहे हैं कि यह यू-टर्न ‘फजीहत बचाने’ का स्टंट है। टरनेट फ्रीडम फाउंडेशन ने इसे ‘संविधान-विरोधी’ बताया।