मेरठ में कभी 3 हजार तालाब थे आज सौ भी नहीं बचे

मेरठ में कभी 3 हजार तालाब थे आज सौ भी नहीं बचे
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मेरठ में कभी 3 हजार तालाब थे आज सौ भी नहीं बचे, लगभग 35 लाख लोगों की आबादी वाला मेरठ जिला बदहाली की स्थिति में है, क्योंकि यहां की नदियां और भूजल अत्यधिक प्रदूषित हो चुके हैं। साथ की जल प्राप्ति के अंतिम उपाय, पारंपरिक जल निकाय भी सीवेज में परिवर्तित हो रहे हैं। भले ही देर से ही सही लेकिन तालाबों को लेकर सिस्टम की नींद टूटी है। केंद्र मोदी व सूबे की योगी सरकार द्वारा तालाबों के संरक्षण तथा ग्राम पंचायत स्तर पर एक तालाब की योजना धरातल पर उतारी भी है, लेकिन जहां तक तालाबों की बात है तो मेरठ की धरती आज से दो दशक पहले तालाबों की विरासत से पूरी तरह से लवरेज थी। तालाबों पर काम करने वाले एक्टिविस्टों की मानें तो मेरठ में कभी तीन हजार तालाब हुआ करते थे, अब सौ तक की गिनती पूरी करना मुश्किल हो रहा है। सीडीओ ने बताया कि शासन की योजना के तहत जनपद में सौ नए तालाबों की खुदाई की जाएगी। कई गांवों में काम भी शुरू हो गया है। इसके अलावा पुराने तालाबों पर भी काम किया जा रहा है। महज दो दशक पूर्व तीन हजार छोटे बड़े तालाब हुआ करते थे। लेकिन दुखद पहलू यह है कि महानगरीय आबादी में आज तालाब के नाम पर केवल छावनी क्षेत्र को यदि अपवाद मान लिया जाए तो कोई विरासत बची नहीं है।
पुराने शहर में थे 12 तालाब
अकेले शहर में 12 तालाब थे और कुछ इलाकों, उदाहरण के लिए छिपी टैंक और सूरज कुंड, का नाम उनके नाम पर रखा गया है, लेकिन आज छावनी क्षेत्र में एक को छोड़कर एक भी जल निकाय मौजूद नहीं है। राजस्व अभिलेखों के अनुसार, पूरे जिले में कुल तालाबों की संख्या 3,276 थी, जिनमें से 1,232 पर कब्जा कर लिया गया है।
ऐसे हुए विलुप्त
हमारे सामाजिक जीवन में बावड़ी और तालाब जैसे पारंपरिक जल निकाय, लंबे समय से ग्रामीण जीवन का एक अभिन्न अंग रहे हैं, जो इन लोगों को दैनिक प्रयोग के लिए पानी, और मछली प्रदान करते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के समतल मैदान, जहां गंगा और यमुना नदियाँ मिलती हैं, कभी ऐसे कई जलाशयों का घर माने जाते थे। लेकिन तरक्की की अंधी दौड़ में जैसे-जैसे हरे भरे इलाकों को कंकरीट का जंगल बनाना शुरू किया गया, वैसे-वैसे तालाबों का बजूद भी खत्म होता चला गया।
राजस्व रिकॉड में तीन हजार
राजस्व रिकॉर्ड बताते हैं कि अकेले मेरठ जिले के 663 गांवों में 3062 जलाशय मौजूद हैं। 1960 के दशक तक, ये जल निकाय शहर के चारों ओर दिखाई देते थे, और विशेष रूप से गर्मियों के दौरान एक महत्वपूर्ण जल बफर का निर्माण करते थे। किन्तु आज उनमें से अधिकांश बेहद दयनीय स्थिति में हैं, क्यों की प्रशासन की नाक के नीचे लोगों द्वारा इनका अतिक्रमण कर लिया गया है। जिले के परीक्षितगढ़ ब्लॉक के 52 गांवों में मूल 260 तालाबों में से केवल 170 ही मौजूद हैं, और यह क्षेत्र अब भीषण जल संकट से जूझ रहा है।
किसी दौर में समृद्ध भी रही है तालाबों की विरासत
पौराणिक रूप से गांधारी तालाब जिसे कौरवों की मां गांधारी द्वारा इस्तेमाल किया गया, और सूरज कुंड एक जलाशय जिसे बाबा मनोहर नाथ के समय का पता लगाया जा सकता है, जो प्रसिद्ध सूफी संत शाहपीर के समकालीन थे, उनका भी प्राचीन स्वरूप पूरी तरह से नष्ट हो चुका है। 60 मीटर लंबा, 50 मीटर चौड़ा और 6 मीटर गहरा गांधारी तालाब, अब भूजल पुनर्भरण के लिए उपयुक्त नहीं है। परीक्षितगढ़ प्रखंड में स्थित यह जलाशय तीन दशक पहले सूख गया था और अब उस पर अतिक्रमण कर लिया गया है। वही. बाबा मनोहर नाथ मंदिर का निर्माण मुगल सम्राट शाहजहाँ के समय में एक मकबरे के साथ किया गया था। कुंड के  पानी का उपयोग धार्मिक उद्देश्यों, अनुष्ठान स्नान के साथ-साथ जल संचयन के लिए भी किया जाता था। मेरठ गजेटियर में लिखा गया है कि, कैसे एक स्थानीय शासक लाला जवाहर मल ने इसकी उपचार शक्तियों से प्रभावित होकर 1700 में जल निकाय का जीर्णोद्धार किया था। मुगल काल के दौरान तालाब अबू नाला के पानी से और बाद में गंगा नहर के पानी से भर गया था। हालांकि आज इस क्षेत्र के अधिकांश लोग इन तालाबों की बिगड़ती स्थिति का श्रेय जलाशय में अवैध निमार्णों और अतिक्रमण को दे रहे हैं।
इस क्षेत्र में चीनी उद्योगों द्वारा अवैध भूजल निकासी के कारण इन जल निकायों की स्थिति और खराब हो गई है। इसके अलावा, राज्य और भू-माफिया सक्रिय रूप से जमीन के इस्तेमाल के तरीके में बदलाव लाने के लिए मिलीभगत कर रहे हैं। वे सूखे हुए जल निकाय को कचरे के ढेर के रूप में उपयोग करते हैं और फिर बाद में इसे पुन: प्राप्त करते हैं और फिर इसे बिक्री के लिए लगा देते हैं। पिछले कुछ वर्षों में ही, लोगों को जल निकायों के खराब प्रबंधन के कारण होने वाले तनाव का एहसास होने लगा है, जिसके परिणामस्वरूप पानी की कमी भी होने लगी है। भारत विविध और विशिष्ट पारंपरिक जल निकायों से संपन्न राष्ट्र है। लेकिन हाल के वर्षों में इन जल निकायों की अनुचित निगरानी के कारण इनके पानी की गुणवत्ता और मात्रा में गिरावट आई है और उनमें से कई गायब भी हो गए हैं।

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