पुत्राें की दीर्धायु के लिए अहोई का ब्रत

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पुत्राें की दीर्धायु के लिए अहोई का ब्रत,

संतान प्राप्ति के लिए भी  अहोई माता की पूजा अर्चना

मेरठ। संतान की अच्छी सेहत और लंबी उम्र के लिए किया जाने वाला अहोई अष्टमी व्रत पूजा पूरे शहर में  किया जाएगा। इस व्रत पर माता पार्वती की पूजा की जाती है। महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर नहाकर व्रत का संकल्प लेती हैं। इसके बाद पूरे दिन व्रत रखकर शाम को सूर्यास्त के बाद माता की पूजा करती हैं और इसके बाद व्रत पूरा करती हैं। कुछ महिलाएं संतान प्राप्ति और अखंड सुहाग प्राप्ति की कामना से भी ये व्रत करती हैं।

अहोई अष्टमी का व्रत बच्चों की तरक्की और दीर्घायु के लिए रखा जाता है। अपने बच्चों की रक्षा और तरक्की के लिए माताएं रखती हैं। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता है। इस दिन माताएं अपनी संतान के लिए सुबह से उपवास रखती हैं और शाम को ही अपना उपवास खोलती हैं। नारदपुराण के अनुसार सभी मासों में श्रेष्ठ कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कर्काष्टमी नामक व्रत का विधान बताया गया है। इसे लोकभाषा में अहोई आठें या अहोई अष्टमी भी कहा जाता है। अहोई का शाब्दिक अर्थ है-अनहोनी को होनी में बदलने वाली माता। इस संपूर्ण सृष्टि में अनहोनी या दुर्भाग्य को टालने वाली आदिशक्ति देवी पार्वती हैं, इसलिए इस दिन माता पार्वती की पूजा-अर्चना अहोई माता के रूप में की जाती है।

अहोई अष्टमी की पूजा विधि

  • अहोई का अर्थ अनहोनी को को होनी बनाना होता है। इस दिन अहोई माता की पूजा की जाती है। अहोई अष्टमी का व्रत दिनभर निर्जल रहकर किया जाता है। अहोई माता का पूजन करने के लिए महिलाएं तड़के उठकर मंदिर में जाती हैं और वहीं पर पूजा के साथ व्रत प्रारंभ होता है और शाम को पूजा करके कथा सुनने के बाद ये व्रत पूरा किया जाता है। कई जगह ये व्रत चंद्र दर्शन के बाद भी खोला जाता है।
  • इस दिन महिलाएं शाम को दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाती हैं और उसके आसपास सेई व सेई के बच्चे भी बनाती हैं। कुछ लोग बाजार में कागज के अहोई माता के रंगीन चित्र लाकर उनकी पूजा भी करते हैं। कुछ महिलाएं पूजा के लिए चांदी की एक अहोई भी बनाती हैं, जिसे स्याऊ कहते हैं और उसमें चांदी के दो मोती डालकर विशेष पूजन किया जाता है।
  • तारे निकलने के बाद अहोई माता की पूजा शुरू होती है। पूजन से पहले जमीन को साफ करके, पूजा का चौक पूरकर, एक लोटे में जल भरकर उसे कलश की तरह चौकी के एक कोने पर रखते हैं और फिर पूजा करते हैं। इसके बाद अहोई अष्टमी व्रत की कथा सुनी जाती है।

अहोई अष्टमी का महत्व

  • इस दिन को कृष्णा अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। मथुरा के राधा कुंड में इस दिन बड़ी संख्या में युगल तथा श्रद्धालु पावन स्नान करने आते हैं। ये व्रत खासतौर से उत्तर भारत में मनाया जाता है। यूपी, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश में ये व्रत महत्वपूर्ण माना जाता है।अहोई अष्टमी के पर्व पर माताएं अपने पुत्रों के कल्याण के लिए अहोई माता व्रत रखती हैं। परंपरागत रूप में यह व्रत केवल पुत्रों के लिए रखा जाता था, लेकिन अपनी सभी संतानों के कल्याण के लिए आजकल यह व्रत रखा जता है। माताएं, बहुत उत्साह से अहोई माता की पूजा करती हैं तथा अपनी संतानों की दीर्घ, स्वस्थ्य एवं मंगलमय जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं। तारों अथवा चंदमा के दर्शन तथा पूजन कर के ये व्रत पूर्ण किया जाता है।
  • यह व्रत संतानहीन युगल के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है अथवा जिन महिलाओं को गर्भधारण में परेशानी हो रही हैं अथवा जिन महिलाओं का गर्भपात हो गया हो, उन्हें पुत्र प्राप्ति के लिए अहोई माता व्रत करना चाहिए।
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