शिव के अनन्य भक्त दशानंद को माना जााता है पहली कांवड़ लाने वाला, कुछ कथाओं में भगवान श्रीराम व देवी सीता को माना जात है कि वो पहली कांवड़ लाए थे, इससे पूर्व परशुराम के बारे में मान्यता है कि वो पहली कांवड़ महादेव के लिए लाए थे, त्रेत्रा युग में श्रवण कुमार को लेकर मान्यता है कि वो पहली कांवड़ लाए थे

हरिद्धार। कांवड़ को लेकर तमाम कथाओं का उल्लेख पौराणिक कथाओं में है। सावन का महीना शुरू हो गया है और इसके साथ ही केसरिया कपड़े पहने शिवभक्तों के जत्थे गंगा का पवित्र जल शिवलिंग पर चढ़ाने निकल पड़े हैं। ये जत्थे जिन्हें हम कांवड़ियों के नाम से जानते हैं उत्तर भारत में सावन का महीना शुरू होते ही सड़कों पर निकल पड़ते हैं। पिछले दो दशकों से कांवड़ यात्रा की लोकप्रियता बढ़ी है और अब समाज का उच्च एवं शिक्षित वर्ग भी कांवड यात्रा में शामिल होने लगे हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इतिहास का सबसे पहला कांवडिया कौन था। माना जाता है कि पहली कांवड़ भगवान परशुराम लेकर आए थे। वो सबसे पौराणिक माने जाते हैं। ऐसा अनेक धर्म गुरूओं का भी मानना है जबकि कुछ का मानना है कि पहली कांवड़ श्रवण कुमार लेकर आए थे। वह अपने माता पिता को त्रेत्रा युग में गंगा घाट लेकर गए। उन्हें गंगा स्नान कराया। फिर कांवड़ में गंगा जल लिया और भगवान शिव का जलाभिषेक किया। इसके अलावा एक अन्य व पौराणिक कथा में बताया गया है कि शिव भक्त परम ज्ञानी दशानंद सबसे पहले कांवड़ लेकर आए थे। यह कथा बहुत प्राचीन है। समुद्र मंथन में जब विष निकला तो महादेव ने हलाहल को पीलिया। यह उनके भक्त दशानंद से देखा नहीं कया। अपने देव के लिए तुरंत रावण गंगा जल लाने के लिए निकल गया और गंगा जल लाकर महादेव का अभिषेक किया। उसके बाद ही हलाहल की ज्वाला शांत हो सकी। बताया जाता है कि उसके बाद से ही कांवड़ का चलन शुरू हुआ। एक और मान्यता है कि भगवान राम ने भी कांवड़ यात्रा की थी, जब उन्होंने सुल्तानगंज से गंगाजल लाकर बाबाधाम के शिवलिंग पर जलाभिषेक किया था।

