तो पीछे चल देंगे बिहारी जी, अगर आप चाहोगे तो वृंदावन स्थित मंदिर को छोड़कर बिहारी आपके पीछे-पीछे भी चल देंगे। यह बात सोलह आने सच है। ऐसा पहले हो भी चुका है। ऐसी एक दो नहीं कई कहानियां हैं और सभी के प्रमाण भी बताए जाते हैं। बांके बिहारी मंदिर के सेवायत बताते हैं कि बात उस की है जब देश में राजवाडों का राज था। राजस्थान के एक हिन्दू राजा बांके बिहारी के अनन्य भक्त थे। एक बार उन्होंने बांके बिहारी को इतने प्यार से निहारा कि मंदिर को छोड़ बांके बिहारी उनके महल जा पहुंचे। मंदिर से बिहारी जी की प्रतिमा के यूं गायब होने से हड़कंप मच गया। एक ओर कहानी सेवायत सुनाते हैं। एक बार कृष्ण भक्त एक स्त्री ने अपने पति को वृंदावन जाने के लिए राजी किया था। वह दोनो वृंदावन पहुंचे और बाके बिहारी मंदिर जाकर दर्शन किए। थोड़े दिन वो लोग वहा पर रुक गए और बाके बिहारी के दर्शन किए। स्त्री के पति ने उसको वापस घर जाने को कहा। तब उस स्त्री ने बांके बिहारी जी को प्रार्थना कि की वह हमेशा उसके साथ ही रहे। फिर दोनो घर जाने को निकल गए। वो लोग रेलवे स्टेशन जाने के लिए घोड़ा गाड़ी में बैठे। तभी बांके बिहारी जी बाल रूप में आकर उन दोनो से विनती करने लगे की मुझे भी साथ ले जाए। इधर मंदिर के पुजारी ने मंदिर में से बांके बिहारी जी को गायब देखा और वो वह कृष्ण भक्त स्त्री के प्रेमभाव को समझ गए। तुरंत ही वह उस घोड़ा गाड़ी के पीछे दौड़े और बालक रूप बाके बिहारी जी से प्रार्थना करने लगे। तभी वह बालक वहा से गायब हो गया और पुजारी वापस मंदिर लौटकर आये तो भगवान् वही पर थे, फिर भगवान् के दर्शन किये। ऐसी घटना होने से पति पत्नी ने संसार को त्याग दिया। जिस पर भी बांके बिहारी रीझ जाते हैं, उसी के पीछे-पीछे चल देते हैं। उन यह बाल स्वभाव मंदिर के सेवायत पुजारियों की नींद उड़ाए रहता है। ऐसी एक दो नहीं करीब आधा दर्जन घटनाएं अब तक हो चुकी बतायी जाती हैं। कहा जाता है कि बांके बिहारी सबसे ज्यादा फिदा बाबा हरिदास पर थे। राधा रानी और श्रीकृष्ण को अक्सर बाबा हरिदास की कुटिया में देखे जाने की बात कही जाती है। इसके प्रमाण वृंदावन के निधि वन में आज भी मौजूद हैं। बांके बिहारी की इसी चपलता की वजह से दर्शन के लिए झांकी दर्शन को व्यवस्था की हुई है। झांकी दर्शन में भगवान के सामने थोड़ी थोड़ी देर में पर्दे डाले जाते है, ताकि कोई निरंतर उनको देख ना सके। प्रभु अपने भक्तों पर कैसे न्यौछावर हो जाते हैं इसकी एक कथा बाबा हरिदास से भी जुड़ी है। निधिवन के एक सेवायत ने बताया कि बाबा हरिदास जी श्री कृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे। एक समय पर वह हमेशा कृष्ण की भक्ति में लीन रहते और निधिवन में बैठकर अपने अपने भजनों से भगवान को प्रसन्न करने की कोशिश किया करते। उनके संगीत मय भक्ति भाव से भगवान प्रसन्न हो जाते थे और कई बार उनके सामने आ जाते थे। हरिदास जी के शिष्य ने एक बार उनसे कहा की हमे भी भगवान के दर्शन करने है, तो कृपा करके हमे भी दर्शन का लाभ लेने दे। हरिदास जी इसके बाद फिर से भक्ति में लीन हो गए और फिर कृष्ण और राधा दोनो ही उनको दर्शन देने के लिए प्रकट हुए। श्री कृष्ण और राधा रानी ने बाबा हरिदास के संगीत से प्रसन्न होकर, उनके पास रहने को इच्छा व्यक्त की। तब बाबा हरिदास जी ने भगवान को बोला कि यदि वह उनको तो लंगोट पहनें तो उन्हें यहां रख लेंगे, परंतु माता राधा के लिए उनके पास कोई आभूषण नहीं है, क्युकी वह केवल एक संत है। ऐसा सुनकर श्री कृष्ण और राधा एक हो गए और एक होकर उनकी प्रतिमा स्वरूप में प्रकट हुए और फिर हरिदास जी ने इनका नाम बाके बिहारी रखा। बांके बिहारी जी की मूर्ति को किसी ने बनाया नही है, यह प्रतिमा अपने आप उत्पन्न हुई है। कहते है, की श्री हरिदास जी के अनन्य भक्ति से प्रसन्न होकर बाके बिहारी जी वृंदावन प्रकट हुए थे। बांके बिहारी मंदिर में भगवान की काले रंग की मूर्ति है, जो बाबा हरिदास जी ने खोजी थी। मान्यता है, की इस मूर्ति में राधा और कृष्ण दोनो कि ही छवि है।