
महज 12 साल में जंग आजादी में हुईं शामिल, जेल की सलाखों ने बनाया इंदिरा को मजबूत, देश के लिए जन्मी और देश के लिए मौत
नई दिल्ली। कांग्रेस और यह देश ही नहीं पूरी दुनिया में भारत की दिवंगत प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को उनके प्रशंसक नमन कर रहे हैं। दुनिया में श्रीमती गांधी की पहचान एक आयरन लेडी के तौर पर बनी है, उनका जीवन न केवल राजनीति का एक अध्याय है, बल्कि साहस, संघर्ष और दूरदर्शिता की जीवती-जागती मिसाल है। आज उनके जन्मदिन पर हम आपको ले चलते हैं उनकी उस यात्रा पर, जहां एक बालिका से लेकर ‘लौह महिला’ बनने तक की कहानी छिपी है – वो घटनाएं जो इतिहास के पन्नों में अमर हैं।
बचपन की चिंगारी: स्वतंत्रता संग्राम की गवाह
इंदिरा का जन्म 19 नवंबर 1917 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ। पिता जवाहरलाल नेहरू और मां कमला नेहरू के घर जन्मीं इंदिरा ने बचपन से ही आजादी की लड़ाई देखी। मात्र 12 साल की उम्र में 1929 में उन्होंने ‘वानर सेना’ गठित की – बच्चों की एक टोली जो ब्रिटिश सामान का बहिष्कार करती और स्वदेशी को बढ़ावा देती। यह उनकी नेतृत्व क्षमता की पहली झलक थी।
युवावस्था का संघर्ष: जेल और शिक्षा
1930 के दशक में इंदिरा ने स्विट्जरलैंड और ऑक्सफोर्ड में शिक्षा ली, लेकिन भारत लौटते ही वे कांग्रेस की सक्रिय सदस्य बनीं। 1938 में फिरोज गांधी से विवाह के बाद उनका राजनीतिक सफर तेज हुआ। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में गिरफ्तारी हुई – जेल की सलाखों ने उन्हें और मजबूत बनाया। नेहरू की बेटी होने के बावजूद, उन्होंने अपनी पहचान खुद गढ़ी।
सत्ता की सीढ़ियां: पहली महिला पीएम
1966 में लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री बनीं। शुरू में ‘गूंगी गुड़िया’ कहकर उपेक्षित की गईं, लेकिन 1967 के चुनावों में उन्होंने साबित किया कि वे कमजोर नहीं। 1971 का भारत-पाक युद्ध उनकी सबसे बड़ी जीत थी – बांग्लादेश का निर्माण और 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों की सरेंडर। ‘दुर्गा’ का अवतार बनकर उन्होंने विश्व मानचित्र बदल दिया।
आपातकाल की छाया: विवादों का दौर
1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद इंदिरा ने आपातकाल लगाया। प्रेस सेंसरशिप, गिरफ्तारियां और नसबंदी अभियान ने उन्हें विवादों में घेरा। लेकिन 1977 के चुनावों में हार के बाद 1980 में धमाकेदार वापसी – जनता ने फिर उन्हें चुना। यह उनकी लोकप्रियता का प्रमाण था।
हरित क्रांति और बैंक राष्ट्रीयकरण
इंदिरा की दूरदर्शी नीतियां अविस्मरणीय हैं। 1969 में 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण गरीबों तक ऋण पहुंचाने का क्रांतिकारी कदम था। हरित क्रांति से भारत खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बना – भुखमरी से जूझते देश को अन्नदाता बनाया।
शहादत का अंत: ऑपरेशन ब्लू स्टार
1984 में पंजाब में खालिस्तानी उग्रवाद चरम पर था। जून 1984 में स्वर्ण मंदिर पर ऑपरेशन ब्लू स्टार ने आतंकवादियों को खदेड़ा, लेकिन सिख समुदाय में आक्रोश भड़का। 31 अक्टूबर 1984 को उनके ही अंगरक्षकों ने गोली मार दी। ‘मैंने अपना जीवन देश को समर्पित किया, मृत्यु भी देश के लिए हो’ – उनके ये शब्द साकार हुए।