उन 22 व्यापारियों से क्या दुश्मनी थी…..

kabir Sharma
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उनके लिए क्यों नहीं उताबले थे नेता व अफसर, जो दावे अब कर रहे हैं वो तब क्यों नहीं, किस कानून के तहत नेता व अफसर कर रहे हैं दाव

मेरठ। जो 22 व्यापारी बेघर हो गए हैं उनसे क्या आवास विकास परिषद और भाजपा के जनप्रतिनिधियों को कोई दुश्मनी थी। यह सवाल इसलिए पूछा जा रहा है कि जो भी जनप्रतिनिधि सेंट्रल मार्केट में यह कहकर आए हैं कि अब बुलडोजर नहीं चलेगा किसी पर भी नहीं चलेगा उनकी शासन में बात हो गयी है तो वह यह साफ करें कि किस कानून के तहत ऐसा कह रहे हैं। या फिर यह मान लिया जाए कि सुप्र्रीमकोर्ट के आदेश से वो खुद को ऊपर समझने लगे हैं। जिन 32 दुकानों को लेकर नोटिस जारी किया गया है आवास विकास के अफसरों और जो भी जनप्रतिनिधि सेंट्रल मार्केट में दुकानों के शटर उठाने पहुंचे थे उन पर इस बात का उत्तर है कि जिन 32 दुकानदारों को नोटिस भेज गया है उनके खिलाफ वो किस आधार पर बुलडोजर न चलने देने का दावा कर रहे हैं। क्या ऐसा को कोई कानून रातों रात बना दिया गया है। या फिर यह मान लिया जाए कि आवास विकास के अफसर और जनप्रतिनिधि दोनों ही सुप्रीमकोर्ट से ऊपर जा पहुंचे हैं। सुप्रीमकोर्ट के आदेशों को लेकर कोई सम्मान नहीं। एक बारंगी नेताओं की बात समझ में आ सकती है कि राजनीति और वोट के लिए कुछ भी कर सकते हैं, लेकिन अफसरो की क्या मति मारी गयी है जो इस प्रकार की बात कह रहे हैं। फिर यदि ऐसी बात कह भी रहे हैं तो कम से कम उसका आधार तो बात दें। कोई कानून अभी तक ऐसा नहीं है जिसके आधार पर यह बात कही जा रही है। रही बात भूउपयोग कानून की जो पिछले दिनों सूबे की सरकार ने पास किया है तो वो कानून उन इमारतों पर लागू होता है जो इस कानून के बनने के बाद बनेंगी। पुरानी तमाम अवैध इमारतों पर बुलडोजर चलना तय है।
क्या दुश्मनी थी उन 22 व्यापारियों से
या फिर यह मान लिया जाए कि जो व्यापारी उजाड़ गए है उनसे नेताओं और अफसरों की क्या दुश्मनी थी। या यह मान लिया जाए कि उनके उजड़ने का इंतजार देखा जा रहा था क्योंकि इमारत जमीदोंज और इसके व्यापारियों के पूरी तरह से बर्बाद होने से पहले कोई भी नेता वहां जाकर नहीं झांका।

किस बात का जश्न और मिठाई

अवैध ही इमारत जमीदोंज कर दी गयी, 22 व्यापारी सड़क पर आ गए। क्या इनकी बर्बादी पर आतिशबाजी-जश्न-मिठाइयां बांटी जा रही हैं। जिन 32 दुकानों को गिराने का नोटिस दिया गया है आवास विकास ने अवैध तो उन्हें भी करा दिया है। कोर्ट का आदेश भी है, फिर किस बात का जश्न मनाया जा रहा है। रही बात 22 के पुनर्वास की तो साहब सुबह जब जागते हैं तो पेट रोटी मांगता है। जब तक पुनर्वास करोगे तब तक क्या पेट में भूख नहीं लगेगी, बच्चे स्कूलों की फीस नहीं देंगे, डाक्टर फीस नहीं लेगा, मेडिकल स्टोर वाला दवा के पैसे नहीं मांगेगा, बिजली का बिल नहीं आएंगे। इन सब बातों की गारंटी यदि नेता देते है तो पूरा शहर उनके साथ जश्न मनाने को तैयार है… मगर गारंटी कौन देगा इस बात की….

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