ये तो खुद ही करने लगे मुजरा

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ये तो खुद ही करने लगे मुजरा, ये बंद कराने आए थे तवायफों के कोठे-सिक्कों की खनक देखी तो खुद ही करने लगे मुजरा। देश और दुनिया में बेहद मशहूर शायर शेख अंसार ने जिस वक्त यह शेर लिखा तो कभी सोच ना होगा कि आने वाले दौर में उनका यह शेर उन लोगों को नसीहत देने के काम आएगा जो किसी पर एक उंगली उठाते हैं तो यह भूल जाते हैं कि उनकी ही तीन उंगलियां उनकी ओर भी उठ रही – अब समझ लीजिए क्रोनोलॉजी- छावनी में समाज का स्कूल है, समाज के ही कुछ लोगों का मानना है कि सारे फसाद की जड़ बच्चों की फीस के नाम पर महीने में जमा होने वाले करोड़ों की रकम पर कुंडली मारने की लड़ाई है, इससे इतर कुछ नहीं। न बच्चों की शिक्षा से कुछ लेना है न ही समाज की इस शिक्षण संस्था से। करीब डेढ पौने दो साल पहले सचिव पर गंभीर आरोप लगाकर धन बल के बूते उन्हें जेल भिजवा दिया गया। उनके पुत्र को कानूनी जाल में फंसाया।  यह सब यहीं नहीं रूका, शिक्षण संस्था की महिला प्रधानाचार्य को भी जेल भिजवा दिया गया। बस यही गलती कर दी। उसको समाज के किसी भी एक व्यक्ति ने स्वीकार्यता नहीं प्रदान की, बल्कि जहां भी समाज के प्रबुद्धजन बैठे, उन्होंने प्रधानाचार्य को महिला होने के नाते जेल भिजवाने के कृत्य की निंदा ही की। साथ ही नसीहत व लानतें दी कि हमारे समाज में ऐसा कदापी नहीं होता। चलो जो किया, लेकिन अब उंगली उठायी जा रही हैं कि जिस प्रकार के कथित कृत्य के चलते सचिव को घर परिवार से दूर कर दिया। बहनें राखी तक नहीं बांध सकीं तो क्या वही कृत्य अब नहीं किया जा रहा है। वो गलत था तो अब जो हो रहा है वो सही कैसे हो सकता है। संस्था का पैसा पानी की तरह बहाने के पीछे वजह क्या है.. .. शेर है..  ये बंद कराने आए थे तवायफों के कोठे-सिक्कों की खनक देखी तो खुद ही करने लगे मुजरा.. .. (शेष)

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